अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का कहना है कि सूर्यग्रहण हमेशा से ही एक आकर्षक और महत्त्वपूर्ण खगोलीय घटना रही है। इसे देखने के लिए शौकिया खगोलविज्ञानी, साइंस के स्टूडेंट्स, प्रकृति प्रेमी और आमजन भी पूरी तैयारी करते हैं। अपने शहर में दिखाई न पडऩे पर ये एक शहर से दूसरे शहर जाने से भी नहीं चूकते। लेकिन इससाल कोरोना वायरस के चलते यह उत्साह ठंडा पड़ा हुआ है। अफ्रीकी देश सूडान में सबसे पहले नजर आने वाला यह सूर्यग्रहण इसा बार ज्यादातर लोग ऑनलाइन, समाचार चैनलों और अपने घर एवं छतों से ही देखेंगे। सामूहिक रूप से आयोजित होने वाली गतिविधियां इस साल कोरोना वायरस संक्रमण के चलते नहीं हो पाएंगी। गौरतलब है कि इस रविवार के बाद अगले साल 2021 में रिंग ऑफ फायर बनेगा जिसे सिर्फ आर्कटिक महाद्वीप से ही से देखा जा सकेगा।
अलग-अलग देशों और विभिन्न सभ्यताओं में सूर्यग्रहण से जुड़ी अनेकों कथाएं और किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। हिंदू धर्म में राहु-केतु नामक दो दैत्यों के अमृत मंथन की पौराणिक कथा प्रचलित है। पश्चिमी एशिया में सूर्यग्रहण को सूरज को निगलने वाले दानव के रूप में जाना जाता है। चीन में मान्यता है कि सूरज को निगलने की कोशिश करने वाला दरअसल स्वर्ग का एक कुत्ता है। वहीं पेरू के लोगों की मान्यता है कि एक विशाल प्यूमा (शेरों की प्रजाति का छोटा सदस्य) सूर्य को निगलने आता है। ऐसे ही स्कॉटलैंड की वाइकिंग सभ्यता में मान्यता थी कि ग्रहण के समय आसमानी भेडि़ओं का जोड़ा सूरज पर हमला करता है। वहीं मध्यकालीन यूरोप में प्लेग और युद्धों से त्रस्त जनता इसे बाइबल के प्रलय से जोड़कर देखती थी।