ऐसा कहा जाता है कि, लंकापति रावण का वध करने के पश्चात जब श्री राम अयोध्या वापस लौटें तो उन्हें वहां का राजा घोषित किया गया। इस पर देवर्षि नारद ने श्री राम के परम भक्त हनुमान जी को सभी ऋषि मुनियों से जाकर मिलने को कहा। हालांकि उन्होंने ऋषि विश्वामित्र से मिलने के लिए बजरंबली को मना कर दिया था। ऐसा नारद जी ने इसलिए किया क्योंकि विश्वामित्र कभी महान राजा हुआ करते थे। नारद जी ने जैसा कहा हनुमान जी ने ठीक वैसा ही किया। नारद जी की आज्ञा का पालन करते हुए वे ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर बाकी सभी ऋषि मुनियों से मिलें। हालांकि इस बात से विश्वामित्र को कोई फर्क नहीं पड़ा।
इधर जब नारद मुनि को इस बात का पता चला कि, विश्वामित्र को इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई, तो उन्होंने स्वयं विश्वामित्र के पास जाकर बजरंबली के खिलाफ खूब भड़काया। इससे विश्वामित्र अत्यंत क्रोधित हो गए।उन्होंने श्री राम को आदेश दिया कि, वे फौरन हनुमान जी का वध कर दें।
अपने गुरु की आज्ञा का पालन करने के अलावा उनके पास कोई और चारा नहीं था। इसीलिए उन्होंने बजरंबली पर बाण चला दिया, लेकिन बजरंगबली निरंतर राम-राम की माला जपते रहे जिससे राम के प्रहार का उन पर कोई असर नहीं हुआ।
गुरु विश्वामित्र की आज्ञा के अनुसार उन्हें हनुमान का वध करना था इसीलिए उन्होंने हनुमान पर बह्रमास्त्र चलाया।हनुमान जी उस समय भी राम नाम का जप करते रहें जिससे आश्चर्यजनक रूप से ब्रह्मास्त्र भी उनका बाल बांका नहीं कर पाया।
इस कठिन परिस्थिति को देखकर नारद मुनि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने विश्वामित्र के पास अपनी भूल स्वीकार की।इस प्रकार इस घटना से हनुमान जी ने फिर से अपनी भक्ति का परिचय दिया और राम नाम का जप करके उन्होंने मृत्यु को भी पराजित कर दिया।