हमारे देश में हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई ऐसे पवित्र स्थान हैं जहां श्राद्ध करवाने से पूर्वज मोक्ष प्रदान करते हैं। इसके बावजूद लोगों में गया के प्रति अटूट विश्वास है और हो भी क्यों न?
जब स्वयं भगवान राम ने गया की महिमा का बखान किया है तो इंसान की भला क्या मजाल। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम और सीता जी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।
गरूड़ पुराण में ऐसा लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने से वहां पहुंचने तक लेकर एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं।
मोक्ष की भूमि गया विष्णु नगरी के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यताओं के अनुसार स्वयं विष्णु भगवान गया में पितृ देवता के रूप में मौजूद रहते हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान संभव ही नहीं है।
पौराणिक कथाओं में एक और वाक्ये का जिक्र है और वह ये कि, भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक एक और राक्षस था। गयासुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और उनसे वरदान मांगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। ब्रह्माजी गयासुर को यह वरदान प्रदान किया, लेकिन इसके बाद से ही स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी। लोग पाप कर गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे। प्रकृति का सारा नियम उथल-पुथल हो गया।
इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए गयासुर से पवित्र स्थल की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ करने के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया। यही पांच कोस आगे चलकर गया बनी।
गयासुर ने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने (मुक्ति) वाला बना रहे।यानि कि जो भी व्यक्ति यहां पर किसी का पिंडदान करेगा, उसे मुक्ति जरूर मिलेगी।
तब से आज तक लोग अपने पितरों को तारने के लिए गया आते हैं। बता दें हर साल देश के हर कोने से और विदेशों से भी लोग गया आते हैं और अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।