पुरूषों से कंधा मिलाकर चलने में महिलाएं आज किसी कम नहीं हैं। लेकिन आज भी हमारे देश में कई सारी ऐसी जगहें है जहां महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है। भले ही हम महिला सशक्तिकरण की बात कितना भी क्यों न कर लें लेकिन महिलाओं के प्रति हो रहा इस प्रकार का बर्ताव सब पर पानी फेरता नजर आ रहा है।
हम यहां मध्य प्रदेश के चंबल क्षेत्र में स्थित आमेठ गांव के बारे में बात कर रहे हैं। बता दें इस गांव में महिलाएं मर्दो के सामने अपने पैरों पर चप्पल नहीं पहनती है। अगर वो अपने सामने से किसी पुरूष को आते हुई देखती है तो पैरों से चप्पल निकालकर अपने हाथ में ले लेती है। आमेठ गांव की आबादी 1200 है जिनमें से 500 महिलाएं है।
मध्य प्रदेश के इस गांव में पानी की समस्या अपने चरम पर है। घरों में पानी का इंतजाम करने की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही है। रोज अपने परिवार के सदस्यों के लिए पानी का इंतजाम करने के लिए यहां की महिलाएं सूर्योदय से पहले पानी के बर्तन लेकर गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित झरने की तरफ जाती है।
गांव की महिलाएं प्रतिदिन करीब 7-8 घंटे का वक्त पानी का इंतमाम करने में ही लगा देती है। अपने परिवार के लिए इतना करने के बावजूद उन्हें समाज में वो दर्जा नहीं मिल सका है जिसकी वो हकदार है। सुबह चार बजे उठकर पथरीली सड़कों पर चलकर ये महिलाएं पानी भरने जाती है। गांव से बाहर जाते वक्त यदि किसी पुरूष ने उन्हें देख लिया तो वो तुरंत अपने पैर से चप्पल निकालकर हाथ में ले लेती है।
इसके साथ ही आपको एक और बात बता दें कि आमेठ गांव के लोग काफी मेहनती व कर्मठ है। इसका पता हमें इस बात से चलता है कि यहां आदिवासी समाज के पुरूषों और भिलाला जाति के किसानों ने मिलकर आमेठ सहित पिपराना, झरन्या, बाड़ी, चिलवानी इत्यादि आस-पास के इलाकों में कंकड़-पत्थर से भरी मिट्टी को उपजाऊ और खेती योग्य बनाया है। यहां इन लोगों की ये बात वाकई में काबिले तारीफ है लेकिन इसके बावजूद अगर वो अपनी औरतों को ही मान-मर्यादा का हक न दे पाए तो ये वाकई में काफी दुखद है।