16वीं शताब्दी बना था ये कब्रिस्तान
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन कब्रो को 16वीं शताब्दी में बनवया गया था। यह एक विशाल कब्रिस्तान है। कहते हैं कि हर इमारत एक परिवार से संबंधित है, जिसमें सिर्फ उसी परिवार के सदस्यों को दफनाया गया है। इतना ही नहीं। इस जगह को लेकर और भी कई तरह मान्यताएं हैं। लोगों को मानना है कि इन झोपड़ीनुमा गुफाओं में जो आया वह कभी वापिस लौटकर नहीं गया। हालांकि, कभी-कभार पर्यटक इस जगह के रहस्य का जानने के लिए आते रहते हैं।
आत्माएं करती हैं नाव का इस्तेमाल
यहां पहुंचना बेहद मुश्किल है। क्योंकि इस जगह पर पहुंचने के लिए पहाड़ियों के बीच तंग रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। यहां पर मौसम भी हमेशा खराब ही रहता है, जो सफर में बड़ी रुकाउट बनता है। पुरातत्वविदों के मुताबिक, यहां कब्रों के पास नावें मिली हैं। जिसके बाद स्थानीय लोगों के बीच नाव को लेकर मान्यता है कि आत्मा को स्वर्ग तक पहुंचने के लिए नदी पार करनी होती है, इसलिए शवों को नाव पर रखकर दफनाया जाता था। पुरातत्वविदों को यहां हर तहखाने के सामने एक कुआं भी मिला है। जिसके बारे में कहा जाता है कि लोग अपने परिजनों को यहां दफनाने के बाद कुएं में सिक्का फेंकते थे। अगर सिक्का तल में मौजूद पत्थरों से टकराता तो इसका मतलब होता था कि आत्मा स्वर्ग तक पहुंच गई।