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बचपन में अस्थमा से पीडि़त थे, अब हैं दुनिया के सबसे कम उम्र के युवा जिसने फतह की सात चोटियां

locationजयपुरPublished: Mar 02, 2019 04:27:59 pm

Submitted by:

manish singh

सत्यरुप सिद्धांत का जन्न 29 अप्रेल 1983 को कोलकाता के बहरामपुर में हुआ था। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सिक्किम के मनीपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया। 2005 में बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर नौकरी शुरू की और 2008 से बेंगलुरु माउंटेनियरिंग क्लब के सदस्य हैं।

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बचपन में अस्थमा से पीडि़त थे, अब हैं दुनिया के सबसे कम उम्र के युवा जिसने फतह की सात चोटियां

सत्यरुप सिद्धांत का जन्न 29 अप्रेल 1983 को कोलकाता के बहरामपुर में हुआ था। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सिक्किम के मनीपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया। 2005 में बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर नौकरी शुरू की और 2008 से बेंगलुरु माउंटेनियरिंग क्लब के सदस्य हैं।

बचपन से ही इन्हें अस्थमा (सांस लेने की तकलीफ) थी और ये बिना इनहेलर के 100 मीटर भी नहीं दौड़ सकते थे। कॉलेज पहुंचे तो इन्होंने तय किया कि अब ये इनहेलर से अपनी जिंदगी को हटा देंगे। इन्हें कई तरह के खाद्य पदार्थों से भी एलर्जी की तकलीफ थी। जब इन्होंने इनहेलर लेना छोड़ा तो इनकी परेशानी और बढ़ गई। इन्होंने वे खाद्य पदार्थ भी खाना शुरू कर दिया जिससे इनकी परेशानी दोगुनी हो गई। इन्होंने परेशानियों का सामना किया लेकिन कोई दवा नहीं ली। कभी-कभी तो इन्हें लगता था इनकी सांस रूक जाएगी। फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी। 2018 किलिमंजारो की चढ़ाई को बच्चों की सुरक्षा के लिए समर्पित किया था। इस मौके पर इन्हें बंगाल सरकार ने सम्मानित किया था।

करीब सात साल तक ये इस पीड़ा से गुजरे लेकिन नियमित एक्सरसाइज, अनुशासन, खानपान और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत सात साल में अस्थमा जैसी बीमारी को हरा दिया। अस्थमा पीडि़त लोगों के लिए कहते हैं कि अपनी परेशानी का आमना-सामना करने में कोई गुरेज नहीं करना चाहिए। हर तरह की बीमारी और कठिनाई को हिम्मत से हराया जा सकता है और इन्होंने ऐसा कर दिखाया है। ये सफल पर्वतारोही होने के साथ इंजीनियर भी हैं। इन्होंने हाल ही गिनिज बुक ऑफ वल्र्ड रेकॉर्ड में दुनिया की सात सबसे ऊंची चोटियों पर देश का तिरंगा फहराने का रेकॉर्ड अपने नाम किया है। इसके साथ ही इन्होंने सात ज्वार भाटा (वोलकेनिक समिट) की चढ़ाई करने का कीर्तिमान अपने नाम किया है। ये देश के दूसरे पर्वतारोही हैं जिन्होंने ज्वार भाटा की चोटी ‘माउंट ओजोस डेल सलादो’ को फतह किया था। इन्होंने पर्वतारोहण के गुर दार्जलिंग के हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट से सीखा है।

ऑस्टे्रलियाई रेकॉर्ड तोड़ा

35 साल 262 दिन की उम्र में इन्होंने हाल ही ये कीर्तिमान एंटार्टिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट सिडले की 4,285 मीटर की चढ़ाई माइनस 40 डिग्री के तापमान में पूरा करने के बाद बनाया है। इससे पहले ये रेकॉर्ड ऑस्ट्रलियाई पर्वतारोही डेनियल बुल के नाम था जिन्होंने 36 साल 157 दिन की उम्र में हासिल किया था। शादी के सवाल पर ये हंसते हुए कहते हैं कि ‘मुझसे शादी कौन करेगा मेरे ऊपर 43 लाख रुपए का लोन है’।

पर्वतारोही के साथ अच्छे वक्ता

इंजीनियरिंग और पर्वतारोहण के साथ ये एक बेहतरीन प्रेरक वक्ता हैं जिन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ती है। ये अब तक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, आइआइटी और कई तरह के बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लेक्चर दे चुके हैं। ये युवाओं के लिए कहते हैं कि मन में एक बार जो चीज ठान ली है उससे किसी भी कठिनाई में पीछे नहीं हटना चाहिए। जो सभी कठिनाईयों और बाधाओं को पार करते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ता है वही कामयाब होता है। विफलता को हार नहीं बल्कि उसे जीत हासिल करने का जरिया बनाना चाहिए क्योंकि असफलता के बाद जो जोश और जुनून सफल होने के लिए भीतर से उठता है उसे अपने सिवा कोई पहचान नहीं सकता है। ये कहते हैं कि पहाड़ी की चोटी पर पहुंचने में पोर्टर आपकी मदद करते हैं लेकिन जब दक्षिणी पोल की दूरी तय करना था सब कुछ खुद करना था। फिर भी हार नहीं मानी। 50 किलो. का बैग पीठ पर लादकर 111 किमी. की दूरी को छह दिन में पूरा किया था।

फिटनेस का रखते हैं पूरा खयाल

सत्या पहाड़ी की चोटियों की चढ़ाई अपनी फिटनेस के दम पर पूरी करते हैं। ये नियमित रनिंग और एक्सरसाइज के साथ जिमिंग करते हैं। खानपान में पोषक तत्त्व वाले आहार लेने के साथ बहुत अधिक तले भुनी चीजें खाना पसंद नहीं करते हैं। युवाओं को फिट और एक्टिव रहने के लिए कहते हैं कि रोजाना कम से कम 30 से 45 मिनट की सैर सभी को करनी चाहिए। इससे व्यक्ति तरोताजा महूसस करने के साथ अपना काम अच्छे ढंग से करता है।

तारीख-दर तारीख जब बना इतिहास

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