वर्क एंड लाईफ

सहेजना होगा हमारी धरोहरों को

इतिहास सिमटा पड़ा है इन धरोहरों में

Sep 14, 2018 / 10:11 am

सुनील शर्मा

work and life, opinion, rajasthan patrika article, abhaneri, bhangarh

– चन्द्रकांता शर्मा
आभानेरी या अभय नगरी के बारे में किंवदंति है कि यह भूतों की नगरी है, इसे भूतों ने एक ही रात में बनाया था। देखने पर भी कुछ ऐसा ही लगता है जैसे यहाँ भूत बसते हो। यहाँ की अनूठी शिल्पकला, भूल-भूलैया तथा अनुपम कुण्ड रचना देखकर यही आभास होता है कि यह रचना आदमी के बस की नहीं। अवश्य यह सारा शिल्प किसी अलौकिक प्राणी का ही हो सकता है। कुछ भी हो आभानेरी प्राचीन प्रतिहार-कालीन मूर्ति और शिल्प कला का अनोखा विश्वविख्यात स्थल है। जयपुर-आगरा रेल मार्ग पर बांदीकुई जंक्शन से यह स्थान 6 कि.मी. तथा जयपुर के सडक़ मार्ग से 100 कि.मी. दूर है।
प्रकृति की गोद में अवस्थित यह अत्यन्त रमणीक स्थल है। यह हिन्दू कला का बेजोड़ केन्द्र रहा है। इसीलिए यह मुगल आक्रमणकारियों का कई बार कोपभजन हुआ है। कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने इस कला केन्द्र की तमाम प्रस्तर प्रतिमाओं को अपनी सेना द्वारा अंग-भंग करवा दिए थे। यही कारण है कि आज भी वहाँ बिखरे पत्थरों पर जो मूर्तियाँ उकेरी गई हैं, उन सबके नाक, कान, हाथ, पाँव, सिर या आँख कोई न कोई अंग टुटा हुआ है। काफी बड़े भाग में फैले इस ऐतिहासिक स्थल के किसी भी पत्थर को उठाकर देख लिया जाए, उसमें कोई न कोई मूर्ति बनी हुई है।
आभानेरी नगर किसी जमाने में उजडक़र धराशायी हो चुका था तथा उसका काफी बड़ा भाग मिट्टी में दब भी गया था। लेकिन बाद में जब भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा इसकी खुदाई की गई तो इसमें मकान, रास्ते तथा गलियारे मोहनजोदड़ों की तरह ज्यों के त्यों निकल पड़े। वर्तमान में जो देवी का मन्दिर है उसमें बहुत बड़े दायरे में सात परिक्रमाएँ हैं, जिनमें से केवल चार परिक्रमाएँ ही खोदी गई हैं।
ऊपर अवस्थित इस मन्दिर का मण्डप लगभग जीर्ण-शीर्ण हो चुका है तथा फिर भी खण्डहर इस बात को बताते हैं कि यह शिल्प अपने जमाने का सर्वथा मौलिक और अनूठा शिल्प है। मन्दिर के सामने दांयी ओर एक अद्भुत कुण्ड है। जिसकी सीढिय़ों को आज तक कोई नहीं गिन पाया है। यदि एक सीढ़ी पर कोई छोटी चीज रख दी गई है तो उसे पुन: ढ़ूंढ़ पाना बिल्कुल असम्भव है।
सीढिय़ों की रचना इतने अलौकिक ढ़ंग से हुई है कि प्रतिहार तथा गुप्तकालीन शिल्पकला का यह सामंजस्य देखते ही बनता है। हजारों सीढिय़ों के बाद तारों की तरह टिमटिमाता जल कुण्ड, जिसमें पानी कभी कम या सूखता नहीं। लोग नीचे तक उत्तर कर इसके पानी में नहाते हैं। इस जल कुण्ड के ऊपर ही नीचे की ओर अंधेर-उजाली है, जिसमें प्रवेष की मनाही है। अद्भुत ढ़ंग से बनी इस भूल-भूलैया की रचना पर बड़े-बड़े शिल्पी हैरानी व्यक्त करते पाए गए हैं।
यह स्थान अभी उसी हालत में पड़ा है जिसमें यह था। अभी यह इतिहास में सिमटा पड़ा है। इस स्थान का समुचित विकास होकर पर्यटन स्थल के रूप में विस्तारित किया जाना चाहिए। तभी इसकी ऐतिहासिकता, शिल्प और पौराणिक मूर्तिकला का कोई अर्थ रह जाता है।

Home / Work & Life / सहेजना होगा हमारी धरोहरों को

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.