
गजल
खौफ हवाओं में फेले जहर का रहता हैं!!
ऐसा मशवरा मेरे शहर का रहता है!!
ऐसा सबक अगले पहर का रहता है!!
फिर हमपे साया भी मेहर का रहता है!!
आजकल तो साथ भी कहर का रहता है!!
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