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न कह सकने का दुख

न कह सकने का दुख

Aug 29, 2021 / 09:37 pm

Deovrat Singh

कैलाश मनहर
न कह सकने का दुख
कुछ भी तो दुख नहीं था उसे
किन्तु सुख कहां था जैसा वह चाहता था
समय पर भोजन-पानी मिल जाता था
ऋतुओं के प्रभाव शरीर पर
न डाल सकने वाली व्यवस्थाएं थीं
जब चाहे सोता और जागता था
कुछ भी तो दुख नहीं था उसे
किन्तु सुख कहां था जैसा वह चाहता था

वह बात करना चाहता था किन्तु
सब इतने व्यस्त रहते थे कि
किसी के पास फुर्सत नहीं थी और
उसकी तमाम बातें अधूरी सुनी जातीं थीं
कोई भी बात पूरी न सुना पाना
उस समय दुख नहीं कहा जाता था
सिर्फ बात न सुना पाना भी क्या कभी
दुख की श्रेणी में माना जाता है

वह डरा-डरा-सा रहता था अक्सर
चिन्ताओं से घिरा रहता था हरेक की
और जिनकी चिन्ताओं से वह घिरा रहता था
वे सब उसे ढाढ़स देते रहते थे कि
वह अकारण चिन्ता करना छोड़ दे
इसीलिए कहा मैंने कि कुछ भी तो दुख
नहीं था उसे कि आखिर
जो कहा जाना है
वह न कह सकना भी कोई दुख है भला

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