Best Hindi Poetry: शेषनाग वर्सेज फेसनाग
जयपुरPublished: Sep 06, 2021 04:04:02 pm
शेषनाग वर्सेज फेसनाग
शेषनाग वर्सेज फेसनाग
संजय झाला एक दिन सर्पराज 'शेषनाग'
मां पृथ्वी से बोले,
'मैं तुझे अपने सिर पर
ढ़ोते- ढ़ोते हो गया हूं परेशान
तत्काल ढूंढ लो कोई और स्थान'
पृथ्वी मां बोली,'ठीक है,'सर्पपति'
मैं अब और जगह खंगालती हूं,
मैं तुमसे छोटी हूं, लेकिन अपनी छाती पर
तुमसे बड़े- बड़े पालती हूं,
विश्वास नहीं होता एक भी परसेंट
फिर मेरे साथ चलो पार्लियामेंट'
शेषनाग थोड़ा झल्लाए
और पृथ्वी के साथ पार्लियामेंट आए
'शेषनाग' ने पहली बार 'फेसनाग' देखे
दोनो में क्या है फर्क
इस बात पर शुरू हुए तर्क
एक 'श्वेतनाग' ने 'शेषनाग' को
अपनी कसौटी पर तोला -सतोला,
और बोला,
'तुम 'सर्पपति' हो, तो हम 'सभापति' हैं,
तुम्हारे पास हजार 'फण' हैं,
हमारे पास हजार 'फन' हैं,
तुम्हारे पास 'मणि' है,
हमारे पास 'मनी' है,
तुम्हारे पास 'फफकार' है,
हमारे पास चुनाव से पहले 'पुचकार' है,
फिर 'फुफकार' है,
शेषनाग क्रोधित होकर बोले,
'मेरे पास कालकूट है... जहर है;
'बस करो शेषनाग'
एक श्वेतनाग बोला,'इतनी बात तो हम
किसी की नहीं सहते हैं,
आप जिसे जहर कहते हो,
संसदीय भाषा में उसे 'राजनीति' कहते हैं।