scriptएक मजबूत साक्ष्य – मृत्युकालीन कथन | Dying man's statement and its importance in indian judicial system | Patrika News

एक मजबूत साक्ष्य – मृत्युकालीन कथन

Published: Feb 20, 2018 04:30:03 pm

इस तरह मृत्युकालिक कथन एक ऐसा मजबूत साक्ष्य है कि यदि यह उपलब्ध हो तो अन्य साक्ष्यों की उपलब्धता या अनुपलब्धता का कोई महत्व नहीं रह जाता।

indian court
– शालिनी कौशिक

साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 में वे दशाएं बताई गयी हैं जिनमे उस व्यक्ति द्वारा सुसंगत तथ्य का किया गया कथन सुसंगत है जो मर गया है या मिल नहीं सकता इत्यादि, और ऐसे में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है धारा 32 जो कि मृत्यु के कारण से सम्बंधित है, इसमें कहा गया है –
”जबकि वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हुई, तब उन मामलों में, जिनमे उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत हो।
ऐसे कथन सुसंगत हैं, चाहे उस व्यक्ति को जिसने उन्हें किया है उस समय जब वे किये गए थे मृत्यु की प्रत्याशंका थी या नहीं और चाहे उस कार्यवाही की, जिसमे उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है, प्रकृति कैसी ही क्यों न हो,
– एम् सर्वना उर्फ़ के डी सर्वना बनाम कर्नाटक राज्य 2012 क्रि, ला, ज;3877 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है -कि मृत्युकालीन कथन किसी व्यक्ति के द्वारा उस प्रक्रम पर जब उसकी मृत्यु की गंभीर आशंका हो अथवा उसके जीवित बचने की कोई सम्भावना न हो, किया गया अंतिम कथन है। ऐसे समय पर यह अपेक्षा की जाती है कि व्यक्ति सच और केवल सच बोलेगा। सामान्यतः ऐसी स्थितियों में न्यायालय ऐसे कथन के प्रति सत्यता का आंतरिक मूल्य संलग्न करते हैं।
-मुरलीधर उर्फ़ गिद्दा बनाम स्टेट ऑफ़ कर्नाटक5 एस सी सी 730 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि -मृत्युकालीन कथन के लिए पवित्रता संलग्न की गयी है क्योंकि यह मरने वाले व्यक्ति के मुख से आती है,।
-स्टेट ऑफ़ कर्नाटक बनाम स्वरनम्मा, 2015, 1 एस सी सीमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा -”कि जहाँ मृत्युकालीन कथन, मजिस्ट्रेट के साथ ही साथ पुलिस अधिकारी के द्वारा अभिलिखित किया गया था तथा पुलिस अधिकारी के द्वारा अभिलिखित किया गया मृत्युकालीन कथन संगत था परन्तु मजिस्ट्रेट के द्वारा अभिलिखित किया गया मृत्युकालीन कथन संगत नहीं था तब पुलिस अधिकारी के द्वारा अभिलिखित किये गए मृत्युकालिक कथन पर विश्वास व्यक्त किया जा सकता है, ”इस तरह मृत्युकालिक कथन एक ऐसा मजबूत साक्ष्य है कि यदि यह उपलब्ध हो तो अन्य साक्ष्यों की उपलब्धता या अनुपलब्धता का कोई महत्व नहीं रह जाता।
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