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हमारी विदेश नीति और शांति की राह

Published: Nov 01, 2017 04:05:28 pm

गांधीवादी सोच की आज के दौर में प्रासंगिकता

PM Narendra Modi

PM modi

– शोभा

भारत के दो पड़ोसी देश जिनसे देश की कई किलोमीटर सीमा मिलती है दोनों ही दुश्मन हैं। देश दो तरफा संघर्ष झेल रहा है। पाकिस्तान द्वारा बढ़ती आतंकी गतिविधियाँ और चीन द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करना, चीन का भारत से सीमा विवाद। भूटान के क्षेत्र डोकलाम पठार में चीन ने सड़क बनाने की कोशिश की, क्षेत्र भारत के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है यदि सड़क बन जाती, तो चीन भारत के बीस किलोमीटर चौड़े मार्ग जो चिकननेक कहलाता है, तक पहुंच जाता। चिकननेक भारत को नार्थ ईस्ट से जोड़ता। इससे यहाँ चीन अपना प्रभाव बढ़ा लेता। लगभग 73 दिन तक दोनों देशों में तनाव रहा।
चीन दक्षिण चीन सागर पर भी दावा करता है। उसका वियतनाम ,जापान और फिलिपीन से भी विवाद है। भारत को वह हिंदमहासागर में चारों तरफ से घेरना चाहता है। मिडिल ईस्ट पर अधिकार बढ़ाकर क्षेत्र के तेल ,गैस व आयरन के भंडार पर कब्जा चाहता है। वह विश्व की सुपर पावर बनने की राह पर है| पाकिस्तान की विदेश नीति के केंद्र में सदैव भारत रहा है। आर्थिक स्थिति खराब है फिर भी कश्मीर के अलगाववादियों के लिए अलग बजट है। धन बल का सहारा लेकर पढ़ने वाले छात्रों के हाथ में पत्थर पकड़ा दिये, वह सुरक्षा बलों पर पथराव करते हैं।
भारत के खिलाफ छद्म युद्ध निरंतर चलता है
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। आजादी के साथ ही कश्मीर वैली पर अधिकार करने के लिए पाकिस्तान ने कबायलियों की फौज भेज दी। कश्मीर के राजा हरी सिंह की प्रार्थना पर भारतीय सेनायें कश्मीर वैली पहुंची। श्रीनगर की रक्षा हो गयी, लेकिन लार्ड माउन्टबेटन भारत के आखिरी गवर्नर जनरल के प्रभाव में नेहरू जी कश्मीर की समस्या को यूएन में ले गये। गाँधी जी का पाकिस्तान की इस हरकत पर भी अहिंसा के सिद्धांत से विश्वास नहीं उठा। वे एक ऐसे भारत और पाकिस्तान की कल्पना कर रहे थे, जहां दोनों देश प्रेम से रहें। गांधी जी की हत्या हो गयी, लेकिन गाँधीवादी अध्याय समाप्त नहीं हुआ था।
द्वितीय युद्ध के अंत के बाद विश्व दो भागों में बंट गया। एक ओर वारसा पैक्ट के मेंबर दूसरी तरफ मित्रराष्ट्र अमेरिकन गुट। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया। हमारी विदेश नीति का मुख्य सिद्धांत पंचशील था। हर देश की सम्प्रभुता की रक्षा की जायेगी, किसी भी देश के आंतरिक मामले में हस्ताक्षेप न हो। हमारी सांस्कृतिक विरासत, हजारों वर्ष पुराने इतिहास में शान्ति अहिंसा और सहनशीलता में ही विश्व कल्याण संभव है, की भावना रही है। साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास, यही हमारी विदेश नीति है। मगर क्या हम शांति से रह सके?
चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। यह भारत-चीन के बीच में तटस्थ प्रदेश था। दलाईलामा के साथ तिब्बती शरणार्थियों ने भारत में शरण ली, लेकिन नेहरू जी के संबंध चीन से बढ़ते रहे। भारत में हिंदी-चीनी भाई -भाई के नारे लगे। उसी भाई ने 1962 में भारत की पीठ में छुरा भोंका। भारत के एक भू-भाग पर कब्जा कर स्वयं ही युद्ध विराम की घोषणा की। लार्ड माउंटबेटन ने भविष्यवाणी की थी कि पाकिस्तान के दो हिस्से 25 वर्ष में अलग हो जायेंगे। पाकिस्तान में होने वाले चुनाव में मुजीबुर्रहमान की आवामी लीग को स्पष्ट बहुमत मिला, लेकिन भुट्टो किसी भी तरह सत्ता को हाथ से जाने नहीं दे रहे थे। जिन्हें प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होना था, उन्हें जेल में डाल दिया गया। यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव पड़ गई।
पाकिस्तान की विदेश नीति में जबर्दस्त बदलाव आया। वह जानते थे कि युद्ध में भारत को हराना आसान नहीं है। अत: अफगानिस्तान की समस्या हल हो जाने के बाद आतंकी संगठन लश्करे तैयबा का रुख भारत की तरफ मोड़ दिया। इन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद प्राप्त है। इस्लामिक स्टेट की विचारधारा के बाद आतंकवाद विश्व की समस्या बन चुका है। समय की जरूरत को देखते हुए भारत की विदेश नीति भी बदली है। डॉ मनमोहन सिंह जी के समय से ही प्रो अमेरिकन हो रही है।
देश को निवेश की जरूरत है और दुनिया के देश भारत को बाजार के रूप में देख रहे हैं। पाकिस्तान न शांति से जीता है न भारत को शांति से विकास की राह पर चलने देता है। वहां चार शक्तियां देश चलाती हैं। जनता द्वारा चुनी सरकार है, सेना, आईएसआई और हाफिज सईद जैसे दबाव समूह, जिनकी रूचि देश कल्याण की अपेक्षा जेहाद में अधिक है। अब तो वह सत्ता पकड़ने के लिए प्रयत्नशील हैं। देश की नौजवान पीढ़ी को भारत के खिलाफ भड़का कर आतंकवाद के रास्ते पर ले जाना उनका उद्देश्य है। गांधीवादी विचारधारा आतंकियों या आतंकी आकाओं के सामने बेकार है। सरकार ने सख्त नीति अपनाकर सुरक्षाबलों को आतंकियों को मारने का अधिकार दिया। सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों में भय पैदा किया। क्या शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिये? यही कूटनीति है।
– ब्लॉग से साभार

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