इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
मैंने देखा कि उनकी आंखें विस्मय और कौतूहल से चमक रही हैं

मैंने देखा कि उनकी आंखें विस्मय और कौतूहल से चमक रही हैं ....!!... कॉलेज में अपने पहले दिन अपनी अध्यापिका से उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि वह उनसे कहे कि आप परीक्षा में अंक लाने के लिए ना पढ़ें... और न मैं उस पद्धति से आपको पढ़ाऊंगी जिससे विद्यार्थी परीक्षा में अंक तो ले आते हैं लेकिन अपने और अपने समाज के खिलाफ हो रही साजिशों को समझने और उनका विरोध करने की कुव्वत पैदा नहीं कर पाते!
हर नए साल कॉलेज में पप्पू पाठशालाओं से पास होकर आने वाले विद्यार्थियों की इस जमात के दिमाग की खिड़कियों को अब नहीं तो कब खोलेंगे? बेहतर है कि ये बच्चे जान लें कि व्यवस्थाएं सदैव व्यक्ति विरोधी होती हैं वहां केवल चूहेमारी चलती है! कोई भी व्यवस्था, विरोध को नहीं उगने देना चाहती इसलिए ये सुनिश्चित किया जाता है कि शिक्षा के दुश्चक्र से एक भी क्रांतिकारी ना पैदा होने पाए! व्यवस्थाएं कोई प्रश्न या असुविधाजनक स्थिति नहीं चाहतीं वे केवल भक्त चाहती हैं... अंधभक्त... जी हुजूर... लिजलिजे गिलगिले चूहेमार...!
व्यवस्थाएं सारे कायदे-कानून और फैसले ताकतवर पूंजीपतियों के हक में बनाती हैं!... व्यवस्थाएं सीसैट और फोर यीयर सिस्टम जैसे हथियार अपनाकर हमें ज्ञान और विकास के पहले पायदान पर भी पहुंचने देना नहीं चाहतीं! वे हमारे बौद्धिक संसाधनों का विदेशी औपनिवेशिक ताकतों के हित में इस्तेमाल करती हैं...
...मैंने उन्हें बताया कि एक "कोड ऑफ प्रोफेश्नल एथिक्स" नाम की चीज विश्वविद्यालय में लागू की गई थी ताकि कोई भी टीचर विद्यार्थियों को सिर्फ सतही और सूचनात्मक ज्ञान ही दे सके, उन्हें चिंतनशील प्राणी ना बना सके... उन्हें आलोचनात्मक ज्ञान और विवेक ना दे सके! मैं इस आचरण संहिता का तहेदिल से विरोध करती हूं जो मेरे व मेरे विद्यार्थियों के शिक्षण-अधिगम के रास्ते में आए! शिक्षक व्यवस्था का गुलाम ना होता है ना बनाया जा सकता है! वह चाण्क्य हो सकता है वह गांधी हो सकता है ताकि कोई हिटलर न पैदा हो सके!...
मैं साहित्य पढ़ाती हूं और साहित्य का काम ही है आइना दिखाना अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना! अन्याय और कुव्यवस्था के प्रति विरोध करने की प्रेरणा देना... जब व्यवस्थाएं मनमानी करें तो उन्हें पलट देना... क्रांति के जरिए एक समतामूलक समाज की स्थापना करने की पहल करना... मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखने का धैर्य उत्पन्न करने की शक्ति का आह्वान करना... अपनी सम्प्रभुता को हर कीमत पर बचाए रखने का हौसला देना...!!
मैंने अपने प्रिय नए विद्यार्थियों से हूबहू यही संवाद करते हुए उनमें यह विश्वास जगाया कि भले ही वे अति साधारण वर्ग के बच्चे हैं लेकिन वे इस देश का उज्ज्वल भविष्य हैं, नए समाज की आधारशिला हैं, नई क्रांति के अग्रदूत हैं, और उनसे ही अब कोई उम्म्मीद बची है...!! इस व्यवस्था की सभी वंचनाओं, षड्यंत्रों, अन्याय की परम्परा के लिए हम बड़ी पीढ़ी उत्तरदायी है, जिसके लिए हो सके तो हमें क्षमा कर देना! पता नहीं अपने इस संवाद में मैं कितनी सफल रही, पर अगर इनमें से एक भी विद्यार्थी जग गया तो विरोध और क्रांति की आग जलती रह सकेगी...
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
- नीलिमा चौहान
(ब्लॉग से साभार)
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