– रितुप्रिया शर्मा
वृद्धावस्था मानव जीवन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें मानव को सहारे की आवश्यकता प्रत्येक क्षण पड़ती है। कई बार तो यह आवश्यकता इतनी बढ़ जाती है कि व्यक्ति को अपने दैनिक कामकाज पूरा करने के लिए पूरी तरह दूसरे लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। हर व्यक्ति को उम्र के इस पडाव को पार करना ही पड़ता है। समाज ने जितनी भी प्रगति की है, उस प्रगति की नींव इन्हीं वृद्धों की डाली हुई है। पर समाज आज जितना आगे बढ़ा है उतना ही वह इस सच्चाई से पीछे भी हटा है कि वृद्ध इसी समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। समाज अपनी इस इकाई से मुँह भला कैसे मोड़ सकता है। यह सिद्ध हो चुका है कि वृद्धावस्था आदमी की तरक्की में रूकावट नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी, अब्दुल कलाम आदि तो युवाओं के लिए भी प्रेरणा-स्त्रोत हैं। फिर क्यों हमारा समाज वृद्धों को समाज से किसी सड़े हुए अंग की तरह काट कर फैंक देता है।
ऐसी बात नहीं है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति की यह सोच है। पर ज्यादातर लोग वृद्धों को घर में पड़े फालतू सामान के नजरिये से देखते हैं, जिसका वर्तमान में कोई प्रयोग नहीं है। वृद्धों के प्रति यही नजरिया उन्हें उपेक्षा का शिकार बनाता है। वृद्ध असहाय हो जाते हैं तथा तनाव का शिकार बन जाते हैं। अच्छी नौकरी वालों से लेकर नीचे तबके के वृद्धों के लिए किसी के पास वक्त नहीं है। उनकी बातें आज की पीढ़ी को फिजूल लगती हैं। इस तरह दो या तीन पीढ़ियों के बीच का वार्तालाप लगभग एक चुप्पी में तब्दील हो चुका है। वृद्धों की एक विकट समस्या उनके स्वास्थ्य को लेकर है। वृद्धावस्था में वैसे ही शरीर जीर्ण हो जाता है। व्यक्ति दूसरे लोगों पर निर्भर होता है। इस पर भी यदि दवाई समय पर उपलब्ध न कराई जाए तो वे एक जीवित लाश की तरह हो जाते हैं। कई वृद्धों को तो पेन्शन मिलने के बावजूद भी दवाई नसीब नहीं होती क्योंकि उनकी पेन्शन का प्रयोग घर के दूसरे कामों में कर लिया जाता है।
सरकार ने प्रत्येक पेन्शनर के लिए कुछ दवाईयों की निःशुल्क व्यवस्था भी कर रखी है किन्तु ये दवाईयाँ भी मिल जाए तो बहुत बड़ी बात है। इसके अतिरिक्त वृद्धावस्था पेन्शन की व्यवस्था की है जो कि निर्धन वृद्धों के लिए हैं लेकिन पहली बात तो वह सही हाथों में नहीं जा पाती तथा दूसरा यह मदद अपर्याप्त है। वृद्धों की एक और बड़ी समस्या उनकी प्रोपर्टी पर उन्हीं के बच्चों की नजर हैं। जल्द से जल्द उनके बच्चे प्रोपर्टी पर हक चाहते हैं। इससे घरों में झगड़े व तनाव बढ़ रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर आपसी झगड़ों का सामना करना उनके बर्दाश्त से बाहर है। ये टकराव वृद्धों से ही नहीं होते बल्कि आपस में भाईयों में भी होते हैं, जिससे वृद्धों के कष्ट और बढ़ गए।