सुविधाओं के बाद भी सरकारी स्कूलों से अभिवावकों की दूरी
सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। कॉपी-किताबें और दोपहर का भोजन दिया जाता है, स्कूल यूनिफॉर्म के साथ साथ छात्रवृत्ति भी दी जाती है। इसके बावजूद अभिभावक पूरी फीस देकर बिना किसी सुविधाओं के अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूलों में भेजते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। बच्चे तो आते हैं लेकिन शिक्षक नहीं। कई बार तो शिक्षक स्कूल आते ही नहीं हैं और साथी शिक्षकों से रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज करा देते हैं।
सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। कॉपी-किताबें और दोपहर का भोजन दिया जाता है, स्कूल यूनिफॉर्म के साथ साथ छात्रवृत्ति भी दी जाती है। इसके बावजूद अभिभावक पूरी फीस देकर बिना किसी सुविधाओं के अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूलों में भेजते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। बच्चे तो आते हैं लेकिन शिक्षक नहीं। कई बार तो शिक्षक स्कूल आते ही नहीं हैं और साथी शिक्षकों से रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज करा देते हैं।
महंगी फीस के कारण नहीं मिल पाती उच्च शिक्षा
अब अगर हम बात करें उच्च शिक्षा की तो आज भी ग्रामीण भारत के छात्रों के लिए ये चुनौती का विषय है। गाँव के बहुत कम युवा ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पा रहे हैं। हालांकि ग्रामीण युवाओं का रुझान उच्च शिक्षा की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। पाठ्यक्रम का अंग्रेजी में होना, मात्र खेती की आय से कॉलेजों की फीस पूरी न होना और पारिवारिक जिम्मेदारियां ग्रामीण युवाओं की शिक्षा के बीच रोड़ा पैदा करतीं हैं। रुझान और जागरूकता के बाद भी उच्च शिक्षा में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं और शहरों के बीच एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है।
अब अगर हम बात करें उच्च शिक्षा की तो आज भी ग्रामीण भारत के छात्रों के लिए ये चुनौती का विषय है। गाँव के बहुत कम युवा ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पा रहे हैं। हालांकि ग्रामीण युवाओं का रुझान उच्च शिक्षा की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। पाठ्यक्रम का अंग्रेजी में होना, मात्र खेती की आय से कॉलेजों की फीस पूरी न होना और पारिवारिक जिम्मेदारियां ग्रामीण युवाओं की शिक्षा के बीच रोड़ा पैदा करतीं हैं। रुझान और जागरूकता के बाद भी उच्च शिक्षा में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं और शहरों के बीच एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है।
इसका कारण बताते हुए गिरि विकास अध्ययन संस्थान के प्रोफेसर डॉ जीएस मेहता बताते हैं, गाँव के बच्चे इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा लेने से कतराते हैं क्योंकि वो शुरू से सरकारी स्कूलों से पढ़कर आते हैं और आजकल की तकनीकी शिक्षा इतनी विकसित हो चुकी है कि उनको समझने में काफी दिक्कत होती है। जीएस मेहता ने ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा पर गहन अध्ययन किया है। बताते हैं कि संसाधनों की कमी के कारण ग्रामीण युवाओं के लिए बड़े कॉलेजों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है अगर किसी तरह उन्हें एडमिशन मिल भी जाता है तो आगे वो एक या दो सेमेस्टर के बाद कोर्स छोड़ देते हैं। खेती करने वाला किसान बड़े कॉलेजों की फीस नहीं भर पाता और कर्ज में डूब जाता है।”
वो आगे बताते हैं ” अंतराष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान संघ ने 2013 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के नामांकन अनुपात में एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है। जहां शहरों में नामांकन दर 23 प्रतिशत है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 7.5 प्रतिशत है। महिलाओं की बात करें तो शहरी क्षेत्र में दर 22 प्रतिशत है वहीं गाँव में महज 5 प्रतिशत है”। ऐसे में बात अगर शिक्षा बजट का जायजा लिया जाए तो हम पाएंगे कि हर वर्ष सरकारी स्कूलों के लिए प्रदेश सरकार अरबों रुपए का बजट देती है, इसके बावजूद सरकारी स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था पटरी पर नहीं आ रही है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इस बार के शिक्षा बजट में उच्च शिक्षा के लिए 15 हजार करोड़ बजट बढ़ाया है, इससे इस क्षेत्र को 1.3 लाख करोड़ उपलब्ध करवाएं जाएंगे।