कविता-कितने खुशबू भरे दिन थे वे
जयपुरPublished: Sep 12, 2021 05:58:06 pm
Hindi Poem
कितने खुशबू भरे दिन थे वे
-डॉ. अतुल चतुर्वेदी
पुराने अदरक को छूते हुए उसने कहा -
खुशबू कहां बची है?
बची नहीं है वो माटी के सौंधेपन में
रिश्तों की ऊष्मिल गंध में भी कहां बची है
पहले कितना असरदार होता था छौंक
पांचवे मकान तक पता चलता था पकवान का
पूरे मोहल्ले में बंटता था नवान्न
सुख-दुख,हंसी, दर्द सब गांव-गांव बंटते थे
भीगकर भारी हो जाता था धनिया
धान की ताड़ी पी सब झूम-झूम थिरकते थे
सच, कितनी खुशबू बिखरी थी पहले
बोलो तो भीग जाती थी छाती
हंसो तो महीनों खुशनुमा रहता था मन
बसो तो जाने नहीं देती थीं मनुहारें
कितने खुशबू भरे दिन थे वे
वे लोग थे या जीवित किंवदन्ती
वो समय था या खूबसूरत सपना
वो बस्ती थी या सुरभित उपवन
जहां हर तरफ सद्भावनाओं के सुमन थे
हर छाया में था आशीर्वाद
हर कुएं में था करुणा का जल