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वर्क एंड लाईफ

जहाँ उजाला व भरोसा वहीं उत्सव

जीवन में नया उत्साह देती है दीपावली

Oct 17, 2017 / 04:06 pm

सुनील शर्मा

Special Tips on Nrak Chaturdashi

diwali puja shuh muhurat celebration

– परिचय दास

दीपावली जितना अंत:लालित्य का उत्सव है, उतना ही बहि:लालित्य का। जहां उजाला हो, भरोसा हो, लगाव हो : वहां उत्सव ही उत्सव है। उजाला सामूहिक रूप में प्रसारित हो तो जैसे फूल खिल जाते हैं, उसी तरह दीप की पंक्तियां, जिनमें दीप की निष्ठाएं हैं, दीपावली की आभा रच देती हैं। पंक्तिबद्ध होने में जो लय है, वही तो पृथ्वी की उजास है। एक-एक का लालित्य एवं समूह का लालित्य। समूह जब अनुशासन की ज्यामिति हो तो वह भीड़ नहीं होती। जो लोग लालित्य को गलदश्रु या अतीतपरक दृष्टि से देखते हैं, वे उजाले को कम समझते हैं। लालित्य वस्तुत: प्रकाश व अंधेरे का बेहद खूबसूरत समन्वयपरक रचाव है। उसमें अग्रगामिता है, जैसे दीपावली में। दीपों की पक्तियां आखिर पर्व कैसे बन जाती हैं? पर्व का वृहत्तर तात्पर्य है – ‘स्मृति के हजारों तार झनझना उठें, किंतु अपना समय हम जीते रहें।”
दीपावली हमें उल्लास से भर देती है। दीपावली सौंदर्य का अप्रतिम बिंब भी है, जहां मनुष्य की अनुभूति, अनुभव व संवेदना अपना आकार लेती है। दीपावली की ज्योति-प्रक्रिया, स्रोत व संरचना एक ऐसी मानुषिकता पर आधारित है, जो सबको जोड़कर चले। दीया में दो बातियां मिलती हैं। बाती स्नेहसिक्त होनी चाहिए। यानी स्नेह के बगैर प्रकाश की कल्पना भी संभव नहीं। हमारा समय जिस तरह नकारात्मकता और हीनता का लोभी हुआ है, उसमें स्नेह की और भी जरूरत है। स्नेह से ही पर्यावरण बनता है, असल कलात्मकता आती है। स्नेहरहित होने का अर्थ है – कला के सौंदर्य का क्षरण। दीपावली सौंदर्य की महत्ता का पर्व है। दीपावली गरीब-अमीर की मीमांसा की हदबंदियों से निकलकर नए क्षितिज छू लेती है।
दीपावली समाज व व्यक्ति के जीवन के कुरूप पाठों को नया रूपांकन देती है। कृषि संस्कृति में पीड़ाओं व दु:खों के बावजूद उल्लास व उजास के इतने शेड हैं कि देखते ही बनते हैं। सभी एक जैसे मौसम का आनंद उठाते हैं, जिसे सम कहा जा सकता है : न गर्मी, न सर्दी। मिट्टी की कला के इतने सारे रूप इस समय देखने को मिलते हैं कि शायद सालभर न मिलते हों। भिन्न-भिन्न तरह के दीये, हाथी-घोड़े, पेड़-पौधे सभी कुछ मिट्टी की कला में। हमारे यहां इन कलाओं को संरक्षित किए जाने की जरूरत है। वह सबकुछ जो हमें कलात्मक रूप से समृद्धि दे, वैभव दे, उसे बचाके रखा जाना चाहिए। मध्य वर्ग, निम्न वर्ग, किसान आदि दीपावली को नई अभिव्यंजना देते हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि इनकी ओर ध्यान जाना चाहिए। दीपावली के वैभव से किसान का वैभव रचा जाना चाहिए। इसका विपर्यय यह है कि किसान के वैभव में ही दीपावली का वैभव छुपा हुआ है। मेरी दृष्टि में किसान के लिए नई नीति तैयार की जानी चाहिए, ताकि उसे कर्ज से मुक्ति मिल सके। निम्न व मध्यम वर्ग को भी केवल ‘रियायत” के बल पर लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता। उसे नई नीति बनाकर आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। आजीविका की खोज में दौड़ रहे युवाओं को स्वावलंबी बना सकें, तो यह बड़ा कार्य होगा। धर्मों ,जातियों, लिंगों, प्रांतों, भाषाओं की खींचतान के बदले एक ऐसा समंजनपूर्ण विकास चाहिए, जो गत्यात्मक व विवेकपूर्ण हो। विनाश के तट पर खड़ा विकास नहीं चाहिए। केवल गांव या केवल शहर की अतिवादी सोच नहीं चलेगी। विकसित गांव व मानवीय शहर ही हमारे जीवन के भविष्य को नया पथ दे सकते हैं। शहर तो हमें चाहिए परंतु ऐसे जो मानवीय संबंधों को बचाए रख सकें।
बगैर परिवर्तन के नई आभा नहीं रची जा सकती। यदि बड़े परिवर्तन न संभव हो सकें, तो छोटे-छोटे बदलाव सृजन की दीपावली ला सकते हैं। जो सृजनधर्मी वृहत्तरता के सापेक्ष नीति होगी, वह समाज, राज व व्यक्ति सबसे सकारात्मक रूप से जुड़ी होगी। यहां ‘इतिहास” का अर्थ अपने वर्चस्व को घटना-रूप देना है। इससे अलग जाना होगा। वर्चस्व को तोड़कर ही छोटे-छोटे दीये रास्तों, दीवारों व चौबारों में जल सकते हैं। ‘लघु मानव” अपनी आत्मा में ‘वृहत” होता है। उसे पता है कि नव-इतिहास के नाम पर चल रहा नव-मार्क्सवाद, सांस्कृतिक भौतिकवाद, जाति, लिंग, वर्गवाद सबकुछ अब धूमिल पड़ने लगे हैं। क्या भाषा वह कहने में असमर्थ है, जो वह कहने का दावा करती है? भाषा और साहित्य जिस सच्चाई का चित्रण करते हैं, उस आधार पर कैसे तय होगा कि सच्चाई क्या है? हम अर्थों को स्थगित कर रहे, प्राप्त नहीं।
दीपावली अर्थों की तहों में जाने का दु:साध्य प्रयत्न है। किसी भी सृजनात्मकता में कई आवाजें होती हैं। दीपावली एक लालित्यपूर्ण सृजनात्मकता है। वहां उजाले में संवाद है। उजाला ही बतकही है। संवाद की स्थिति शब्दों के साथ मानवीय सृजनात्मकता में मौजूद रहती है। उजाले की निजता दीपावली को स्पेस देती है। उजाले की प्रसारणशीलता उसके सामाजिक पक्ष को आयाम देती है। दीपावली परिवर्तन, सौंदर्य, निजता, स्वायत्तता, ज्योति व लघु अंधकार का समन्वयन एक साथ स्थापित करती है। लघुता को सम्मान देती है यह। छोटा दीया आत्म का संपूर्ण विस्तार करता है। वह संवेदना, संवाद व संप्रेषण की स्थिति की ओर ले जाता है। हमें निचले दर्जे की राजनीतिक स्पर्द्धा, संवादहीनता व विद्वेष की भावनाओं से परे जाना है, तभी दीपावली का असली डिस्कोर्स समझ में आएगा। दीपावली हमारे भीतर के सृजन को ऊर्जा व आभा देती है। सृजन की दियरियाँ ही दुनिया को नव-नूतन बनाती हैं। दीपावली बहुलता का रूप है, जिसमें हर दीया सृजन की स्वायत्तता है।

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