scriptनएपन को कैसे अपना रहे हैं हम | How we are adopting new trends | Patrika News

नएपन को कैसे अपना रहे हैं हम

Published: Mar 19, 2018 01:44:40 pm

तकनीक से जुड़ती इस दुनिया में हम संवर रहे हैं या बिगड़ रहे हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि हम नयेपन को किस तरह और कितना अपना रहे हैं।

social media

girl chating on social media

– स्वाति

तकनीक से जुड़ती इस दुनिया में हम संवर रहे हैं या बिगड़ रहे हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि हम नयेपन को किस तरह और कितना अपना रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते प्रकार और उसे उपयोग करने वाले लोगों के बढ़ते तादाद कई मुश्किलें आसान कर रही हैं और कई नये मुसीबतों को आमंत्रण भी दे रही हैं। शोकाकुल व्यक्ति भावनाओं के उस अतिरेक पर पहुँच जाता है जहाँ विवेक सामान्यतः शिथिल पड़ जाता है। ऐसे में इंसान का वश उसके क्रियाकलापों पर नहीं रहता है।
रोज़ फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्स ऐप, ट्वीटर सरीखे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अजनबियों के करीब आने और स्वयं एवं अपनों से दूर जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इंसानों के कई गुण-अवगुण, कमजोरी- ताकत को उभारते ये सोशल साइट्स इंसानी स्वभाव की जड़ों को खोद रहे हैं। खुद की परेशानियों और ग़मों में डूबे इंसान अपनी तकलीफों का स्टेटस बना दे रहे हैं और राह चलते लोगों की तकलीफों में मदद करने के बजाय वीडियो या फोटो बनाकर सोशल मिडिया पर शेयर कर दे रहे हैं। इन सबके बीच संवेदनशीलता और इंसानियत अपने अस्तित्व के लिए जूझती जान पड़ती है।
कई लोगों को तो ये भी समझ नहीं आता कि किन निजी बातों को शेयर किया जाए और किसे नहीं! ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो अपने परिवार जनों के शव तक के साथ फोटो खींच इन साइट्स पर डाल दे रहे हैं। अटेंशन सीकिंग समस्या से ग्रसित कुछ लोग फेक आईडी से 3-4 प्रोफ़ाइल बनाकर वो सब शेयर करते हैं जो वो अपनी स्वयं की पहचान के साथ लिख नहीं सकते। इन फेक प्रोफाइल्स का उद्देश्य कई बार दूसरों को परेशान करना भी होता है या उन लोगों के जीवन में झांकना जो किसी कारणवश इनके मुख्य प्रोफाइल को ब्लॉक किए रखते हैं।
ये साइट्स लोगों के निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित करने लगी है। लोगों के सोचने-समझने का तरीका भी इन साइट्स पर वायरल हो रहे संदेशों द्वारा संचालित हो रहा है। बात किसी राजनैतिक दल के बारे में राय की हो या किसी भी घटना की प्रतिक्रिया की हो, यहाँ तक की स्वयं के बारे में राय भी लोग उस हिसाब से बनाने लगे हैं जिस हिसाब से अन्य लोग उनके स्टेटस या पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हैं। इन साइट्स पर फोटो और सूचनाओं की एडिटिंग और मॉर्फिंग करके दुष्प्रचार और दिग्भ्रमित करने में लोग क्या कई गुट भी लगे हुए रहते हैं। दंगे-फसाद बढ़ाने में भी इन सोशल साइट्स की भूमिका खूब रह रही है।
इन्हीं वजहों से किसी भी स्थान पर ऐसी किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण स्तिथि में प्रशासन सबसे पहले स्थानीय मोबाइल नेटवर्किंग, वाई-फाई बंद करवाती है। लोग अपनी निजी परेशानियों का दुःख भी इन साइट्स पर उड़ेल देते हैं। अपने किसी रिश्तेदार और दोस्तों के प्रति नाराजगी भी कह छोड़ने में देर नहीं करते। इन सारे व्यक्तिगत बातों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी और पर दोषारोपण करते हुए लिखने का मतलब अधिकतर स्वयं को बेचारा, पीड़ित, सच्चा और निर्दोष बताना होता है। ऐसी बातों को कभी भी किसी स्तिथि में सही नहीं ठहराया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से दूसरों की बुराई बताने वाले और स्वयं को सच्चा या पीड़ित बताने वाले सन्देश या पोस्ट करते हैं, वो दरअसल मानसिक रूप से बीमार, कमजोर और व्यवहारिक रूप से ***** होते हैं।
निजी जीवन में पसरे परेशानियों और रिश्तों की कड़वाहट को सोशल साइट्स पर नहीं सुलझाया जा सकता है। ऐसा करने से उल्टे मन में खटास और बढ़ती है और लोग अपने रिश्तों के कमज़ोर पड़ते नब्ज़ को और कमजोर करते हैं। दो दोस्तों के बीच की झड़प या देवरानी-जेठानी के बीच का मनमुटाव, पत्नी से नाराज़गी या प्रेमी से ब्रेक अप का दुःख, ये सब सोशल साइट्स पर स्टेटस बन रहे हैं। इस अंधी गली में विरले ही कोई ऐसा मिलता है जो आपकी बातों को सही ढंग से समझ कर उसपर सही मशवरा दे। ऐसे में अपने दर्द की नुमाइश क्यों की जाए? व्यक्तिगत और सामाजिक बातों के बीच का अंतर समझ-बूझ कर ही सोशल साइट्स पर सक्रियता रखना सही है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो