जी हां, कबीर के दोहे “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ” में जीवन की हर लालसा-चिंता-अनिश्चय का जवाब है। मैं इस दोहे को आज आसाराम…राम-रहीम…दाति महाराज से जोड़ रही हूं। बरसों पहले, वीसीआर हुआ करता था तब घर में, सीडी का जमाना ना था। रजनीश के प्रवचन सुन रही थी…..जिन खोजा तिन पाइया…सच उस प्रवचन के बाद से ही रजनीश को भी गुरु मानना बंद कर दिया था। ओशो की बात मन-मस्तिष्क में गहरे तक उतर गई थी…हर सवाल का जवाब अपने अंदर छिपा होता है। उसे ढूंढों, अपने गुरु स्वयं बनो। अच्छे से याद नहीं क्योंकि यह स्कूल टाइम की बात होगी, दृश्य लुभावना था…ग्रे रंग के चोगे में, सफेद टोपी पहने बेहद आकर्षक ओशो प्रवचन दे रहे थे पास बहते झरने में सफेद हंस तैर रहे थे। वो हंस थे या बतख….मुझे हंस ही याद हैं क्योंकि दिमाग ने कहा था, हंस बनना है…जब भी कुछ मिले उसका दूध-पानी खुद ही अलग करके देखेंगें। किसी दूसरे की नजरों से ज्यादा अपनी नजर पर विश्वास करेंगे।
तो फिर हम सभी ऐसा क्यों नहीं करते? रोज अखबार काली स्याही से भरे रहते हैं…टीवी चीखते हैं…हम बाबा-शाबाओं के गोरख धंधे में फंसते रहते हैं। आसाराम-रामरहीम अब शनि आपका मित्र है चीख-चीख कर बताने वाले दाती महाराज….माफ कीजिएगा! इन्हें आप तक पहुंचाया भी मीडिया के लोगों ने ही है लेकिन इनके खिलाफ लगातार खुलासे भी मीडिया ही कर रहा है। हम हैं, आंखे खोलने से इंकार कर रहे हैं। एक बाबा जाते नहीं है कि दूसरे की दुकान सज जाती है। दो सिंहस्थ देंखे हैं…वहां की शान-शौकत अब भी डराती है। मेरे लिए तो साधू-संत का अर्थ था…दुनिया की मोहमाया से दूर। इनके मंडपों में जितने आलीशान खटकर्म देखें हैं उतने अपने अमीर-दिन रात 99 के फेर में जुटे मित्रों के घर भी नहीं देंखे। फिर किस ज्ञान और मोक्ष की तलाश में इनके द्वार खटखटाएं जाएं। क्यों ना, अपने पुराणों की ओऱ वापस मुड़ा जाए। कर्मयोगी कृष्ण को समझा जाए, वे मुरली भी बजाते हैं, सुदर्शन से संहार भी करते हैं। राधा से प्रीत भी करते हैं, गीता में कर्म करने का संदेश भी देते हैं। फिर किसी मुसीबत को कम करने के लिए इस तरह की बाबाओं की शरण में जाना….अपने ईष्ट अपने, आदर्शों का अनादर करना- तिरस्कार करना नहीं है, क्या?
यदि सिर्फ पूजा-पाठ-दान-दक्षिणा से ही आपका कल्याण हो जाता, तो श्रीकृष्ण पांडवों को महाभारत की सलाह ना देते। वह कहते पूजा-पाठ करो…इन महाराजों के सामने सिर नवाओ, अपना सर्वस्व इन्हें न्योछावर कर दो। ये नहीं कहां ना कृष्ण ने। राम ने भी लंका तक सेतु बनाया। वानरों की मदद से युद्ध किया। इन सभी ने युद्ध से पहले अपने ईष्ट का पूजन-अर्चन किया लेकिन पूजन-अर्चन से कहीं ज्यादा, जी हाँ कहीं ज्यादा, समय कर्म में लगाया। अब हम कर्म नहीं करना चाहते, हर छोटी-बड़ी मुसीबत में भागते हैं इन बाबाओं के पास। कर्मयोगी ने कभी नहीं कहा कि फलां पूजा करो और हर दुख-दर्द से छुटकारा मिल जाएगा। शिव के पास तो किसी तरह का आडंबर नजर ही नहीं आता। आदियोगी, राग-रागनियों के सजृनकर्ता हैं। कत्थक-तांडव जैसे नृत्य के जन्मदाता। वे हर सवाल के जवाब योग-ध्यान में ढूंढने की शिक्षा देते हैं….हमें पाखंडियों के सामने झुककर नहीं रामायण-महाभारत-वेद-पुराण का अध्ययन करके अपने सवालों का जवाब तलाशना होगा…निश्चय कीजिए ना, मुसीबतों से भागने नहीं उनका सामना करने का।
कितना शर्मनाक है…जिनके आगे आप सिर नवाते हैं…वे यौनशोषण के दोषी पाए जाते हैं…। वे आपके सामने सोने-चांदी के बर्तनों में खाना खाते हैं। काजू-किश्मिश चबाते हैं। आपके सामने ही, आपके घर की संपत्ति ही नहीं स्त्रियों पर बुरी नजर डालते हैं। मेरे सामने तो लड़कों के बाल शोषण की भी दिलदहलाने वाली जानकारियां हैं। हमारे सामने हर धर्म-मजहब-समाज के दर्जनों ढोगीं हैं। इन्होंने निराश समाज को गुमराह कर अंधभक्ति का साम्राज्य खड़ा किया है। उन्हें इतनी सत्ता और बल हमने ही दिया है…छीनिए…उनसे इस सत्ता को, इस बल को। अन्यथा हम अपनी आगे वाली पीढ़ियों को अविश्वास और भगोड़े होने की नींव विरासत में देंगें…वे मुसीबत का सामना करने की जगह इस तरह के ढोंगियों के पास शार्टकट ढूंढने जाएंगें और अपना सबकुछ गंवा बैढ़ेंगें। ये शार्टकट्स हम ही उन्हें दिखा रहे हैं और ये पाखंडी अपने पाखंड के दम पर बलशाली होते जा रहे हैं। दूर रहिए…प्लीज…दूर रहिए। जहां दिखें वहां इनकी सत्ता को धराशाही कीजिए, ध्वस्त कीजिए।
श्रुति अग्रवाल
– फेसबुक वाल से साभार