scriptसत्ता के खिलाफ मुखर होकर खड़े होने वाले लेखक | In memory of Dushyant Kumar | Patrika News

सत्ता के खिलाफ मुखर होकर खड़े होने वाले लेखक

Published: Jan 10, 2018 03:01:31 pm

दुष्यन्त कुमार ने गज़ल को रूमानी तबिअत से निकालकर आम आदमी से जोड़ने का कार्य किया है।

dushyant kumar

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– अलकनन्दा सिंह

हिंदी गज़ल के पहले शायर और सत्ता के खिलाफ मुखर होकर खड़े होने वाले लेखक दुष्यंत कुमार की गज़लों के कुछ शेर युवाओं की ज़ुबां पर चढ़े हुए हैं। 1 सितंबर 1933 को उत्तर प्रदेश के राजपुर नवादा में जन्मे दुष्यंत कुमार को इलाहाबाद ने खूब संवारा। उसके बाद दिल्ली और भोपाल में भी वो कई वर्षों तक रहे। दुष्यन्त कुमार त्यागी समकालीन हिन्दी कविता के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने कविता, गीति नाट्‌य, उपन्यास आदि सभी विधाओं पर लिखा है।
उनकी गज़लों ने हिन्दी गज़ल को नया आयाम दिया। उर्दू गज़लों को नया परिवेश और नयी पहचान देते हुए उसे आम आदमी की संवेदना से जोड़ा। उनकी हर गज़ल आम आदमी की गज़ल बन गयी है, जिसमें चित्रित है, आम आदमी का संघर्ष, आम आदमी का जीवनादर्श, राजनैतिक विडम्बनाएं और विसंगतियां। राजनीतिक क्षेत्र का जो भ्रष्टाचार है, प्रशासन तन्त्र की जो संवेदनहीनता है, वही इसका स्वर है।
दुष्यन्त कुमार ने गज़ल को रूमानी तबिअत से निकालकर आम आदमी से जोड़ने का कार्य किया है। कवि दुष्यन्त कुमार त्यागी का जन्म 1 सितम्बर सन् 1933 में बिजनौर जनपद की नजीबाबाद तहसील के अन्तर्गत नांगल के निकट ग्राम-नवादा में एक सम्पन्न त्यागी परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री भगवतसहाय तथा माता श्रीमती राजकिशोरी थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा नहटौर, जनपद-बिजनौर में हुई। उनके हाई स्कूल की परीक्षा एन॰एस॰एम॰ इन्टर कॉलेज चन्दौसी, जिला-मुरादाबाद से उत्तीर्ण की थी।
उनका विवाह सन् 1949 में सहारनपुर जनपद निवासी श्री सूर्यभानु की सुपुत्री राजेश्वरी से हुआ। उन्होंने सन् 1954 में हिन्दी में एम॰ए॰ की उपाधि प्राप्त की। सन् 1958 में आकाशवाणी दिल्ली में पटकथा लेखक के रूप में कार्य करते हुए सहायक निदेशक के पद पर उन्नत होकर सन् 1960 में भोपाल आ गये। साहित्य साधना स्थली भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 में मात्र 42 वर्ष की अल्पायु में वे साहित्य जगत् से विदा हो गये। उन्होंने इतने अल्प समय में भी नाटक, एकांकी, रेडियो नाटक, आलोचना तथा अन्य विधाओं पर अपनी सशक्त लेखनी चलायी।
उनकी रचनाओं में ”सूर्य का स्वागत”, ”आवाजों के घेरे में”, ”एक कण्ठ विषपायी”, ”छोटे-छोटे सवाल”, ”साये में धूप”, “जलते हुए वन का वसंत”, ”आगन में एक वृक्ष”, ”दुहरी जिन्दगी” प्रमुख हैं। साये में धूप से उनको विशेष पहचान मिली, जिसमें गज़लों का आक्रामक तेवर अन्दर तक तिलमिला देने वाला है। देशभक्तों ने आजादी के लिए इतनी कुरबानियां दी थीं कि देश का प्रत्येक व्यक्ति शान्ति और सुख से सामान्य जीवन जी सके, किन्तु राजतन्त्र एवं प्रशासन तन्त्र ने आम आदमी की ऐसी दुर्दशा की है।
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