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बच्चों को बच्चा ही रहने दें

Published: Jan 22, 2018 03:30:52 pm

अपने बच्चों को एक बेहतर इंसान बनाना और उनके सुखद भविष्य के निर्माण में सहयोग देना ही सही परवरिश कहा जाता है।

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– कलाश्री

माता-पिता बनना एक बहुत विचित्र अहसास है। आप अपनी सन्तान का पालन-पोषण करते हुए हमेशा कुछ नया सीख रहे होते हैं। ये जरुरी नहीं कि आपकी सन्तान की संख्या क्या है। आप हर बार कुछ अच्छा और नया करने में ही अग्रसर रहते हैं। हर बार आपको ऐसा लगता है कि कहीं कोई कमी न रह जाये और आप और अच्छा करें। बच्चे तो गीली मिटटी की तरह होते हैं। ये आप पर निर्भर करता है कि आप उस मिटटी से क्या बनाते हैं। जैसा भी रूप आप उसे देना चाहे, दे सकते हैं।
अपने बच्चों को एक बेहतर इंसान बनाना और उनके सुखद भविष्य के निर्माण में सहयोग देना ही सही परवरिश कहा जाता है। आपको अपना व्यवहार ऐसा रखना होगा कि आपके बच्चे नटखट जरुर बनें लेकिन वो बिगड़े हुए न कहलायें। परवरिश के लिए कोई एक नियम नहीं बनाया जा सकता। क्योंकि हर बच्चे की परवरिशका तरीका एक सा कभी नहीं होता। इसमें चाहे बच्चे से प्यार करना हो, उसका ख्याल रखना हो या उसके प्रति सख्ती बरतनी हो।
हर बच्चे के लिए इनका ढंग भी अलग ही होता है। जैसे कि हम हर पौधे को एक सामान पानी नहीं दे सकते। क्योंकि गुलाब के पौधे को अलग मात्रा में पानी चाहिए और मान लीजिये नारियल का पौधा है तो उसे पानी ज्यादा देना होगा। इसी प्रकार हर बच्चे की परवरिश का तरीका भी अलग ही अपनाना होगा। परवरिश का मतलब खाना-पिलाना, औढाना या पहनाना ही नहीं होता। इसका मतलब ये है कि उसे संस्कार कैसे दे रहे हैं। उसकी आदते, उसका व्यवहार, उसका बोलना बहुत सी चीजें उसकी परवरिश में अपना योगदान देती हैं।
आजकल ज्यादातर माँ-बाप बच्चों की हर मांग, हर जिद पूरी करते हैं। इन्हें लगता है कि वो उन्हें प्यार दे रहे हैं। लेकिन यही उनकी सबसे बड़ी गलती है। यहाँ आप ये ध्यान दें कि उसकी हर मांगी चीज सिर्फ उसकी जिद है या उसके लिए जरुरी भी है। आप हमेशा सही निर्णय लें और उसके लिए जरुरी बात ही माने। जब बच्चे हमारे जीवन में प्रवेश करते है तो हमें फिर से अपना बचपन याद आ जाता है। आपको कुदरत एक बार फिर से ये मौका देती है कि आप खुशियों को अपने जीवन में जगह दें। यानी बच्चों को सीखाने की बजाय उनसे सीखें।
कभी भी अपने बच्चों पर अपनी असफलता ना थोपें। यानि आप जो नहीं कर पाए उसे करने का बच्चों को लक्ष्य न बनायें। उन्हें जो बनना चाहते हैं वो ही बनने दें। कई बार जो हम सोचने में भी डरते हैं हमारे बच्चे उसे ही अपना लक्ष्य बनाना चाहते हैं। ऐसे में उनके विरुद्ध न जाकर उनका होंसला बढ़ाएं। आज की पीढ़ी बहुत एक्टिव और निडर है। उनकी सोच डर को जीतना सीखाती है न कि उससे डरने की। कुछ घरों में हरदम एक डरा-सहमा सा माहौल बना रहता है। उन घरों के बच्चे भी बहुत डरे हुए होते हैं। ऐसे में उनका विकास होना असम्भव है।
आप ये कैसे सोच सकते हैं कि ऐसे माहौल में आपकी सन्तान खुश होकर जी पायेगी। इसलिए इस बात की गाँठ बाँध लें कि आप अपने घर में खुशनुमा और हँसता मुस्कुराता माहौल बनायेंगे। कई लोग अपने बच्चों को जल्दी बड़ा करने में लगे रहते हैं। वे ये नहीं जानते कि अगर वो उम्र भर भी बचपन जियेंगे तो भी कोई बुराई नहीं है। उन्हें बड़ा करने की जल्दी कभी न मचाएं। जब बच्चे अपनी बच्चों वाली हरकतें करते हैं तब ख़ुशी ही फैलती है। बच्चों को बच्चा ही रहने दें। (ब्लॉग से साभार)
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