scriptछत्तीसगढ़ : लुप्त होता जा रहा है देसी थर्मस ‘तुंबा’ | Local thermas Tumba fast disappearing from Bastar | Patrika News

छत्तीसगढ़ : लुप्त होता जा रहा है देसी थर्मस ‘तुंबा’

Published: Apr 22, 2018 03:20:46 pm

पहले आदिवासियों के पास पानी या किसी पेय पदार्थ को रखने के लिए कोई बोतल या थर्मस नहीं होता था।

Tumba

Tumbaq

पहले आदिवासियों के पास पानी या किसी पेय पदार्थ को रखने के लिए कोई बोतल या थर्मस नहीं होता था। तब खेतों में या बाहर या जंगलों में पानी को साथ में रखने के लिए तुंबा का ही सहारा था। अब आधुनिक मिनरल बोतलों ने तुंबा का स्थान ले लिया है, जिससे अब यह कम देखने को मिलता है। पहले किसी भी साप्ताहिक हाट, मेले आदि में हर कंघे में तुंबा लटका हुआ दिखाई पड़ता था। अब इसकी जगह प्लास्टिक के बोतलों ने ले ली है। वह दिन अब दूर नहीं जब हमें तुंबा संग्रहालयों में सजावट की वस्तु के रूप में देखाई देगा। वर्तमान में तुंबा के संरक्षण की आवश्यकता है। ऐसा ही प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं में नाम आता है तुंबा का जो हर आदिवासी के पास दिखाई पड़ता है।

दैनिक उपयोग के लिए तुंबा बेहद महत्वपूर्ण वस्तु है। बाजार जाते समय हो या खेत मे हर व्यक्ति के बाजू में तुंबा लटका हुआ रहता है। तुंबे का प्रयोग पेय पदार्थ रखने के लिए ही किया जाता है। इसमें रखा हुआ पानी या अन्य कोई पेय पदार्थ सल्फी, छिन्दरस, पेज आदि में वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए इसे देशी थर्मस, बस्तरिया थर्मस एवं बोरका के नाम से भी जाना जाता है। यदि उसमें सुबह ठंडा पानी डाला है तो वह पानी शाम तक वैसे ही ठंडा रहता है। उस पर तापमान को कोई फर्क नहीं पड़ता है और खाने वाले पेय को और भी स्वादिष्ट बना देता है। खासकर सोमरस पान करने वाले हर आदिवासी का यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी है तो वह है तुंबा।

लौकी से बनता है
तुंबा मेें अधिकांश सल्फी, छिंदरस, ताड़ी जैसे नशीले पेय पदार्थ रखे जाते हैं। तुंबे के प्रति आदिवासी समाज बेहद आदर भाव रखता है। माडिया समाज की उत्पत्ति में डंडे बुरका का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी तुंबा ही था। एक बस्तरिया जानकार के अनुसार तुंबा लौकी से बनता है। इसको बनाने के लिए सबसे गोल मटोल लौको को चुना जाता है जिसका आकार लगभग सुराही की तरह हो। इसमें पेट गोल एवं बड़ा और मुंह वाला हिस्सा लंबा पतला गर्दन युक्ता हो। यह लौकी देसी होती है।

ठंड के मौसम में ही बनता है तुंबा
हायब्रीड लौकी से तुंबा नहीं बन पाता है। उस लौकी में एक छोटा सा छिद्र किया जाता है फिर उसको आग में गर्म कर उसके अंदर का सारा गुदा छिद्र से बाहर निकाल लिया जाता है। लौकी का बस मोटा बाहरी आवरण ही शेष रहता है। आग में तपाने के कारण लौकी का बाहरी आवरण कठोर हो जाता है। जिससे वह अंदर से पुरी तरह से स्वच्छ हो जाता है। तुंबा बनाने का काम सिर्फ ठंड के मौसम में किया जाता है जिससे तुंबा बनाते समय लौकी की फटने की संभावना कम रहती है।

वाद्ययंत्र भी बनते हैं
तुंबा के उपर चाकू या कील को गरम कर विभिन्न चित्र या ज्यामितिय आकृतियां भी बनाई जाती है। बोरका पर अधिकांशत: पक्षियों का ही चित्रण किया जाता है। आखेट में रूचि होने के कारण तीर-धनुष की आकृति भी बनाई जाती है। इन तुंबों की सहायता से मुखौटे भी बनाए जाते हैं। इन मुखौटों का प्रयोग नाट््य आदि कार्यक्रमों में किया जाता है। तुंबे को कलात्मक बनाने के लिए उस पर रंग बिरंगी रस्सी भी लपेटी जाती है। तुंबे से विभिन्न वाद्ययंत्र भी बनते हैं। तुंबा आदिवासियों की कला के प्रति रूचि को प्रदर्शित करता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो