भगवान कृष्ण अर्जुन से जो कह रहे हैं इसका भाव यह है कि मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए। यदि कर्म करते वक्त फल की इच्छा मन में हो तो आप पूर्ण निष्ठा के साथ वह कर्म नहीं कर पाएंगे निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ रिजल्ट देता है। इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकर अपना काम करते रहना चाहिए। फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है।
लाइफ मैनेजमेंटः पूजा-पाठ और मंदिर जाना ही धर्म नहीं
धर्म का अर्थ कर्तव्य से है। अक्सर हम कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ और मंदिरों को ही धर्म समझ बैठते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म बताया है।श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कभी अपयश-यश और लाभ-हानि का विचार नहीं करना। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य पर एकाग्र करके काम करना चाहिए। इससे मन में शांति रहेगी और बेहतर परिणाम मिलेंगे। आज युवा अपने कर्तव्यों में लाभ-हानि को तोलता रहता है। फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में ही सोचता रहता है। कई बार वह तात्कालिक नुकसान देख काम को ही टाल देते हैं, फिर बाद में उससे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।
हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुखी है। सुख की तलाश में वह भटकता रहता है। लेकिन, सुख का मूल तो उसके मन में ही है। जिस मनुष्य का मन इंद्रियों, धन, वासना और आलस्य में लिप्त रहेगा तो उस व्यक्ति के मन में भावना नहीं हो सकती। इसलिए सुख प्राप्त करने के लिए अपने मन पर नियंत्रण बेहद जरूरी है।
श्रीकृष्ण भगवान कहते हैं कि अपने मन में कोई भी कामना या इच्छा रहती है तो शांति नहीं मिल सकती। हम जो कर्म करते हैं उसके साथ अपेक्षित परिणाम को साथ में देखने लगते हैं। अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें दिन पर दिन कमजोर करने लगती है। मन में ममता या अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से कर्तव्यों का पालन करने से ही शांति मिलती है।
लाइफ मैनेजमेंटः कर्म के प्रति उदासीन न होना
बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं करेंगे तो ये हमारी मूर्खता है। खाली बैठे रहना भी एक तरह का कर्म ही है, जिसका परिणाम हमारी आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रूप में मिलता है। सारे जीव प्रकृति यानी परमात्मा के अधीन हैं, वो हमसे अपने अनुसार कर्म करवा ही लेगी और उसका परिणाम भी मिलता है। इसलिए कभी भी कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि हर मनुष्य को अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए कर्म करना चाहिए। जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या को प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना, जो लोग कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो कर्म करते हैं। क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण संभव नहीं होता है। जिस व्यक्ति का जो कर्तव्य तय है उसका पालन करते रहना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में बताया है कि श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वे जैसा व्यवहार करेंगे, सामान्य पुरुष भी उसकी नकल करेंगे। उदाहरण यह है कि यदि किसी संस्थान में उच्च अधिकारी पूरी मेहनत और निष्ठा से काम करते हैं, तो वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही मेहनत करते हैं, लेकिन यदि उच्च अधिकारी काम को टालते हैं तो कर्मचारी उनसे भी ज्यादा लापरवाह हो जाते हैं।
ये कांपीटिशन का दौर है, हर कोई आगे निकल जाना चाहता है। ऐसे में ज्यादातर संस्थानों में ये होता है कि कुछ चतुर छात्र अपना काम तो पूरा कर लेते हैं, लेकिन अपने साथी को उसी काम को टालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं अथवा काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भरने लगते हैं। श्रेष्ठ छात्र वही होता है जो अपने काम से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। संस्थान में उसी छात्र का भविष्य सबसे ज्यादा उज्वल होता है।
लाइफ मैनेजमेंटः जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही हमारे साथ होगा
इस श्लोक के जरिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करता है, दूसरे भी उसी र्रकार का व्यवहार उसके साथ करते हैं। उदाहरण यह है कि जो लोग ईश्वर का स्मरण मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करता हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु कृपा से पूरी हो जाती है। कंस ने सदैव श्रीकृष्ण को मृत्यु के रूप में स्मरण किया। इसलिए, श्रीकृष्ण ने मृत्यु प्रदान की। हमें भी परमात्मा को वैसे ही याद करना चाहिए जैसा रूप पाना चाहते हैं।