शा म ढल चुकी थी, दफ्तरों की छुट्टी का वक्त हो चला था। वह दफ्तर से निकली और घर की तरफ चल पड़ी। वह घर पहुंची। रात के लगभग साढ़े दस बजे वह अपनी बिल्डिंग के पांचवें माले पर जा खड़ी हुई। उसके पीछे उस के लाड़ले बेटे और बूढ़े बाप का क्या हाल होगा उसे नहीं मालूम था। किसी से कुछ कहा न सुना। नीचे छलांग लगा दी। इस घटना को अंजाम देने वाली हैदराबाद की 36 वर्षीय एक न्यूज एंकर थीं। कुछ महीनों पहले पति से उसका तलाक हुआ था। बैग से जो कागज मिला उस पर लिखा था, मेरा दिमाग ही मेरा दुश्मन है। डिप्रेशन में हूं इसलिए खुद की जान ले रही हूं। 2 अप्रैल क ो हुई यह देश में होने वाली न तो पहली घटना है और न ही आखिरी। विशेषज्ञों की मानें तो किसी आत्महत्या के बाद पुलिस जांच के दौरान जो सार्वजनिक रुप सामने आता वही आत्महत्या का कारण माना जाता है। लेकिन इसके कई पहलू होते हैं। मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों के अनुसारआत्महत्या के पीछे के तीन मुख्य कारक पारिवारिक पृष्ठभूमि, मनोरोग का पहले से होना और तत्काल माहौल हैं। दुनिया तेजी से मशीनी होती जा रही है, मानवीय संवेदनाएं घट रही हैं। एक-दूसरे के सुख-दुख जानने का समय नहीं बचा। सब अकेले घुट रहे हैं।
महिलाओं में तनावग्रस्त व डिप्रेशन का शिकार होना आम हो गया है। महिलाएं अपनी समस्याओं को बताने की बजाए खुद उसका हल निकालने की कोशिश करती हैं। जब उसका समाधान नहीं मिलता तो धीरे-धीरे तनावग्रस्त होती जाती हैं। तनाव ही डिप्रेशन और फिर आत्महत्या का मुख्य कारण बन जाता है।
जीवन की हर मुश्किल से लडऩे और उबरने का नाम ही जिंदगी है। आत्महत्या करके न केवल आप अपना जीवन खत्म कर लेती हैं बल्कि अपने पीछे अपने परिवार वालों को हमेशा के लिए दुखी छोड़ जाती हैं। जिस तरह शुगर या ब्लडप्रेशर आदि के मरीजों को ट्रीट किया जाता है उसी तरह से डिप्रेशन के मरीज को भी देखा जाना चाहिए। दुख की बात यह है कि हमारे देश में मनोचिकित्सक के पास जाने पर कई तरह के सवाल किए जाते हैं। व्यक्ति को पागल या मानसिक रोगी की श्रेणी में गिना जाता है। जबकि समझने की जरूरत है कि ऐसी कोई भी परेशानी मौजूद नहीं है जिसका हल नहीं निकाला जा सके।
स्मार्टफोन का इस्तेमाल कम करें आजकल अधिकांश लोग अपने मोबाइल के साथ घंटों अकेले व्यस्त रहते हैं। वहीं रात के समय मोबाइल के इस्तेमाल से इससे निकलने वाली इलेक्ट्रोमेग्नेटिक किरणें दिमाग को एक्टिव कर देती हैं जिसके कारण नींद नहीं आती और नींद न आने के कारण दिमागी परेशानियां शुरू हो जाती हैं। अगर नींद आ भी जाती है तो सुबह उठकर
काम में मन नहीं लगता।
डिप्रेशन के कारण डिप्रेशन दो तरह का होता है। हार्मोन का असंतुलित होना व रोज बढ़ता कॉम्पिटीशन । वहीं घरेलू हिंसा, वैवाहिक परेशानी, सास-बहू झगड़ा, घर-बाहर दोनों जिम्मेदारियों को सही तरह से पूरा न कर पाना भी तनाव को बढ़ाता है। बढ़ती उम्र, वातावरण, परिवेश, शादी के बाद आई जिम्मेदारियां तनावग्रस्त बना देती है।
बच्चे के जन्म के बाद इसमें महिला बच्चे को जन्म देने के बाद उससे इंटरेक्ट नहीं कर पाती। इस समय महिलाओं में हार्माेनल बदलाव के कारण तनाव हो जाता है। जो 60-70 फीसदी महिलाओं में पाया जाता हैै। 10-20 फीसदी में 6 महीने तक वहीं 70 फीसदी में 30 दिनों तक रहता है। 1-3 फीसदी में साइकोसिस यानी मनोविकार की आशंका होती है।
लक्षण डिप्रेशन मेंं रात को नींद न आना। काम में मन न लगना। गुजरे हुए समय के बारे में सोचते रहना। हर बात में आज की तुलना कल से करना जैसे, मैं पहले ऐसी थी, मेरे पास यह था आदि। भविष्य को लेकर नकारात्मक रवैया अपनाना। हर समय निगेटिव बातें करना। अकेलापन पसंद करना। भूख न लगना। स्वयं से निराश व चिढ़चिढ़ापन होना।
डिप्रेशन से बचाव के उपाय – लोगों से बातचीत करते रहना सबसे अहम होता है।
– अपनी परेशानी दोस्तों को बात कर उनसे राय ले सकती हैं।
– अगर फिर भी समाधान न मिले तो काउंसलर से संपर्क करें।
– योगा व मेडिटेशन ग्रुप जॉयन करें। इनमें टेंशन फ्री रहें किसी का फिट या अपने से ज्यादा एक्टिव व खुश देखकर जलन न रखें।
– किटी पार्टी या किसी सोशल ग्रुप भी अपनी पसंद के हिसाब से चुन सकती हैं। वहां कोशिश करें कि स्वयं भी खुश रहें और दूसरों को भी खुश रखें।
– ऐसे टेलीविजन प्रोग्रामों से दूर रहें जिनमें हिंसा अथवा पारिवारिक षडयंत्र दिखाए जाते हों।
– खुद को मानसिक रूप से बहुत तनावग्रस्त पा रही हैं तो उसे नजरअंदाज करने की जगह मनोचिकित्सक से संपर्क करें।