scriptमोटिवेशन : छह बार किया माउंट एवरेस्ट फतेह | Motivational story : BSF officer climb Mt Everest for sixth time | Patrika News

मोटिवेशन : छह बार किया माउंट एवरेस्ट फतेह

Published: Dec 11, 2017 10:09:04 am

सीमा की सुरक्षा के साथ पहाड़ी क्षेत्रों के जानवरों और पेड़-पौधों का भी रखते पूरा खयाल, पहाड़ों की सफाई के लिए चला चुके हैं स्वच्छता अभियान।

Loveraj Singh Dharmshaktu

Loveraj Singh Dharmshaktu

सीमा की सुरक्षा के साथ पहाड़ी क्षेत्रों के जानवरों और पेड़-पौधों का भी रखते पूरा खयाल, पहाड़ों की सफाई के लिए चला चुके हैं स्वच्छता अभियान।

लवराज उत्तराखंड, पिथौरागढ़ के बोना गांव के रहने वाले हैं। बचपन से सेना में जाने का शौक था और इसके लिए ये नियमित रनिंग के साथ फिटनेस का भी ध्यान रखते थे। पर्यटन विभाग में स्पेशल ड्यूटी के दौरान पर्वातारोही बनने का फैसला किया। उत्तरकाशी के नेहरु इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से कोर्स किया। इन्हें सर्च और रेस्क्यू (राहत और बचाव कार्य) में विशेषज्ञता हासिल है। सरहद की सुरक्षा के साथ शौक भी पूरा कर रहे हैं।
ये पहले भारतीय हैं जिन्होंने 8848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई को छह बार पूरा किया है। पहली बार 1998, दूसरी बार 2006, तीसरी बार 2009, चौथी बार 2012, पांचवी बार 2013 व छठी बार मई 2017 में फतह किया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है अप्रेल 2017 को रात दस बजे चढ़ाई शुरू की थी। आठ घंटे तक बर्फीली हवाओं और खतरनाक रास्तों से होते हुए सुबह करीब छह बजे छठी बार एवरेस्ट पर कदम रख इतिहास रचा। इनका मानना है कि अगर ठान लें तो हर मुकाम पाना संभव है
चर्चा में

हाल ही उत्तराखंड के सीमावर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में पेट्रोलिंग के दौरान देखा कि केदार ताल पार्क के आसपास भरल ‘ब्लू शीप’ नाम के कई जानवरों की आंखें किसी संक्रमण से बाहर आ गई हैं। आंखें खराब होने की वजह से दो भरल को मरा हुआ भी पाया। इनकी सूचना पर वन विभाग की टीम मौके पर गई और भरल मामले की जांच शुरू हुई।
17 की उम्र में पहला मौका

जब 17 साल के थे तब इन्हें माउंटेनियरिंग का पहला मौका मिला। माउंटेनियरिंग के लिए गए कुछ पर्वतारोही बीमार हुए जिसके बाद इन्हें उनकी मदद के लिए भेजा गया। 22 हजार फीट ऊंची नंदाकोट पहाड़ी की दूरी को तय कर बीमार साथियों तक पहुंचे और उनकी मदद की थी।
अवॉर्ड इनके नाम

2003 में प्रधानमंत्री द्वारा इन्हें तेंजिंग नॉर्गे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड और डेढ़ लाख रु. के कैश प्राइज से सम्मानित किया था।
2003 में इंटरनेशनल माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की ओर से इन्हें एडमंड हिलेरी अवॉर्ड से विभूषित किया जा चुका है।
बीएसएफ में उत्कृष्ट सेवा के लिए 2003 और 2006 में इन्हें बीएसएफ के डीजी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
ऐसे चौकन्नी रहती इनकी आंखें

केदारताल पार्क के सीमावर्ती क्षेत्रों में पेट्रोलिंग के दौरान जब इन्हें ब्लू शीप ‘भरल’ बुरी हालत में मिले तो अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इसकी जानकारी वन विभाग को दी जिससे जंगल और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले दूसरे जानवरों को इस संक्रमण से बचाया जा सके। इनका मानना है कि भारतीय सीमा के भीतर इंसान से लेकर जानवर और पेड़ पौधों की सुरक्षा हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है। इनकी इस सूचना के बाद पूरे पहाड़ी क्षेत्र में मौजूद भरल को बचाने की कवायद चल रही है क्योंकि भरल की संख्या तेजी से घट रही है। कहा जाता है कि लवराज जब अपनी टुकड़ी के साथ पेट्रोलिंग करते हैं तो इनकी नजर दुश्मन की हरकत के साथ आसपास के जीव जंतुओं की सुरक्षा पर भी रहती है।
पहाड़ों पर स्वच्छता अभियान

मई 2012 में ईको एवरेस्ट एक्सपेडिशन के सदस्य बने और पहाड़ों पर स्वच्छता अभियान चलाया। 2012 में एवरेस्ट से करीब तेरह हजार किलो कूड़ा निकाला गया। इसमें पांच पर्वतारोहियों के शव भी निकाले गए थे।
पत्नी भी रह चुकी हैं पर्वतारोही

लवराज की पत्नी रीना कौशल धर्मशक्तु पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने 2010 में साउथ पोल का अभियान पूरा किया। दिसंबर 2009 में कॉमनवेल्थ की ६०वीं वर्षगांठ पर कैसपर्सकी कॉमनवेल्थ एंटार्कटिक एक्सपेडिशन के तहत 900 किमी. के एंटार्टिक आइस ट्रेक को पार करते हुए साउथ पोल (दक्षिणी ध्रुव) पहुंची थीं। ये मूल रूप से पंजाब की रहने वाली हैं पर ये दार्जिलिंग में पली बढ़ी। दार्जिलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण का कोर्स किया है। अभी उत्तराखंड के मुनसियारी स्थित गवर्नमेंट माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट में अधिकारी हैं। ये उत्तराखंड की लड़कियों को माउंटेनियरिंग के प्रति जागरूक कर रही हैं जिससे वे इस क्षेत्र में आएं और अपना व देश का नाम रोशन करें।
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