लोगों को खुश रखने वालों को दयावान, नर्म दिल और कृपालु समझा जाता है इसमें कोई दोराय नहीं है लेकिन अगर आप स्वीकृति की चाह, अस्वीकृति के डर और ना कहने की हिचकिचाहट के कारण दूसरों को खुश रखती हैं तो आपका व्यवहार आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। आप स्ट्रेस, थकान और निराशा का शिकार हो सकती हैं। इसलिए दूसरों को खुश रखने की बजाए खुद को खुश रखने की कोशिश करें। याद रखें, अगर आप खुद खुश नहीं होंगी तो किसी को भी खुश नहीं कर पाएंगी। आप चिढ़चिढ़ी हो जाएंगी। अपने बारे में सोचना स्वार्थ नहीं है, बल्कि यह दूसरों का ध्यान रखने के लिए उठाया गया कदम ही है।
वजह खोजें आप दूसरों को खुश क्यों रखना चाहती हैं इसकी वजह खोजें। अगर आप उनकी स्वीकृति के लिए ऐसा कर रही हैं तो यह जानने का प्रयास करें कि इस चाहत को दूर रखते हुए दूसरों की मदद करने के लिए आप क्या कर सकती हैं। अगर आपको अस्वीकृति का डर हो तो सोचें कि अस्वीकृत होने पर स्थिति कितनी बुरी हो सकती है। आप जान सकेंगी कि आपकी सोच वास्तविक है या बेवजह की फिक्र।
अपनी फिक्र खुदगर्जी नहीं दूसरों की खुशी को खुद से ज्यादा अहमियत देने वाले अक्सर मानसिक और शारीरिक तौर पर अस्वस्थ महसूस करते हैं। ऐसे में क्या यह जरूरी नहीं हो जाता है कि आप खुद को याद दिलाती रहें कि अपनी देखभाल करने और अपने बारे में सोचने का मतलब खुदगर्जी नहीं है। खुद को अहमियत देना और अपनी खुशी का ध्यान रखना सेहत के लिए जरूरी है।
मदद मांगने में बुराई नहीं कई बार ऐसा होता है कि आपको किसी ने कुछ काम के लिए कहा और आप ना नहीं बोल पातीं और आपको वह काम ठीक से आता भी नहीं। आप उस व्यक्ति का दिल भी नहीं दुखाना चाहतीं। ऐसे में आपके लिए किसी प्रोफेशनल की मदद लेना ठीक रहेगा। किसी ऐसे शख्स की तलाश करें, जिस पर आप भरोसा कर सकें और जिसकी मदद से आप किसी को खुश भी कर देंगी और परेशान भी नहीं होंगी।
बहुत ज्यादा परवाह न करेंं क्या आप हमेशा यह चाहती हैं कि लोग आपके बारे में केवल अच्छा-अच्छा बोलें। कोई आपको खारिज ना करे। आपके दूसरे लोगों को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देने की यह भी एक वजह है। याद रखें, इसका नकारात्मक प्रभाव आपकी जिंदगी पर पड़ता है। दूसरों की मदद करना बहुत ही सम्मानजनक बात है लेकिन अगर यह आपकी ही जिंदगी की बलि लेने लगे तो आपको फिर से सोचने की बहुत जरूरत है।
पहले खुद को बोलें हां यह भी जरूरी है कि आप दूसरों को ना कहने के साथ-साथ खुद को हां कहना भी सीखें। यहां सवाल यह उठता है कि यह कैसे किया जा सकता है? इसके लिए सबसे जरूरी है अभ्यास लेकिन यह भी ध्यान रखिए कि ना कहने में किसी भी भावनाओं को ठेस न पहुंचे। सौम्यता के साथ कहें कि मैं आपकी मदद जरूर करती लेकिन…;अपनी समस्या बताएं। सहजता से ना कहने के लिए खुद को तैयार रखें।
सीमा तय करें किसी भी रिश्ते को स्वस्थ रखने के लिए दायरा तय करना जरूरी होता है। इस दायरे में रहकर कोई किसी का फायदा नहीं उठा सकेगा। आप यह दायरा तय करें और खुद इसका पालन करते हुए दूसरों को भी इससे अवगत करवाएं। लेकिन अगर महसूस करती हैं कि दायरा तय करना या ना कहना आप के लिए संभव नहीं हो पा रहा है तो चिकित्सकीय सलाह लें।