– योगिता व्यास उच्च शिक्षा के नाम पर आजकल व्यावसायिक संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। इसके साथ ही खास तौर पर मेडिकल व इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में दाखिल होने के इछुक बालक-बालिकाओं के लिए शहरों में कोचिंग संस्थान पनप गए हैं। अपनी रोटी सेक रहे पाखण्डी शिक्षाविदों और नीति निर्धारकों के लिए कोई मापदंड नहीं है। मनमानी फीस वसूल कर ये अभिभावकों का शोषण करने में जुटे है। होना तो यह चाहिए कि उच्च शिक्षा में पढ़ रहे बच्चों को मनपसंद संस्थानों में कभी भी स्थानान्तरण की खुली व्यवस्था हो। इंजीनियरिंग एवं मेडिकल सहित विभिन्न विषयों की कोचिंग व शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए बने संस्थानों का राष्ट्रीय स्तर पर ग्रिड कायम किया जाना चाहिए। इसमें यह सुविधा हो कि देश के किसी भी कोचिंग इंस्टीट्यूट, विश्वविद्यालय, कॉलेज में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को यदि अपना संस्थान, उसकी शिक्षण-प्रशिक्षण और आवास व्यवस्था, उस शहर की आबोहवा और संस्थान का माहौल अनुकूल न लगे तो वह अपनी पसंद के किसी और संस्थान में प्रवेश पाकर आगे अध्ययन जारी रख सके। इस पूरी परिवर्तन प्रक्रिया में उसकी फीस, सभी प्रकार के शुल्क आदि का पूर्ण स्थानान्तरण नवीन संस्था में हो जाने का पक्का प्रावधान हो। इस व्यवस्था पर सरकार का सख्त नियंत्रण हो। इससे संस्थानों की हकीकत भी सभी के सामने आ जाएगी। इससे देश की प्रतिभाओं को मनमाफिक संस्थान व माहौल में रहकर आगे बढ़ने का मौका प्राप्त हो सकेगा।आजकल कोचिंग संस्थाओं में आत्महत्या और विषाद का मूल कारण यही है कि एक बार प्रवेश पा जाने के बाद चार-पांच साल तक विद्यार्थी यदि निकल कर दूसरी जगह जाना चाहे तब भी नहीं जा सकता, बंधक के रूप में बना रहता है, कुढ़ता है, तनावग्रस्त रहता है और विवश होकर जवानी के उन अमूल्य क्षणों को अपने सामने बरबाद होते देखता है जो उसके सुनहरे भविष्य की बुनियाद को तय करने वाला समय होता है।विद्यार्थियों की मानसिकता किसी कैदी की तरह हो जाती है और वे इस कारण से दुःखी रहते हैं कि उनके माता-पिता किन विपरीत परिस्थितियों में पढ़ने के लिए भारी धनराशि खर्च कर भेजते हैं और बेचारे विद्यार्थी अच्छा माहौल तक पाने से वंचित रह जाते हैं। और घर वालों का अनाप-शनाप पैसा व्यर्थ जाता है, वे कर्ज में डूबकर पूरी जिन्दगी को तबाह होते देखते हैं।पूंजीपति, दबाव डालकर मुफ्त में अध्ययन कराने वालों, भ्रष्ट-रिश्वतखोरों और काली कमाई करने वाले अपराधियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है किन्तु बाकी लोग कर्ज लेकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं और उनकी दशा खराब हो जाती है। धन भी गया और धरम भी, वाली स्थिति में आ जाते हैं।इस स्थिति को देखते हुए साल भर में कभी भी समान शिक्षा, डिग्री और सभी समानताओं के अनुरूप देश भर में किसी भी मनपसंद स्थान पर कभी भी स्थानान्तरण से प्रवेश पाकर पढ़ने की सुविधा होनी चाहिए। ऎसा हो जाने पर देश में शैक्षिक माहौल भी सुधर जाएगा, चार-पांच साल तक बंधक की तरह रहकर विपरीत हालातों में पढ़ने की विवशता समाप्त होगी और देश का भविष्य उज्ज्वल होगा।