– सपना मांगलिक
मानव
मन की प्रकृति ही ऐसी है कि जो उसे सहज सुलभ है, उससे दूर भाग कर ,कुछ
अन्य जो कि पहले वाले से ज्यादा कठिन और रोचक लग रहा है। उसकी तरफ खींचता
चला जाता है। और इसके लिए वह हर बंधन को तोड़ने सब कुछ छोड़ने छाड़ने को भी
तैयार हो जाता है। प्राप्य से अप्राप्य की ओर गमन और अप्राप्य को प्राप्त
कर लेने के बाद किसी अन्य अप्राप्य की ओर निशाना यही मानव प्रकृति है।
एक
अजीब सी तड़प हम सबके ह्रदय में रहती है जो है उससे हम नाखुश रहते हैं । और
जो नहीं है या दूर की कोडी लगता है उसे अपनी ख़ुशी और मकसद मान लेते हैं।
उदाहरण के तौर पर आज विदेशी भारतीय संस्कृति को अपनाने के पीछे पागल हैं
तो भारतीय विदेशी संस्कृति अपनाने की पीछे पागल हैं। जिस तरह सृष्टि और
मौसम परिवर्तित होते रहते हैं ठीक उसी तरह पञ्च तत्व से निर्मित मानव मन
भी हर वक्त परिवर्तन की ओर लालायित और अग्रसर रहता है। परिवर्तन की यह
भूख पशुओं में बखूबी दृष्टिगोचर होती है । पशु समूह तो बनाते है मगर घर
नहीं बसाते एक रिश्ते में कभी बंधकर नहीं रहते ,मनुष्य के पास बुद्धि है
विवेक है इसलिए समाज के बनाए नियम क़ानून निभाना भी उसे फायदेमंद लगता है
मगार परिवर्तन की चाह को भी वह दबा नहीं पाता और मौका तलाशता है परिवर्तन
का अप्राप्य की प्राप्ति का। और जैसे ही यह मौका हाथ लगता है वह उसपर चौका
मारने को तैयार हो जाता है ।
लिव इन को जानने से पहले हम विवाह संस्कार को समझते हैं ,
विवाह के संबंध में विदेशी और भारतीय दृष्टिकोण
वोगार्ड्स
के अनुसार ”विवाह स्त्री पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की एक
संस्था है । ”वेदों के अनुसार ”पति-पत्नी एवं बच्चों से युक्त मानव ही
पूर्ण मानव है । वेदों में अविवाहित व्यक्ति को अपवित्र माना गया है ।
धार्मिक दृष्टि से वह अपूर्ण है और संस्कारों में भाग लेने योग्य नहीं है ।
”जहाँ भारतीय संस्कृति विवाह को एक पवित्र धार्मिक संस्कार के रूप में
परिभाषित करती है । वहीँ विदेशी विद्वान विवाह को यौन संबंधों का नियमन
मात्र ही मानते हैं । विदेशी विद्वान डब्ल्यू । एच। आर। रिवर्स के अनुसार
-जिन साधनों द्वारा मानव समाज यौन संबंधों का नियमन करता है उन्हें विवाह
की संज्ञा दी जा सकती है । डॉ कापडिया के अनुसार ”हिन्दू विवाह एक संस्कार
है ,हिन्दू विवाह के तीन उद्देश्य हैं -धार्मिक कार्यों की पूर्ति ,संतान
प्राप्ति और यौन सुख.
लिव इन रिलेशनशिप
ऐसे
में एक नए तरह का सम्बन्ध सामने आता है न ढोल, न नगाड़ा, न किसी से पूछताछ
बस सिर्फ पहचान। एक लड़का और एक लड़की आधुनिकता के इस वर्तमान दौर में
स्वयं साथ रहने का फैसला करते हैं, जिसमे किसी तीसरे का कोई हस्तक्षेप नहीं, कोई स्थान नहीं, कोई पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं, कोई सामाजिक दायित्व
नहीं, जब तक साथ रहना संभव हो रहे, जब सम्बन्ध असहज हो गए, हिंसक हो गए, या
कुछ नया और पहले से ज्यादा रोचक या अनुकूल लगा तब अलग हो गए। ऐसे रिश्ते
अधिकतर भावनात्मक संबंध बनाने के लिए नहीं होते अपितु शारीरिक सुख ही इनका
एकमात्र प्रायोजन होता है ,दोनों ही जानते हैं कि इस रिश्ते में स्थायित्व
नहीं है, परन्तु खुद को आधुनिक मानने वाले इनदिनों यह प्रयोग खूब कर रहे
हैं । हालांकि बीज उनकी आत्मा में विशुद्ध भारतीय होता है इसलिए शारीरिक
सम्बन्धों से शुरू हुआ यह संबंध जाने अनजाने भावनात्मक हो जाता है और ऐसा
महिला साथियों के साथ ज्यादा होता है क्योंकि प्रकृति वश वह पुरुष की तुलना
में ज्यादा भावुक होती हैं । और पुरुष अपनी भावनाओं को यह सोचकर नकार देते
हैं कि –“जाने दो यार, अच्छा हुआ शादी से पहले ही ट्रायल ले लिया सफल हो
जाते तो पति-पत्नी की तरह ज़िंदगी गुजार देते अब जब रिश्ता असफल हो गया तो
भुला देंगे जैसे सफर पूरा होने पर ट्रेन के यात्री बिछड़ जाते हैं समझ
लेंगे कि बिछड़ गए”।
हमारे भारत का युवा वास्तव में
इसी सोच पर आगे बढ़ रहा है। मैंने आधुनिकता की रोल मॉडल्स कुछ प्रसिद्द
फ़िल्मी हस्तियों के अखबारों में लिव इन पर स्टेटमेंट पढ़े हैं जिनमे से कुछ
हैं –“विवाह से पहले कम से कम दो वर्ष स्त्री पुरुष को लिव इन में रहना
चाहिए “”आज के समय में लिव इन इसलिए ज़रूरी है क्योंकि
तलाक का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है । विवाह टूट रहे हैं । अब वह ज़माना नहीं
रहा कि लोग मजबूरी में रिश्तों को ढोहें, इसलिए लिव इन का विकल्प लोगों को
आकर्षित कर रहा है
क्योंकि यहाँ रिश्तों में जबरदस्ती नहीं है।
लिव
इन को लेकर युवाओं की सकारात्मक सोच ही आज इस सम्बन्ध को भारतीय संस्कृति
पर चोट साबित करने हेतु पर्याप्त है । जिस सम्बन्ध को भारतीय संस्कृति
मात्र दो व्यक्तियों का मिलन न मानकर दो परिवारों दो सभ्यताओं का मिलन
मानती है ,जहाँ नारी और पुरुष का ये रिश्ता सामाजिक समझदारी, पारिवारिक
सहयोग से निर्मित होता है, जिसके राम सीता, कृष्ण रुकमनी, पृथ्वीराज
संयोगिता जैसे चरित्र उदाहरण हैं। वहां आज इस स्वच्छन्द्तापूर्ण रिश्ते या
कहें कि साल दो साल के अनुबंध ने तबाही मचा दी है । जो लोग विवाहित हैं वह
भी लिव इन के मोहपाश में खिंच कर विवाहेतर संबंध बना रहे हैं और कुंवारे
और कामकाजी लोग तक बुरी तरह इस दलदल में धंस ही रहे हैं।
महानगरों में लिव इन का बढ़ता चलन
महानगरों
में स्त्री और पुरुष दोनों ही अधिकांशतया: कामकाजी होते हैं वह
स्त्री-पुरुष जो २४ घंटों में १० घंटे साथ बिताते हैं ;उनमे कोई ऐसा
सम्बन्ध न हो ऐसा संभव नहीं है । महानगरों की दिखावे भरी अपने में ही सिमटी
भाग दौड़ भरी जीवन शैली कि वजह से कोई आस पडौस में दखल नहीं देता , अपने
तरह से जीवन जीने की स्वतंत्रता ,आसान और बेरोकटोक ज़िंदगी ,किसी को किसी
से कोई लेना देना नहीं होता इसलिए भी यहाँ यह संबंध आसानी से पनपते हैं,
तेज रफ़्तार भागती जिन्दगी में लोग जीवन साथी का चुनाव और जीवन भर एक ही
रिश्ते में बंधना किल्लत समझते हैं । आपाधापी भरी जिन्दगी में महानगरीय
लोगों का मानना है कि – “टूटती हुई शादियां ,बिखरते परिवारों और बिना
माँ-बाप के पल रहे बच्चों से लिव इन का विकल्प ज्यादा बेहतर है”।
लिव इन से बढ़ते मनोरोगी
आज
का युवा उन्मुक्त ज़िंदगी का आदी हो रहा है । दबाव से बचने में लगा है
,अपनी पसंद को सर्वोपरि रखता है ,हर चीज़ पैसे से खरीदना चाहता है और चिंता
,जिम्मेदारी से मुक्त ज़िंदगी का चयन करते हुए लिव इन को सकारात्मक नजरिये
से देख रहा है जो निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति पर चोट तो है ही अपितु
यह मानव के व्यवहार और उसके व्यक्तित्व और सेहत को भी प्रभावित कर रही है ।
आज मनोवेग्यानिकों के पास जितने भी मनोरोगी और आत्महत्या को अग्रसर केस आ
रहे हैं उनमे ४५% लिव इन के केस हैं । और मनोरोग की वजह है इस रिश्ते की
अस्थिरता ,खो देने का डर ,समाज में बदनामी ,बिन ब्याहे गर्भ धारण कर लेना
,इस रिश्ते का कानूनन और सामाजिक रूप से मान्य न होना। और सबसे बड़ी वजह
विश्वासघात ,क्योंकि इस रिश्ते में जिम्मेदारी और कर्त्यव्य का अहसास नहीं
होता अत: साथी दूसरे साथी को अक्सर शक की निगाहों से देखता है और दूसरा
साथी भी बिना किसी अपराध बोध और ग्लानी के अपने साथी को धोखा दे जाता है ।
क्योंकि वो किसी मानी रिश्ते में नहीं बंधे हैं।
यही
डर इस संबंध की सबसे बड़ी कमजोरी है ,जिसने भी लिव इन रिलेशनशिप का आगाज
किया उसे अंजाम हर हाल में भुगतना पड़ा है अब यह अंजाम या तो मनोरोग हो सकता
है या आत्महत्या की कोशिश । चाँद-फ़िज़ा ,विपाशा बासु-जॉन अब्राहम ,राजेश
खन्ना-अनीता जैसे मामले इस संबंध के परिणाम स्वरुप सभी के सामने हैं।
सात फेरे बनाम लिव इन
“सात
फेरों के सातों वचन “भारतीय स्त्री पुरुष अपना वैवाहिक जीवन शुरू करने से
पूर्व एक दूसरे को सात फेरों के रूप में सात वचन देते हैं यह सात वचन
दाम्पत्य जीवन को भली भाँती सुखपूर्ण चलाने के लिए अति आवश्यक है जैसे देश
में अलग अलग मंत्रालय हैं जो अपना अपना कार्य पूरी निष्ठां के साथ करते
हैं। जो देश को सुचारू रूप से आगे बढाने के लिए आवश्यक है ठीक उसी तरह घर
गृहस्थी को चलाने के लिए स्त्री और पुरुष अपने कार्य और जिम्मेदारियां आपस
में बांटकर अपने घर को सुचारू रूप से चला सकते हैं और इसके लिए वह दोनों
सात फेरों के रूप में सात वचन देते हैं ,जो इस प्रकार हैं –
हम
हर काम में एक दूसरे का ध्यान पूरे प्रेम ,समर्पण ,आदर ,सहयोग के साथ
आजीवन करते रहेंगे । हम दोनों साथ साथ आगे बढ़ेंगे । हम न केवल एक दूजे को
स्वस्थ ,सुदृढ़ व् संतुलित रखने में सहयोग देंगे बल्कि मानसिक व् आत्मिक बल
भी प्रदान करते हुए अपने परिवार और इस विश्व के कल्याण में अपनी उर्जा
व्यय करेंगे । अपनी संपत्ति की रक्षा करते हुए सबके कल्याण के लिए समृद्धि
का वातावरण बनायेंगें । हम अपने किसी काम में स्वार्थ नहीं आने देंगे
,बल्कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेंगें । हम संकल्प लेते हैं कि आजन्म एक
दूजे के सहयोगी रहेंगे और खासतौर पर हम पति-पत्नी के बीच ख़ुशी और सामंजस्य
बनाये रखेंगे । स्वस्थ ,दीर्घजीवी संतानों को जन्म देंगे और इस तरह
पालन-पोषण करेंगे ताकि ये परिवार ,समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर साबित
हो । प्रत्येक उत्तरदायित्व साथ साथ पूरा करेंगे और एक दूसरे का साथ निभाते
हुए सबके प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे । हम वचन देते हैं कि हम
आजीवन साथी और सहयोगी बनकर रहेंगे। संक्षेप में लिव इन वह सम्बन्ध नहीं
जिसे भारतीय संस्कृति में जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध कहा जाता है ,जिसमे
पति अपनी पत्नी के सम्मान की खातिर राक्षसों के राजा रावण का कुल सहित
विनाश करता है । जिसमे पत्नी पति के प्राणों को यमराज से भी छीन लाती है।
-(लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार है)