scriptआरक्षण की व्याख्या नए सिरे से हो | Reservation and right of equality in indian constitution | Patrika News

आरक्षण की व्याख्या नए सिरे से हो

Published: May 07, 2018 04:34:03 pm

शिक्षा के क्षेत्र का उदहारण लें तो अनारक्षित 50% सीटों पर सभी वर्गो के उच्च अंक लाने वाले विद्यार्थियों का हक होता है

opinion,work and life,Reservation in India,rajasthan patrika article,

reservation in india

सुप्रीम कोर्ट ने क्रड़े निर्देश जारी कर रखे है कि सरकारी जनगणना से कभी जातिगत आंकड़े न निकाले जाए। तो फिर किसी संस्था या व्यक्ति विशेष को जातिगत आंकड़ों की अफवाहे नही फैलानी चाहिये।आरक्षण को लेकर कई बातें नासमझ लोग कह देते है और जनता के मन में भी भ्रम पैदा कर देते है। आखिर इस बात पर आकर कैसे भूल जाते है की सामान्य वर्ग को आरक्षण नही मिलता है।
शिक्षा के क्षेत्र का उदहारण लें तो अनारक्षित 50% सीटों पर सभी वर्गो के उच्च अंक लाने वाले विद्यार्थियों का हक होता है जिसमे सामान्य वर्ग के साथ साथ पिछड़ा वर्ग तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के विद्यार्थी शामिल होते है। उसी प्रकार चुनावों को लेकर भी लोगों में भ्रम रहता है। चुनाव में यदि सामान्य वर्ग की सीट हो तो उसमे भी सभी जातियां चुनाव में खड़ी हो सकती है क्योंकि सामान्य वर्ग को आरक्षण नही मिलता है यदि आरक्षित सीट हो तो केवल उस वर्ग का ही उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते है क्योंकि ये आरक्षित वर्ग से है।
इस प्रकार के भ्रम लोगो के मन से दूर करना आवश्यक है क्योकि कुछ व्यक्तियों या संस्थाओ के द्वारा अपने फायदे के लिए लोगो को जातिगत रूप से भड़काया जा रहा है। यदि सवर्ण दलितों को अपने साथ लेकर चलना चाहे तो उन्ही के वर्ग के लोग उन्हें भड़काते है कि इनके पूर्वजों ने हमारे पूर्वजो का बहुत शोषण किया है। इस प्रकार भेदभाव की दलीले जातिगत अनबन को बढ़ावा दे रही है।वही जातिगत आंकड़ों की अफवाहे भी लोगो में रोष पैदा कर रही है। जिस कारण दलितों के ये बयान आने लगे है कि आबादी के हिसाब से आरक्षण ले लो। यदि सरकार का उद्देश्य दलितों का उद्धार है तो आरक्षण एक परिवार के एक सदस्य को ही दिया जाय।
आखिर हर सदस्य को आरक्षण से नौकरी मिल रही है चाहे वह योग्य हो या न हो। आज कल जिसे देखों वह संविधान की दुहाई देता है। संविधान को गलत ठहराता है। संविधान में वर्णित नीतियों को गलत बताता है। वह संविधान जो स्वतंत्र भारत में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक आदर्श नागरिक बनाने के लिए तथा भारत के कुशल संचालन के लिए बनाया गया था। भारत की कानून और न्याय व्यवस्था की नींव भारतीय संविधान ही है। लेकिन किसी ने कभी सोचा है, कि क्या सभी भारतीय आदर्श नागरिक बन पाये है? भारत के संविधान के अनुसार भले ही देशवासी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन या बौद्ध जैसे धर्मों तथा सांप्रदायों में बंटे हुए हैं लेकिन देश का प्रत्येक नागरिक सर्वप्रथम भारतीय है और संविधान के समक्ष सभी एक सामान है।
मौलिक अधिकारों में समानता का अधिकार वर्णित है किन्तु दूसरी ओर संविधान के अन्य प्रावधान के अनुसार जाति आरक्षण लागू किया गया है जो समानता के अधिकार के लिए एक अपवाद है जिसे छुआछूत और भेदभाव ख़त्म करने के लिए बनाया गया था लेकिन आज वहीं आरक्षण भारत के लोगों में जातिगत रोष पैदा करता जा रहा है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान लागू होने के दूसरे दिन ही संविधान में संशोधन करवा कर आरक्षण लागू कर दिया था जो आज तक चलता आ रहा है और जातिगत मतभेदों का कारण भी बन रहा है। इस बात को लेकर आज भारत के नागरिक संविधान को गलत बताने लगे है। लेकिन यहां एक तथ्य यह है जिसे सभी भूल जाते है कि आरक्षण भीमराव आंबेडकर ने संविधान में जुड़वाया था और इसकी समय सीमा 10 वर्ष थी। लेकिन फिर भी इसे खत्म नही किया गया तो इसके लिए संविधान का अपमान नही करना चाहिए।
इसके लिए भारत सरकार जिम्मेदार है। राजनेता जिम्मेदार है जो अपने वोट पाने के लिए जातिगत राजनीती कर रहे है। जबकि वे स्वयं जानते है कि आरक्षण के कैसे परिणाम निकल कर आ रहे है। इसलिए सब कुछ जानते हुए भी संविधान की गरिमा को ठेस नही पहुँचनी चाहिए। संविधान है तो भारत में व्यवस्था है न्याय है और लोकतंत्र है। इसीलिए लोकतंत्र को बचाना है तो संविधान का पालन कीजिये।रही बात आरक्षण की तो यदि आपमें काबिलियत है तो आपको आरक्षण की जरुरत नही है।
– शिवांगी पुरोहित (फेस बुक वाल से)

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो