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अपनों के लिए समय तो निकालें 

Published: Oct 20, 2016 03:30:00 pm

त्योहारों में घर -परिवार के अलावा और भी है याद करने को 

Diwali

Diwali

– दीप्ति सक्सेना

दिवाली आई, दिवाली आई, घर की हुई पुताई, खरीददारी सबने की भाई। … बचपन में दीवाली आते ही हम ये गीत गुनगुनाने लगते थे। महीने भर पहले से ही घर की साफ़ सफाई का काम शुरू हो जाया करता था। मम्मी कहती थी श्राद निकल जाये तो खरीददारी शुरू करदे अपन।
आज लेकिन आज दीवाली वाले दिन भी हम बस यही कहते नजर आते है , “अब त्योहारों में वो वाली बात नहीं रही जो हमारे बचपन में हुआ करती थी ” चाहे वो कोई सा भी त्यौहार हो। हम बस यही शब्द दोहराते है। लेकीन आखिर बदला क्या है आज और कल में, ये सोचने लायक है। इसमें भी अब कुछ लोग महंगाई की बात करते करते है, कुछ लोग तरीके की, तो कई लोग नई पीढ़ी की सोच की। 

लेकीन हक़ीक़त में आज की युवा पीढ़ी जो इस बात का डंका बजती रहती है कि हमारा बचपन तो आज के मुकाबले बहुत अच्छा था। वो खुद ही की इस परिवर्तित आज के जिम्मेदार है। जरा कुछ साल पीछे अपने बचपन पर नजर डाल के देखिये। जब हम छोटे थे तो भले ही हमारे माता पिता के पास पैसे भरपूर ना हो लेकिन उनकी भावना, उनके लिए हमारा समय भरपूर था। वो हमें खुद शॉपिंग कराने ले जाते थे। नयी नयी चीज़ों की खरीददारी होती थी। हर त्यौहार पर वो हमारे साथ अपना समय देते थे। आज हमारे पास इतना समय ही कही की हम हमारे अपनों के लिए अपनी जिंदगी जी सके। अपने बच्चो अपने से छोटो को घुमाने ले जा सके। उनकी खरीददारी, घर की सजावट को महत्व दे सके।

आधुनिकता के इस दूर में हम अपनों से ही बहुत दूर हो गए है। इतने दूर की हमारे घर में क्या नया आ रहा है हमे पता ही नहीं है । किसकी क्या पसन्द है नापसंद है हम जानते ही नहीं है। हम एक मैसेज तो कर देते है लेकीन उसके पीछे छुपी भावना व्यक्त करने का हमारे पास समय ही नहीं है आज। भले की इसका कारण हमारी नौकरी हो, हमारा करियर, या हमारा परिवेश। लेकीन अपनों के लिए समय तो हमे ही निकलना होगा, हम जो समय हमारे मोबाइल ,लैपटॉप के साथ व्यक्त करते है वो अपनों के साथ व्यतीत करना होगा। 

पहले हमें हमारे माता पिता की आदत थी, उनकी जरूरत थी। उनका साथ हमे पूरा करता था, लेकीन आज है माता पिता को इस बात की चिंता नहीं है ना हई उनके बच्चो को। उनकी जिंदगी भी बस आधुनिक उपकरणों तक आके सिमट गयी है। हमने आज विदेश जाने के कई रस्ते तो ढूंढ लिए है लेकीन घर लौटने का रास्ता ही भूल गए है। और शायद यही वजह है जिस कारण हम कहते है। अब त्योहारों में वो बात नहीं रही जो हमारे बचपन में थी।
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