युवा पीढ़ी उदन्ड होती जा रही है! मर्यादाएं टूट रही हैं ,लावारस बच्चे सडको पर पडे मिलते हैं! वृद्ध परिवार के लिए बोझ बन गया सरकार ने इन निराश्रितो के लिए बोझ बन गए सरकार ने ईंन निराश्रितो के लिए वृध्दाश्रम व अनाथश्रम नायक संस्था बनाई! पर इन संस्थाओ की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है! मूक -बंधिर अनाथश्रमो की हालत तो बद से बदतर है! बेबस बच्चे ,लाचार वृद्ध अपना जीवन केसे गुजार रहे हैं? जहा न बच्चे की किलकारियों न शेतानीया ! वृद्रो का नीरस जीवन मार्मिक है! तो क्यो न वृधश्रम व अनाथश्रंमो को एक सयुंक्त ईकाई बना दी जाए! मुक बधिर बालिका ग्रहो को भी ईसमे सम्मिलित कर लिया जाए, जहा मासूम बच्चों को बुजुर्गो का स्नेह व प्यार मिलेगा -शिक्षा व संस्कार मिलेगा। वृद्धों को वट वृक्ष की छाया मे मासूम बच्चों का जीवन सुरक्षित रहेगा ,प्यार ओर अपनापंन मिलेगा उनकी हसीं से आश्रम गुजता रहेगा! वही हमारे बुजुर्गो को हसी खुशी से भर उटेगी! बच्चो व बुज्रुगो का जीवन आपसी तालमेल से सँवर जाएगा !
अगर सरकार इस ओर ध्यान दे तो प्रोयोगिक तोर पर ईस विकल्प को अपनाया जा सकता है! स्वयंसेवी संस्थाए भी इस ओर प्रयास करे तो बेहतर परिणाम आ सकता है! कुछ बच्चे अपना जीवन संवार लेंगे ! बुढ़ापा आराम से गुजर जाएगा सबसे मुख्य बात अनाथश्रंम के नाम मे जो लाचारी एवं बेबसी है उससे बदल कर नेह आश्रम कर दिया जो स्नेह भी बरसात करेगा!एक खुशहाल समाज का निर्माण होगा तो देश खुशहाल होगा !
लता अग्रवाल