वर्क एंड लाईफ

सियासत में फंसा महिला आरक्षण

भारत से बेहतर रैकिंग पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी पड़ोसी मुल्कों को दी गयी है।

Nov 14, 2017 / 05:41 pm

जमील खान

Indian Parliament

राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन (आईपीयू) ने कुल १९३ देशों की एक सूची जारी की थी जिसमें भारत को 147 पायदान पर रखा गया। भारत से बेहतर रैकिंग पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी पड़ोसी मुल्कों को दी गयी है। भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण और राजनीति में उनके लिए आरक्षण की बात तो तमाम राजनीतिक दल करते हैंए लेकिन इसके बावजूद संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का बिल पास नहीं हो पाया है।

महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक बीते दो दशकों से संसद में अटका है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खत लिखकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लम्बे समय से ठंडे पड़े इस मुद्दे को गर्मा दिया है। इसे लेकर सरकार असमंजस में है कि आखिर करे तो क्याघ् क्योंकि महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा से पास करना अथवा सदन के पटल पर नहीं रखनाए दोनों ही स्थितियां सरकार के लिए ठीक नहीं है।

आगामी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए यह अहम मुद्दा बन सकता हैए जिसे कांग्रेस ने अपने सियासी पैमाने पर उचित मानकर उछालना शुरू कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम से लोकसभा में अपने बहुमत का लाभ लेते हुए महिला आरक्षण विधेयक पारित करवाने की अपील की है। महिलाओं को संसद में 33 फीसदी आरक्षण का विधेयक लंबे समय से अधर में लटका है। साल 2010 में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में पारित कराया थाए लेकिन लोकसभा में पारित नहीं हो सका। पिछले सात साल से सरकारें लगातार इस विधेयक को पारित करवाने का आश्वासन देती रहीं हैं।

बावजूद इसके कोई ठोस फैसला अबतक नहीं लिया जा सका है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास लोकसभा की 543 सीटों में से 335 सीटें हैंए वहीं कांग्रेस के पास महज 45 सीटें हैं। अब इस विधेयक के पारित न होने का कोई कारण ही नहीं है। इस विधेयक का विरोध करने वाले पुरुष सांसदों की सीटें फिलहाल संसद में कम हैं इसलिए बहुत प्रभावी विरोध की संभावना नहीं है। इसलिए विधेयक जल्द पारित होने की उम्मीद की जा सकती है।

स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिए एक.तिहाई आरक्षित सीटों का प्रावधान है लेकिन संसद के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। महिला दिवस के मौके पर तो इससे संबंधित तमाम वादे भी किए जाते हैंए लेकिन बाद में यह मामला ठंढे बस्ते में चला जाता है। अब कई महिला संगठनों ने एक बार फिर इस विधेयक को पारित करने की मांग उठाई है।

प्रणब मुखर्जी ने चेन्नई में एक कार्यक्रम में कहा था कि महिलाओं को सम्मान नहीं देने वाला कोई समाज खुद को सभ्य नहीं कह सकता। उन्होंने कहा कि अब भी अक्सर महिलाओं पर अत्याचार की खबरें सामने आती हैं। जीडीपी की गणना करते समय देश के विकास में महिलाओं के योगदान को मान्यता नहीं दी जाती। महिलाओं को वाजिब हक नहीं देने वाले समाज को सभ्य कहलाने का अधिकार नहीं है। दरअसलए समाज में महिलाओं को उचित सम्मान दिलाने के मामले में काफी कुछ करना है।

भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होने के बावजूद लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व महज 11 फीसदी है जबकि इस मामले में वैश्विक औसत 22 फीसदी है। यूएन ने भी जारी अपनी रिपोर्ट में संसद जैसी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाने वाली संस्थाओं में महिलाओं के लिए कोटा तय करने की वकालत की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण से लैंगिक भेदभाव कम करने में सहायता मिली है। यूएन की रिपोर्ट को दिल्ली में केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने जारी किया।

इसमें कहा गया कि 110 से भी ज्यादा देशों में संसद में महिलाओं के लिए किसी न किसी किस्म के आरक्षण का प्रावधान है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लंबे अरसे बाद राजनीति की शतरंज की बिसात पर एक जोरदार चाल चली है। अभी यह कहना मुश्किल है कि बाजी किसके हाथ रहेगी लेकिन यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि खेल बहुत दिलचस्प रहेगा। अब भाजपा के भीतर इस मुद्दे पर विमर्श हो रहा हैए जिसके केंद्र में इस विधेयक के पारित होने का आगामी चुनावों पर प?ने वाला असर है। मोदी की निजी लोकप्रियता भले ही अभी तक बरकरार होए उनकी सरकार की साख घटी है। इसका कारण नोटबंदी और जीएसटी का देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा बुरा असर माना जा रहा है। आरएसएस के एक अंदरूनी सर्वे के मुताबिक भाजपा आगामी चुनावों में हार का सामना कर सकती है। ऐसे में यदि भाजपा महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश करके उसे पारित करा लेती हैए तो उसे देश की महिलाओं का समर्थन मिल सकता है। जानकार बताते हैं कि २०१९ के चुनावों को लेकर बीजेपी ने तैयारी शुरू कर दी है। महिलाओं के तबके को लेकर बीजेपी और प्रधानमंत्री ख़ास ध्यान दे रहे हैं। उज्ज्वला स्कीम और तीन तलाक़ पर बीजेपी ने महिलाओं को साधने की कोशिश की है। ये चर्चा रही है कि शायद चुनाव से पहले एनडीए सरकार महिला आरक्षण बिल लेकर आए और खटाई में पड़े इस विधेयक को पास कराने की कोशिश करें।

हालांकि बीजेपी के लिए ये मुश्किल नहीं है क्योंकि उसके पास लोकसभा में बहुमत है। शायद इसे भांपते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ये मुद्दा उठा दिया है क्योंकि संसद के उच्च सदन राज्यसभा में इसे पास कराने में कांग्रेस सोनिया गांधी की अहम भूमिका थी। लेकिन लोकसभा में ये विधेयक अटक गया था क्योंकि यूपीए में कांग्रेस के साथी दल ख़ासकर समाजवादी पार्टीए राष्ट्रीय जनता दल ने इसका विरोध किया था। लोकसभा में ये विधेयक यूपीए सरकार इस डर से नहीं लाई थी कि कहीं सरकार ही ख़तरे में न पड़ जाए। मगर अब वजह चाहे जो भी होए सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर महिला आरक्षण विधेयक के मुद्दे को फिर से प्रकाश में ला दिया है। अगर ये विधेयक पारित हो जाता है तो इसमें कांग्रेस को अच्छा श्रेय मिल सकता है।

 

प्रीति चौधरी

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