हजारों अध्ययनों के आधार पर निकाला निष्कर्ष सोमवार 8 अगस्त को प्रकाशित एक अध्ययन में, हवाई विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मोरा और उनके सहयोगियों ने मनुष्यों को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों पर जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए हजारों अध्ययनों का अनुशीलन किया। इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि लगभग 220 संक्रामक रोग – जो कि कुल अध्ययन का 58% ठहरते हैं – जलवायु परिवर्तन से जुड़े बदलावों के कारण बड़ा खतरे बन गए हैं।
इंसानी दखल ने बदल दिया है सिस्टम मोरा का कहना है कि, “जलवायु संबंधी सिस्टम लाखों सालों से विकसित हो रहे हैं और अब इंसानों ने साथ आकर चीजों को बदल दिया है।” “हम प्रकृति को घूंसा मार रहे हैं, लेकिन प्रकृति हमें वापस घूंसा मार रही है।” इस अध्ययन के अंतर्गत 3,200 से अधिक वैज्ञानिक कार्यों का विश्लेषण किया गया है और ये दुनिया भर में बीमारियों पर जलवायु परिवर्तन के समग्र प्रभाव के सबसे गहन अध्ययनों में से एक है।
पर्यावरण और बीमारियों का गहरा संबंध बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एक पर्यावरण महामारी विज्ञानी जेसिका लीब्लर ने बताया कि, “यह अनुसंधान केवल हाल के दिनों में संक्रामक रोग के बारे में है कि कैसे संक्रामक रोग के प्रसारक के रूप में जलवायु परिवर्तन पर ध्यान भूमिका निभा सकता है।” लीब्लर ने बताया कि 58 प्रतिशत “वास्तव में एक काफी उच्च संख्या की तरह लगता है,” उन्होंने कहा, “लेकिन यह वास्तविकता को दर्शाता है कि हमारे पर्यावरण में जो हो रहा है उससे संक्रामक रोग किस तरह से फैल सकते हैं।”
जलवायु परिवर्तन से लोग आवास बदलने और जानवरों के संपर्क में आने को मजबूर “जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में लोगों के विस्थापन, आवास परिवर्तन और व्यवधान का कारण बनती है। यह मनुष्यों को जानवरों की प्रजातियों के संपर्क में इस तरह से लाता है कि हम ऐतिहासिक रूप से उनके संपर्क में नहीं थे, या हाल के दिनों में नहीं थे, ”लीब्लर ने कहा। “हमारी हालिया महामारी कोविड-19 इस हद तक एक उदाहरण है कि जिसकी प्रमुख हाइपोथीसिस ही यह है कि इसके प्रसार में चमगादड़ ने एक निश्चित भूमिका निभाई होगी।”
टिक्स, पिस्सू और मच्छरों जैसे जीवों की मात्रा में बढ़ोतरी बढ़ते तापमान ने टिक्स, पिस्सू और मच्छरों जैसे जीवों के निवास स्थान में भी वृद्धि की है, जिससे वेस्ट नाइल वायरस, जीका और डेंगू बुखार जैसे संक्रमणों के पदचिह्न बढ़ रहे हैं। “मच्छरों का प्रकोप तो स्पष्ट रूप से एक बड़ा कारण है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मृत्यु दर की जबरदस्त मात्रा का कारण बनते हैं,” लीब्लर ने कहा।
भोजन, पानी या हवा के जरिए सीधे इंसानों तक पहुंच रहे जीवाणु जलवायु से जुड़ी अन्य बीमारियां भोजन, पानी या हवा के जरिए सीधे इंसानों में फैलती हैं। उदाहरण के लिए, ई. कोलाई या साल्मोनेला जैसे फेकल रोगजनक बाढ़ या तूफान के बाद पीने के पानी में प्रवेश कर सकते हैं, और बढ़ते तापमान से उनके बचने की संभावना भी बढ़ जाती है। लीब्लर ने कहा कि, “इस बात के सबूत हैं कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा है, यह अधिक संभावना है कि विश्व स्तर पर पीने के पानी में विभिन्न प्रकार के पैथोजन यानी रोग कारक मौजूद होंगे,।”
दरअसल, जलवायु के खतरे मानव शरीर पर सीधा दबाव डालते हैं और लोगों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं। गर्मी कम करती है संक्रमण से लड़ने की क्षमता मैरीलैंड इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड एनवायरनमेंटल हेल्थ में महामारी विज्ञान और बायोस्टैटिस्टिक्स के प्रोफेसर अमीर सपकोटा का कहना है कि, “विशेष रूप से गर्म देशों में जो हो रहा है, वो चिंताजनक है, क्योंकि यह पोषण को कमजोर करता है और कुपोषण को बढ़ाता है, इस तरह से हमारे शरीर की संक्रमण से लड़ने की क्षमता को कमजोर करता है।”
कुछ वायरस गर्मी में भी जिंदा रहना सीख गए तो…? मोरा ने कहा कि प्राकृतिक चयन के माध्यम से कुछ वायरस हीट वेव के उच्च तापमान को सहन करने के लिए अपने को अनुकूल कर सकते हैं। उन्होंने कहा, यह हमारे लिए बुरी खबर हो सकती है, क्योंकि आक्रमणकारी वायरस के खिलाफ मानव शरीर के प्रमुख हथियारों में से एक तापमान बढ़ाकर वायरस को परास्त करना ही है।
नए पैथोजन के बारे में भी वैज्ञानिक चिंतित वैज्ञानिक नए रोगकारकों यानी पैथोजन के ‘पेंडोरा बॉक्स’ के बारे में भी चिंतित हैं। मोरा का ये अध्ययन नई बीमारियों के फैलने की संभावना के बारे में भी चिंता जताता है।
उदाहरण के लिए, आर्कटिक सर्कल में, पर्माफ्रॉस्ट के नीचे जमे हुए जानवरों के शरीर में प्राचीन पैथोजन कुछ बुरे प्रभावों के साथ फिर से उभरने लगे हैं। आनुवंशिक विश्लेषण के माध्यम से, वैज्ञानिकों ने 2016 में एंथ्रेक्स के प्रकोप का पता लगाया था, जो कि साइबेरिया में गर्मी की लहर के दौरान प्रागैतिहासिक जानवरों के कारण उजागर हुआ बताया जाता है ।
सपकोटा ने कहा, “पिघलने वाले पर्माफ्रॉस्ट समय पर जमे हुए पैथोजन को उजागर कर सकते हैं।” “हमें यह भी पता नहीं है कि वे क्या हैं और अगर वे आज हमें संक्रमित करते हैं तो वे क्या होंगे।” मोरा ने कहा कि यह संभव है कि आर्कटिक में बढ़ता तापमान नए रोगजनकों का “पेंडोरा बॉक्स” खोल सकता है, जिसके लिए मानव प्रतिरक्षा प्रणाली का जोखिम नहीं था।
जानवरों से इंसानों में नए वायरस फैलने की संभावना को लेकर वैज्ञानिक भी चिंतित हैं। सपकोटा ने कहा, “सूखे के साथ, क्या होता है कि जानवर भोजन की तलाश में बड़े क्षेत्रों में जाना शुरू कर सकते हैं, जिससे इस वायरल स्पिलओवर घटना के लिए यह अवसर मिलता है।” “अपने क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाले मनुष्यों के संबंध में भी यही बात है।”
“एक सवाल जो दिमाग में आता है वह है: क्या होगा अगर वह नई वायरल स्पिलओवर घटना कुछ बहुत ही अनोखी हो?” सपकोटा ने कहा। “यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने के मामले में कोरोनवायरस जितना ही कुशल हो, लेकिन लोगों को मारने के मामले में उतनी ही कुशल हो जितना इबोला वायरस।”