ब्रिटिश सरकार ने नहीं दिखाई है रुचि
पीएम थेरेसा मे की इस बात को लेकर स्टैंड साफ है। यही वजह है कि उसने इस प्रोजेक्ट से खुद को दूर ही रखा है। पहले चीन दौरे पर भी मे ने चीन को अपना स्वभाविक सहयोगी जरूरत बताया था लेकिन इस मुद्दे पर वह कुछ नहीं बोली थीं। चीन का ये प्रोजेक्ट करीब 60 देशों को जोड़ता एक-दूसरे से जोड़ता है। इस प्रोजेक्ट पर काम पूरा होने के बाद इसके जरिए चीन से यूरोप आवागमन और व्यापार करना आसान हो जाएगा। टिश अखबार गार्जियन की खबर को सही मानें तो ब्रिटिश सरकार इस प्रोजेक्ट से जुड़े किसी भी समझौते पर अपनी मंजूरी नहीं देगी। थेरेसा मे इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि चीन और ब्रिटेन दोनों साथ मिलकर एक साथ दुनिया के लिए काम कर सकते हैं। लेकिन इस प्रोजेक्ट को लेकर उनका कहना है कि अभी यह देखना बाकी है कि यह किस तरह अंतरराष्ट्रीय मापकों पर खरा उतरता है। इस परियोजना से ब्रिटेन का हित किस रूप में जुड़ा है।
पीएम थेरेसा मे की इस बात को लेकर स्टैंड साफ है। यही वजह है कि उसने इस प्रोजेक्ट से खुद को दूर ही रखा है। पहले चीन दौरे पर भी मे ने चीन को अपना स्वभाविक सहयोगी जरूरत बताया था लेकिन इस मुद्दे पर वह कुछ नहीं बोली थीं। चीन का ये प्रोजेक्ट करीब 60 देशों को जोड़ता एक-दूसरे से जोड़ता है। इस प्रोजेक्ट पर काम पूरा होने के बाद इसके जरिए चीन से यूरोप आवागमन और व्यापार करना आसान हो जाएगा। टिश अखबार गार्जियन की खबर को सही मानें तो ब्रिटिश सरकार इस प्रोजेक्ट से जुड़े किसी भी समझौते पर अपनी मंजूरी नहीं देगी। थेरेसा मे इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि चीन और ब्रिटेन दोनों साथ मिलकर एक साथ दुनिया के लिए काम कर सकते हैं। लेकिन इस प्रोजेक्ट को लेकर उनका कहना है कि अभी यह देखना बाकी है कि यह किस तरह अंतरराष्ट्रीय मापकों पर खरा उतरता है। इस परियोजना से ब्रिटेन का हित किस रूप में जुड़ा है।
ट्रंप पहले ही जता चुके हैं अनिच्छा
आपको बता दूं कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों भी इस प्रोजेक्ट को लेकर शंका जता चुके हैं। दोनों देशों ने अभी तक इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई है। फिर ओबीओआर से जुड़ी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर भारत की गहरी आपत्ति है। सीपीईसी गिलगिट और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरता है। भारत पीओके सहित संपूर्ण जम्मू-कश्मीर को अपना अखंड हिस्सा मानता है। सीपीईसी चीन की ओबीओआर की महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक है। चीन की कई कोशिशों के बावजूद भारत इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ था। इस परियोजना पर भारत की आपत्ति को लेकर कुछ दिनों पहले चीनी विदेश मंऋालय बयान जारी कर कहा है कि इस मुद्दे पर चीन भारत से अलग से बात करने को तैयार है।
आपको बता दूं कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों भी इस प्रोजेक्ट को लेकर शंका जता चुके हैं। दोनों देशों ने अभी तक इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई है। फिर ओबीओआर से जुड़ी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर भारत की गहरी आपत्ति है। सीपीईसी गिलगिट और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरता है। भारत पीओके सहित संपूर्ण जम्मू-कश्मीर को अपना अखंड हिस्सा मानता है। सीपीईसी चीन की ओबीओआर की महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक है। चीन की कई कोशिशों के बावजूद भारत इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ था। इस परियोजना पर भारत की आपत्ति को लेकर कुछ दिनों पहले चीनी विदेश मंऋालय बयान जारी कर कहा है कि इस मुद्दे पर चीन भारत से अलग से बात करने को तैयार है।
क्या है ओबीओआर परियोजना?
दरअसल चीन अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर सामने आया है। उसने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए ओबीओआर के अर्न्तगत सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है। इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है। इसमें से कई गलियारों पर काम भी शुरू हो चुका है। इस परियोजना को न्यू सिल्क रोड परियोजना के तहत चीन की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा , न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज, चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा, चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा और चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा बनाने की योजना है।
दरअसल चीन अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर सामने आया है। उसने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए ओबीओआर के अर्न्तगत सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है। इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है। इसमें से कई गलियारों पर काम भी शुरू हो चुका है। इस परियोजना को न्यू सिल्क रोड परियोजना के तहत चीन की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा , न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज, चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा, चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा और चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा बनाने की योजना है।