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छोटे देशों की मदद के नाम पर दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में चीन कर रहा है गोलबंदी

-125 खरब रुपए की आर्थिक सहायता दे चुका है चीन छोटे देशों को 2006 से 2016 के बीच (bri project/ china)

Sep 29, 2019 / 06:09 pm

pushpesh

हंबनतोता पोर्ट श्रीलंका

चीन दक्षिण प्रशांत क्षेत्र (South Pacific regions) में अपना दबदबा बढ़ा रहा है। खासकर छोटे देशों को साधकर वह अपने मंसूबों में कामयाब हो रहा है। इन दिनों वह दूसरे देशों को आर्थिक सहायता के बदले ताइवान के साथ राजनयिक संबंध तोडऩे का दबाव डाल रहा है। दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र के दो द्वीपीय देश सोलोमन और किरिबाती ताइवान के साथ राजनयिक संबंध तोडक़र चीन के साथ जुड़ गए। यानी अब केवल ताइवान के साथ 15 देश हैं, जिनके साथ उसके राजनयिक संबंध हैं। जाहिर है, चीन ताइवान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए कूटनीतिक आक्रमण बढ़ा रहा है।
पहले चीन और ताइवान ने दक्षिण प्रशांत सहायता आधारित कूटनीति का जमकर प्रचार किया। लेकिन हाल के वर्षों में चीन ने आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया के एक शोध संस्थान के मुताबिक चीन ने 2006 से 2016 तक दक्षिणी प्रशांत देशों के लिए 192 बिलियन येन यानी करीब 125 खरब रुपए की आर्थिक सहायता दे चुका है। इस क्षेत्र में अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के बाद चीन सबसे अधिक आर्थिक सहायता देने वाला देश बन गया है। इन हालातों में चीन का बढ़ता दखल क्षेत्रीय तनाव का कारण बन सकता है। उधर प्रशांत और हिंद महासागर में चीन अपनी ताकत बढ़ाने के लिए वह अपनी गतिविधियों का विस्तार कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय नियमों को ताक पर रखकर की गई इन गतिविधियों के कारण चीन की आलोचना भी की गई।
श्रीलंका से ले लिया हंबनतोता बंदरगाह
श्रीलंका के लिए चीन का ऋण चुकाना असंभव है। इसके बदले श्रीलंका ने हंबनतोता पोर्ट में चीन को अधिकार सौंप रहा है, जो दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा बंदरगाह है। कई द्वीपीय देश चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर होते जा रहे हैं। इन्हीं में एक है वानअतु, जहां सुधार परियोजना के नाम पर चीन बंदरगाह का सैन्य लाभ के लिए इस्तेमाल कर सकता है। चीन ने मानव निर्मित द्वीपों पर रडार और मिसाइल लगाकर समुद्री परिवहन की आजादी को खतरे में डाल दिया।

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