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Climate Change: अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा 2024, पार हो सकती है 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा

Climate Change: यूरोपीय संघ की मौसम एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि जलवायु इतिहास में 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहने वाला है।

नई दिल्लीNov 08, 2024 / 10:15 am

Shaitan Prajapat

Climate Change: जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी का तापमान निरंतर बढ़ रहा है। अब यूरोपीय संघ की मौसम एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि जलवायु इतिहास में 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहने वाला है। इससे पहले 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, जब तापमान वृद्धि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.48 डिग्री सेल्सियस दर्ज की गई थी। जब वैज्ञानिकों ने आशंका जताई कि 2024 यानी इस वर्ष यह तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर 1.59 डिग्री तक पहुंच सकता है।

यूरोपीय संघ की मौसम एजेंसी ने जारी किए आंकड़े

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल के पहले दस माह में वैश्विक तापमान इतना अधिक रहा है कि अंतिम दो माह में तापमान में बड़ी गिरावट भी इस रिकॉर्ड को बनने से नहीं रोक सकती। औद्योगिक पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग शुरू होने के बाद यह पहला मौका है, जब तापमान वृद्धि इस सीमा तक पहुंची है। वैज्ञानिक इसके लिए इंसानी गतिविधियों को मुख्य रूप से जिम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसके लिए अल नीनो जैसी प्राकृतिक घटनाओं को योगदान कम नहीं। सी3एस ने यह आंकड़े अगले सप्ताह अजरबैजान में जलवायु परिवर्तन पर होने वाले जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-19 से ठीक पहले जारी किए हैं। यह सम्मेलन 11 नवंबर को अजरबैजान की राजधानी बाकू में शुरू हो रहा है।
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ऐसे बदला तापमान

वर्ष- तापमान
1940 0.19
1950 0.11
2060 0.26
2070 0.30
2080 0.58
2090 0.74
2000 0.62
2010 1.01
2020 1.31
2023 1.48
2024 1.59
( ‘औद्योगिक काल से पहले’ का अर्थ है 1850 से 1900 के बीच की अवधि। जब इंसानों ने जीवाश्म ईंधन को बड़े पैमाने पर प्रयोग शुरू किया था। )

पेरिस जलवायु समझौते का क्या?

कॉपरनिकस की उप निदेशक सामंथा बर्गेज का कहना है कि यह रेकॉर्ड इसलिए भी चुनौती है कि 2015 में हुए पेरिस समझौते में करीब 200 देशों ने तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा था। इस लक्ष्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभावों से मानव जाति को बचाना था। हालांकि इस समझौते से तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप बाहर हो गए थे और अब वे फिर चुने गए हैं। ऐसे में इस समझौते के भविष्य पर भी संशय है।

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