वैज्ञानिकों ने 4 गायों को प्रयोग के लिए चुना। उन्हें एचआर्इवी के दो-दो इंजेक्शन लगाए। तकरीबन 30-35 दिन बाद उनमें प्रतिरक्षी कोशिकाएं बनने लगी।
गाय को ही क्यों चुना?
वैज्ञानिकों का मानना है कि गायें एचआर्इवी या उसके जैसे वायरस से आमतोर पर संक्रमित नहीं होती हैं। उनकी प्रतिरोधक क्षमता बेहद खास किस्म की होती है। वह जब एेसे किसी वायरस के संपर्क में आती है तो उनके शरीर में प्रतिरक्षी कोशिकाएं तेजी से विकसित होने लगती हैं। इंटरनेशनल एडस वैक्सीन इनीशिएटिव से जुड़े शोध के प्रमुख लेकर डेविड सोक का कहना है कि एचआर्इवी मानव को प्रभावित करने वाला वायरस है, मगर इससे लड़ने की क्षमता सभी जीवों से है।
मौजूदा समय में एचआर्इवी का कोर्इ तोड़ नहीं है। इससे ग्रस्त मरीजों को पूरे जीवन जी मिचलाने, उल्टी-दस्त, अनिद्रा की दवाइयां लेनी पड़ती है।
ये हैं भयावह आंकड़े
एचआर्इवी से 2005 में 19 लाख मौतें हुर्इ। वहीं 2016 में ये मौतों का आंकड़ा 10 लाख रहा। 3.67 करोड़ एचआर्इवी ग्रस्त लोगाें में से 1.95 करोड़ लोग उपचार ले रहे हैं। 1980 में इस महामारी के बाद से अब तक 3.5 करोड़ लोग जान गंवा चुके हैं।