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दुनियाभर में टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में बनेगी नीति, पर अमल है जरूरी

locationजयपुरPublished: Sep 21, 2018 10:02:13 pm

Submitted by:

manish singh

दुनियाभर में टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में बनेगी नीति, पर अमल है जरूरी, एचआईवी, एड्स और मलेरिया से होने वाली मौतों को भी पीछे छोड़ चुकी है।

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दुनियाभर में टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में बनेगी नीति, पर अमल है जरूरी

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 13 मार्च 2018 को टीबी मुक्त भारत बनाने के लिए ‘नेशनल स्ट्रेटेजिक प्लान’ (एनएसपी 2017-2025) अभियान को लॉन्च करते हुए कहा था कि वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाना है। उन्होंने कहा था कि दुनियाभर के देशों ने टीबी को 2030 तक जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखा है लेकिन हमें इस लक्ष्य को पांच साल पहले हर हाल में पूरा करना है।

टीबी दुनिया अभी भी खतरनाक और जानलेवा बीमारी बनी हुई है जो एचआईवी, एड्स और मलेरिया से होने वाली मौतों को भी पीछे छोड़ चुकी है। हालांकि टीबी का इलाज, बचाव और रोकथाम संभव है। इसको लेकर किसी भी तरह की कोताही इस बीमारी को फैलाने का काम करेगी। विश्व के शीर्ष नेताओं से उम्मीद है कि वे अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र में होने जा रही बैठक में टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए जो रणनीति बनाएंगे उसपर काम करने की योजना भी बनाएंगे। टीबी एक संक्रामक रोग है जो सबसे पुरानी बीमारी है और दुनिया का हर देश इससे जद्दोजहद कर रहा है।
टीबी माइक्रोबैक्टिरियम और बेसिलस से होने वाला रोग है। ये तब फैलता है जब व्यक्ति बीमार होता है या किसी कारण से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। खास बात ये है कि इसका किटाणु जब रोगी खांसता है तब हवा में फैल जाता है। इस वजह से दूसरे लोगों के भी इसकी चपेट में आने का खतरा दोगुना हो जाता है।

1940 के दशक से इस बीमारी का प्रभावी इलाज संभव हुआ है और दुनिया के कुछ देशों में इसपर नियंत्रण पा भी लिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2016 की रिपोर्ट के अनुसार टीबी से पीडि़त रोगियों में इलाज की दर 82 फीसदी है, जबकि इससे होने वाली मौतों का स्तर वर्ष 2000 में 23 फीसदी से गिरकर 16 फीसदी तक पहुंच गया है।

टीबी को लेकर बड़े स्तर पर सुधार देखा गया है लेकिन कड़वी हकीकत ये है कि अभी भी लाखों की संख्या में लोग टीबी से पीडि़त हैं जिनकी पहचान नहीं हो पाई है और इलाज नहीं ले रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़े के अनुसार वर्ष 2017 में टीबी के एक करोड़ नए मामले सामने आए थे इसमें करीब 64 लाख मामले डब्ल्यूएचओ को मिले थे। इसका मतलब ये हुआ कि करीब 36 लाख लोग डब्ल्यूएचओ की पकड़ से दूर रह गए। आंकड़ों को लेकर जो स्थिति है उसके कई कारण हो सकते हैं। टीबी की चपेट में आने के बाद लोग मनमर्जी का इलाज कराते हैं जिससे वे आंकड़ों के तहत पंजीकृत नहीं हो पाते हैं।

इसका नतीजा ये होता है कि वे गुणवत्तापूर्ण इलाज से दूर रह जाते हैं। इसके तीन प्रमुख कारण होते हैं। पहला देश की भगौलिक स्थिति, भयंकर गरीबी और समाज में हेय की दृष्टि से देखे जाने के डर के कारण रोगी अपने रोग को छुपाता रहता है। दुनिया के दस देशों में टीबी के इलाज और जागरूकता को लेकर स्थिति बेहद खराब है। इसमें टॉप थ्री में भारत, इंडोनेशिया और नाइजीरिया शामिल हैं।

टीबी को दुनिया दुनियाभर के देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि टीबी जैसी बीमारी के बढऩे का सिलसिला लगातार जारी है। इसके साथ ही असरदार दवाओं का सही तरह से काम न करना जिससे बीमारी पर रोक नहीं लग प रही है। टीबी का सफल इलाज जितना महत्वपूर्ण है उससे अधिक महत्वपूर्ण ये है कि इसके जांच के तौर तरीकों को बेहतर करना होगा जिससे इसका जल्द से जल्द पता चल सके और पीडि़त को समय रहते बेहतर इलाज मिल सके। सबसे बड़ी चुनौती नई दवा और इलाज का नया तरीका ढूंढना है जिससे कम समय में बेहतर परिणाम देखने को मिलें और बीमारी कम समय में ठीक हो सके।

टीबी की बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए हर देश का अपना बजट होता है। अमरीकी सरकार ने इस साल टीबी के इलाज के लिए कुल करीब 498 करोड़ (6.9 बिलियन अमरीकी डॉलर) रुपए का बजट रखा था जो 2006 के बजट से 238 करोड़ (करीब 3.3 बिलियन अमरीकी डॉलर) अधिक था। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक इस बीमारी से निपटने के लिए एक हजार करोड़ रुपए (करीब 10 बिलियन डॉलर) की जरूरत है। अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले वर्ष वैश्विक स्वास्थ्य बजट में कटौती की थी। इसके बाद कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन और कांग्रेसनल पार्टी ने अपने स्तर से फंड जारी किया जिससे टीबी जैसी जानलेवा बीमारी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खत्म करने की लड़ाई को लड़ा जा सके।
इसके बाद से इस बीमारी की रोकथाम और इलाज के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया।

अब 26 सितंबर, बुधवार को दुनियाभर के देशों के शीर्ष प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र में जुटेंगे। संयुक्त राष्ट्र पहली बार टीबी को लेकर उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन कर रहा है जिसमें बीमारी को लेकर सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बैठक में एक मसौदा भी तैयार किया जाएगा जिसमें दुनियाभर के 36 लाख लोगों की पहचान के बाद इलाज मुहैया कराना है जो गिनती में नहीं है। इसके साथ ही सबसे जरूरी है उन 64 करोड़ लागों को बेहतर इलाज मुहैया कराना जिनका इलाज अभी चल रहा है। मसौदे में दुनिया के शीर्ष प्रतिनिधियों के लिए ये भी चुनौती होगी कि भविष्य में वे ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (टीबी की दवा बीच में छोडऩे से फैलने वाली बीमारी) को कैसे रोक सकते हैं।

बैठक में दुनियाभर का शीर्ष प्रतिनिधिमंडल जो फैसला लेता है उसमें सबसे अहम होगा कि वे वापसी के बाद उसे अपने देश में कैसे लागू करवाते हैं। उम्मीद है वे इसमें कोई लापरवाही नहीं बरतेंगे और टीबी जैसी बीमारी को जड़ से खत्म करने की बैठक को इतिहास के पन्ने में सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराएंगे जो सब चाहते हैं।

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