रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) को भले ही 2 साल हो गए हैं लेकिन इस युद्ध के चलते रूस और यूक्रेन में तबाही मची हुई है। इस युद्ध के अगर इतिहास में जाएंगे तो पता चलेगा कि इस जंग की शुरूआत लगभग 10 साल पहले ही हो गई थी। संयुक्त राष्ट्र और US स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 से लेकर अब तक इस संघर्ष के चलते 3 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। और लगभग 5 लाख लोग हताहत हुए हैं। ये संख्या इतनी है कि जितनी की मालदीव (Maldives) जैसे देश की जनसंख्या….वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अगर देखें तो इजरायल-हमास जंग (Israel-Hamas War) और ईरान-इजरायल संघर्ष के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध के ये हिलाकर रख देने वाले तथ्य कहीं खो से गए हैं। ऐसे में यहां हम आपको इस संघर्ष के कारण और इससे हुई मौतों और प्रभावित लोगों की संख्या के बारे में बता रहे हैं।
रूस और यूक्रेन के (Russia-Ukraine War) बीच का तनाव एक-दो साल का नहीं बल्कि 10 साल पुराना है। सत्ता, स्वामित्व और विस्तारवादी नीति का ये संघर्ष वैसे तो दशकों पुराना है लेकिन सोवियत संघ (The Soviet Union) से अलग होने के बाद से ही यूक्रेन और रूस में दरार आ गई थी। 20 वीं सदी में रूस की क्रांति हुई और सोवियत संघ का गठन हुआ। सोवियत नेता जोसेफ़ स्टालिन ने दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के खत्म होने पर पोलैंड से पश्चिमी यूक्रेन का अधिकार हासिल कर लिया था इसके बाद 1950 के दशक में रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन के हवाले कर दिया था। तब से क्रीमिया (Crimea) यूक्रेन के ही पास था।
सोवियत सरकार ने यूक्रेन पर रूस का प्रभाव थोपने की कोशिश की। इसे लेकर कई बार यूक्रेन को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है और आज भी ऐसा ही हो रहा है। साल 1991 में सोवियत संघ टूट गया। जिसके बाद इस संघ से कुछ देश बाहर निकल गए। यूक्रेन और रूस के साथ भी यही हुआ। साल 1997 में रूस और यूक्रेन के बीच संधि हुई। दोनों देशों के बीच क्षेत्राधिकार को लेकर बातचीत की गई। जिनमें से कुछ पर सहमति बनी और कुछ पर नहीं। इस वजह से ही दोनों के बीच में दरार बढ़ती गई।
पूर्वी यूक्रेन में रूस का काफी प्रभाव देखा जाता है। यहां रहने वाले लोग रूसी भाषा बोलते हैं। तो वहीं पश्चिमी यूक्रेन में पश्चिमी देशों का प्रभाव नज़र आता है। यहां रहने वाले कैथलिक हैं और अपनी भाषा बोलते हैं। इस दरार का नतीजा ये हुआ कि रूस ने साल 2014 में जबरन यूक्रेन को दिए दए क्रीमिया को उससे छीन लिया और उस पर कब्जा कर लिया। तब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) का तर्क ये था कि रूस क्रीमिया में रूसी बोलने वालों की रक्षा करेगा और इस क्षेत्र को जो उनका था उसे दोबारा वापस लेगा।
पुतिन के इस ऐलान के बाद क्रीमिया और यूक्रेन की सियासत में हलचल पैदा हो गई थी। बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। जिसके चलते यूक्रेन के क्रेमलिन समर्थक राष्ट्रपति को उनके पद से हटा दिया गया था। इसका आरोप रूस ने अमेरिका पर लगाया था कि अमेरिका के ही उकसाने पर क्रीमिया में तख्तापलट हुआ। इसके बाद पुतिन ने क्रीमिया पर कब्ज़ा करने के लिए सेना भेजी और रूस में शामिल होने के लिए वहां जनमत संग्रह बुलावाया। हालांकि इसे पश्चिम के देशों ने अवैध करार कर खारिज कर दिया था।
इसके बाद रूस ने 18 मार्च 2014 को जल्दबाजी में जनमत संग्रह करवाकर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया और यूक्रेन से छीन लिया। लेकिन ये कब्जा लोगों के लाशों के ऊपर हुआ। क्योंकि इस जनमत संग्रह के खिलाफ हिंसा भड़क उठी थी। 23 फरवरी से 19 मार्च 2014 तक क्रीमिया पर रूसी कब्जे के दौरान 6 लोग मारे गए थे।
इस घटना के कुछ दिन बाद ही रूस समर्थित अलगाववादियों ने यूक्रेन की सेनाओं से लड़ते हुए पूर्वी यूक्रेन में विद्रोह शुरू कर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि रूस के दिए गए एयर डिफेंस सिस्टम ने जुलाई 2014 में पूर्वी यूक्रेन के ऊपर मलेशिया एयरलाइंस के एक यात्री जेट को गिरा दिया था , जिसमें सवार सभी 298 लोग मारे गए थे। तब से ही यूक्रेन में क्रीमिया को अलग करने पर जो युद्ध छिड़ा वो साल 2021 तक चला। इसे डोनबास का युद्ध (Donbas War) कहा जाता है। हालांकि इस युद्ध की शुरुआत 6 अप्रैल से मानी जाती है और अंत 31 दिसंबर 2021 को माना जाता है क्योंकि इसके बाद रूस ने सीधे तौर पर यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया था।
इस युद्ध में मरने वालों की अनुमानित संख्या 14200 से 14400 थी। इसमें लगभग 6500 रूस समर्थक अलगाववादी बल, 4400 यूक्रेनी बल और 3404 नागरिक शामिल हैं। ये आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र और US स्टेट डिपार्टमेंट की जारी रिपोर्ट का है। लेकिन यूक्रेन का कहना है कि असल मौतों का आंकड़ा इससे भी कहीं ज्यादा है जो करीब डेढ़ लाख से ज्यादा का है।
इसके बाद 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन में रूस का आक्रमण हो गया। जो 2014 में हुए संघर्ष का ही विस्तारवादी रूप है। इस संघर्ष में अब तक करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। BBC रशियन और मीडियाज़ोना न्यूज़ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक 53,586 रूसी सैनिकों और वॉर कॉ़न्ट्रैक्टर (भाड़े की सेना) की मौत हो गई है। जिनकी मृत्यु का उन्होंने 17 मई 2024 तक दस्तावेजीकरण किया था। रिपोर्ट्स का ये भी कहना है कि ये सिर्फ आधिकारिक आंकड़े हैं। असल आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं।
इसकी वजह बताते हुए ये रिपोर्ट्स कहती हैं कि हर हफ्ते वो संस्थाएं रूस के कई इलाकों में रूसी सेना के जवानों के अंतिम संस्कार देखती हैं। जिसके उन्हें सबूत भी मिले हैं। लेकिन उन्हें स्थानीय अधिकारियों तक ने रिपोर्ट नहीं किया जिससे वो आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं हो पातीं। इसके आधार पर माना जा सकता है कि रूस में सैनिकों और नागरिकों के मरने वालों की संख्या असल आंकड़ों से 40 प्रतिशत तक कम है। अप्रैल 2024 तक ये असल आंकड़े 1 लाख से भी ऊपर चल गए हैं। तो वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति बीते महीने आधिकारिक तौर पर बयान दिया था कि उनके 30 से 35 हजार सैनिक इस युद्ध में मारे गए हैं।
उधर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से विद्रोह कर बैठे रूस की भाड़े की सेना वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन ने भी पुष्टि की थी कि उनके संगठन ने 25 मई 2023 तक 20,000 से ज्यादा सैनिकों को खो दिया था। उन्होंने दावा किया कि कुल मिलाकर रूसी सेना ने जून 2023 के आखिरी तक यूक्रेन में 120,000 लोगों को खो दिया है यानी उनकी मौत हो चुकी है।
ऐसे में अब अगर इन आंकडो़ं को देखें तो 2014 से जारी इस संघर्ष में 3 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं। जिसमें रूस-यूक्रेन के सैनिक, अधिकारी और आम नागरिक भी शामिल हैं। वहीं 5 लाख से ज्यादा लोग हताहत हैं यानी वो घायल हैं, बेघर हैं, लापता हैं या फिर शरणार्थी हैं।
Updated on:
18 May 2024 04:38 pm
Published on:
18 May 2024 04:37 pm