रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के हाल के दिल्ली दौरे के दौरान भारत ने पांच एस-400 ट्रियूम्फ एंटीएयरक्राफ्ट मिसाइल खरीदने का करार किया है। भारत का अमरीकी प्रतिबंध के खिलाफ जाकर सौदा करना नियमों के खिलाफ है। पिछले साल जो वैधानिक नियम अमरीका ने बनाए थे उसमें स्पष्ट कहा था कि रूस से सैन्य और इंटेलिजेंस क्षेत्र से कोई भी करार या व्यपार करता है तो उसके ऊपर अर्थदंड लगाया जाएगा।
अमरीका और भारत कुछ वर्षों में एक दूसरे के काफी करीब आए हैं जिसका एक प्रमुख कारण चीन का तेजी से बढ़ता दायरा है, लेकिन रूसी मिसाइल सिस्टम पर दोनों देशों के बीच उपजा विवाद परेशानी खड़ी करेगा। इस बीच भारत अमरीका से अच्छे रिश्ते तो स्थापित करना चाहता है लेकिन इस शर्त पर नहीं की वे रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को दांव पर लगा दे। भारत हमेशा से अपने निर्णयों पर अटल रहा है। उसे बखूबी पता है कि ईरान और चीन के साथ कैसा संबंध बनाकर रखना है। इसके बाद ही वे अमरीका से मधुर संबंध बनाने की रणनीति बनाता है।
पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति के शासनकाल के अधिकारी ऐशले टेलिस कहते हैं भारत वो देश नहीं है जो वाशिंगटन के अनुसार दूसरे देशों के साथ अपने रिश्ते स्थापित करेगा। दिल्ली ने इसके लिए एक लाल रेखा खींच रखी है जिसके आगे किसी की नहीं चलेगी। अब सवाल ये है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भारत को इसके लिए छूट देंगे जिसमें उसने रूस से एयरक्राफ्ट खरीदे हैं।
रक्षा विशेषज्ञ सी. उदय भास्कर का कहना है कि रूसी मिसाइल सिस्टम की खरीदारी अमरीका और भारत के बीच लचीले रिश्ते की परीक्षा का समय है। अमरीका भारत को पहले ही ईरान से तेल खरीदारी पर रोक लगाने के लिए बाध्य कर रहा है जबकि आने वाले समय में वे तेहरान पर भी ऐसा ही प्रतिबंध लगा सकता है। ऐसे में दोनों को लचीला होना होगा।
जोआना स्लेटर, भारत में वाशिंगटन पोस्ट की ब्यूरो चीफ हैं