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विदेशी धरती पर समाजसेवा के बलबूते इन्होंने देश का मान बढ़ाया

locationजयपुरPublished: Feb 20, 2019 04:26:01 pm

Submitted by:

manish singh

हाल ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 15वें प्रवासी भारतीय सम्मान समारोह में समाज सेवा के क्षेत्र में सराहनीय काम के लिए इन्हें सम्मानित किया गया है

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विदेशी धरती पर समाजसेवा के बलबूते इन्होंने देश का मान बढ़ाया

14 की उम्र में राजनीति की दुनिया में आए

हिमांशु गुलाटी भारतीय मूल के नार्वेगियन नागरिक हैं और दिल्ली के हैं। पिता फिजिशियन व मां फिजियोथैरेपिस्ट थीं। 1970 में नॉर्वे चले गए थे। डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की लेकिन बाद में मन बदला और छोड़ दी। देश में अवैध रूप से आने वाले लोगों के लिए सख्त कानून के पक्षधर हैं। शरणार्थी कैंपों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। नॉर्वेगियन बिजनेस स्कूल से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई के साथ भारत से फिल्म मेकिंग में छह महीने का कोर्स किया है। कॉलेज के दिनों में राजनीति में दिलचस्पी हो गई और 14 साल की उम्र में नॉर्वे की प्रोग्रेस पार्टी जॉइन कर लिया। 2012 में प्रोग्रेस पार्टी यूथ के अध्यक्ष चुने गए जबकि इससे पहले दो साल तक उपाध्यक्ष भी रहे थे। कर, विदेश नीति और प्रवास नीति पर बड़े पैमाने पर काम किया है। 2013 के आम चुनावों में जीत के बाद इन्हें न्याय और सुरक्षा मंत्रालय का राज्य सचिव नियुक्त किया गया। कैबिनेट में 25 साल की उम्र में इस पद को पाने वाले सबसे युवा राज्य सचिव बने थे। ये अब तक 90 देशों की यात्रा कर चुके हैं और इन्हें स्किंग और फिल्म मेकिंग पसंद है।

स्विट्जरलैंड से देश के लिए कर रहें काम

डॉ.राजेंद्र कुमार जोशी भारतीय मूल के हैं और स्विट्जरलैंड में रहते हैं। मूल रूप से राजस्थान के सीकर के रहने वाले हैं। इन्होंने फॉर्मेसी में स्नातक की डिग्री बिट़्स पिलानी से की है। इसके बाद 1969 में रिसर्च और पीएचडी के लिए स्विट्जरलैंड चले गए। पढ़ाई पूरी होने के बाद इन्होंने वहीं पर एक फॉर्मा कंपनी खोली जिसे 2006 में बायोजेन नाम की कंपनी को बेच दिया। पत्नी उर्षुला जोशी भी फॉर्मासिस्ट हैं और ज्यूरिख में अपनी फॉर्मेसी कंपनी चलाती हैं। दोनों लोग स्विट्जरलैंड में रहकर देश के युवाओं के लिए काम करते हैं। बिहार की नालंदा यूनिवर्सिटी को छह करोड़ रुपए की राशि दी है। 2015 में न्यूरोलॉजिस्ट एंड साइक्रेट्रिक एसोसिएशन ने इन्हें गोल्डेन टैबलेट अवॉर्ड से नवाजा था। दिमाग की बीमारी मल्टीपल स्केलोरोसिस की दवा टेक्फीडेरा (बीजी-12) बनाई। 2015 को अमरीकी एजेंसी एफडीए ने इसे गोल्डेन स्टैंडर्ड दवा बताया था। भारत में कौशल विकास के तहत भारतीय स्किल डेवलपमेंट सेंटर शुरू किया। इस टे्रनिंग प्रोग्राम के तहत देश के युवाओं को अलग-अलग क्षेत्रों के लिए तैयार किया जिससे वे पैरों पर खड़े हो सकें।

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