scriptMiddle East : क्या एक और ‘अरब स्प्रिंग’ की तरफ बढ़ रहा है मध्य-पूर्व | Is the Middle East moving towards another 'Arab Spring' | Patrika News

Middle East : क्या एक और ‘अरब स्प्रिंग’ की तरफ बढ़ रहा है मध्य-पूर्व

Published: Jan 05, 2020 04:39:39 pm

Submitted by:

pushpesh

-जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, इजराइल, यमन, ओमान और ईरान-इराक में सुलगे आवेश को दबाना आसान नहीं होगा (jordan, syria, lebanon, israel, yemen, oman, iraq-iran)
-अमरीका और ईरान (america-iran) के बीच तनातनी ने ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी (qasem soleimani) की हत्या के बाद उग्र रूप ले लिया है।

Middle East : क्या एक और ‘अरब स्प्रिंग’ की तरफ बढ़ रहा है मध्य-पूर्व

Middle East : क्या एक और ‘अरब स्प्रिंग’ की तरफ बढ़ रहा है मध्य-पूर्व

वर्ष 2020 मध्य-पूर्व के लिए उथल-पुथल भरा रहने वाला है। बढ़ता जनाक्रोश 2010 के अरब स्प्रिंग को दोहराने की दहलीज पर है। लीबिया में गृहयुद्ध ने खतरनाक मोड़ ले लिया है। यमन आर्थिक नाकाबंदी और युद्ध से तबाह हो रहा है। इदलिब में हिंसा से भागे शरणार्थियों की बड़ी तादाद के चलते सीरिया में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। अमरीका और ईरान के बीच तनातनी ने ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद उग्र रूप ले लिया है। इजराइल और फिलिस्तीनी के रिश्ते भी मौजूदा हालात के चलते सामान्य होते नजर नहीं आ रहे। पूरे मध्य-पूर्व में विरोध आंदोलनों के कारण आधा दर्जन शासकों का सिंहासन खतरे में है।
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सभी की नजर अमरीकी चुनाव पर
आमतौर पर अमरीका में सरकारें बदलने पर भी मध्य-पूर्व के लिए अमरीका की विदेशी नीति में खास बदलाव नहीं आता। लेकिन अब ऐसा नहीं है। इस बार यदि डेमोक्रेट्स डॉनल्ड ट्रंप की सत्ता बदलने में कामयाब होते हैं तो ईरान के साथ परमाणु समझौते, इजराइल-फिलिस्तीन संबंध, तुर्की के साथ रिश्ते और खाड़ी में गठजोड़ जैसे मुद्दों पर नीतियां पलटने की उम्मीद है। यदि ट्रंप सत्ता में बरकरार रहते हैं तो यह साबित हो जाएगा कि उनकी विवादास्पद नीतियां भी सही थीं। ट्रंप के आने से कुछ के लिए संभावनाओं के द्वार बंद होंगे तो कुछ राजनीतिक फायदे की उम्मीद कर सकते हैं। सऊदी राजकुमार, संयुक्त अरब अमीरात और इजराइल जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाडिय़ों ने ट्रंप के लिए सभी दांव चल दिए हैं। ट्रंप के नरम रुख के बाद पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की साजिश और घरेलू अत्याचार जैसी मुद्दों पर राहत मिली है।
ईरान और उसके विरोधियों का गुट
ट्रंप के अधिकतम दबाव की रणनीति ने ईरान की आर्थिक मुश्किलों को बढ़ा दिया है। इसके बदले ईरान और उसके समर्थकों ने अमरीकी हितों पर हमले के लिए मोर्चा खोल लिया है। ओमान की खाड़ी में तेल टैंकरों पर संदिग्ध ईरानी हमलों के बाद अमरीका ने इराक में हिजबुल्ला को निशाना बनाया। जबकि दूसरे देशों ने अमरीका से अपने हितों को जैसे-तैसे साध रखा है। फारस की खाड़ी, इराक, सीरिया और लेबनान जैसे मुद्दे ईरान और अमरीका के बीच गतिरोध को बढ़ा रहे हैं। हालांकि अमरीका और उसके सहयोगी तथा ईरान युद्ध नहीं चाहते। क्योंकि युद्ध से संभावित उथल-पुथल को संभालने का जोखिम कोई भी नहीं लेना चाहता। ये बात अलग है कि अमरीका दूसरे खाड़ी देशों को ईरान के खिलाफ कड़ी मोर्चेबंदी में साझेदार बनाने का प्रयास कर रहा है। ईरान समर्थित मिलिशिया के खिलाफ अमरीकी कार्रवाई इसका संकेत हैं।
सरकारें भी आंदोलन दबाने में विफल
वर्ष 2019 में मध्य-पूर्व के विरोध प्रदर्शनों ने अरब स्प्रिंग को भी पीछे छोड़ दिया। ईरान, इराक, लेबनान में विरोधियों ने सरकार को घेरा, अल्जीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए मजबूर किया और सूडान में शासन को उखाड़ फेंका। लेबनान का आर्थिक संकट अभूतपूर्व तरीकों से विरोधों के साथ खत्म हो रहा है, जबकि अल्जीरिया के शक्तिशाली सैन्य शासक की अचानक मौत और नए राष्ट्रपति के चुनाव ने परिवर्तन की संभावना बढ़ा दी है। सूडान के लोकतांत्रिक बदलाव का जल्द ही पता चल जाएगा। इन देशों में वर्षों से बेरोजगारी, भूख और भ्रष्टाचार के कारण असंतोष पनप रहा था। ईरान में 2019 के विरोध प्रदर्शन को क्रूरता से रोक दिया। लेकिन अभी जनाक्रोश थमा नहीं है। इराक और लेबनान में प्रदर्शनकारियों पर सरकारों के हिंसक नियंत्रण के बावजूद प्रदर्शन थमे नहीं हैं।
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क्या है अरब स्प्रिंग
मध्य-पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में बेरोजगारी, तानाशाही, आर्थिक असमानता को लेकर 2010-11 के सरकार विरोधी प्रदर्शन को अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहा जाता है। ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया, यमन, बहरीन, सीरिया, इराक, जॉर्डन, मोरक्को, सूडान, ओमान, सऊदी अरब आदि में इसका असर ज्यादा था। कई शासकों को सत्ता छोडऩी पड़ी। ट्यूनीशिया में आबेदीन, मिस्र में होस्नी मुबारक, लीबिया में कर्नल गद्दाफी और यमन में अब्दुल्ला को अपदस्थ कर नई सरकारें बनीं।
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