ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि ताकि बच्चे असहज महसूस न करें। एसोसिएशन ने स्कूलों को आदेश जारी कर कहा है कि वे ट्रांसजेंडर बच्चों को ‘जी’ कहकर बुलाएं। ऐसे छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये ‘ही’ या ‘शी’ के तौर पर खुद को पुकारा जाना पसंद नहीं करते। शिक्षकों से कहा गया कि इसलिए ‘नई भाषा’ सीखने की जरूरत है।
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गाइडलाइंस के अनुसार, स्कूलों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि समानता कानून के मुताबिक सभी छात्रों से बराबर का सलूक किया जाए। उनसे अच्छा व्यवहार हो। साथ ही बच्चे खुद को अलग न महसूस करें और मुख्यधारा में शामिल रहें। बता दें कि ब्रिटेन के स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चे पैरेंट्स मीटिंग के दौरान ही या शी पुकारने पर अपनी नाराजगी जताते रहे हैं।
फॉर्म में भी ‘जी’ इस्तेमाल होगा अब तक ब्रिटेन समेत समूचे यूरोप के स्कूलों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों व नौकरियों के आवेदन में थर्ड जेंडर का कॉलम होता है। अब इसकी जगह जी का कॉलम होगा। स्कॉटलैंड के कई स्कूलों ने नए सत्र के दौरान इस कॉलम की शुरुआत भी कर दी है।
आवासीय स्कूलों में बढ़े स्टूडेंट्स शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले एक एनजीओ ‘एजुकेट एंड सेलिब्रेट’ की संस्थापक और नई गाइडलाइंस की लेखिका एली बार्नेस ने बताया कि आवासीय स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चों की संख्या पिछले दो साल में पांच गुना बढ़ी है तो ऐसे में सिर्फ ‘ही’ या ‘शी’ के इस्तेमाल से आगे बढऩा जरूरी हो जाता है। बार्नेस के अनुसार, अभिभावक और छात्रों की प्रतिक्रिया के आधार पर ये नई गाइडलाइंस जारी हुई है।
यूरोप में चलन बढ़ा दरअसल ‘जी’ को एक लिंगनिरपेक्ष उच्चारण माना जाता है। यूरोप में इसका इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। हालांकि अब तक केवल अनौपचारिक रूप से इसका इस्तेमाल होता था मगर पहली बार औपचारिक तौर पर निर्देश दिए गए हैं। यही नहीं, ब्रिटिश शिक्षकों को ये भी सलाह दी जा रही है कि वे बच्चों को उनकी पसंद के उच्चारण से ही पुकारें। इसमें ‘जी’ भी शामिल है।
अधिकतर होते हैं स्टूडेंट यह देखना होगा कि इस फैसले का लोग किस तरह से स्वागत करते हैं। बिना हेलमेट के चलने वाले दोपहिया वाहनों में ज्यादातर कॉजेल और स्कूल के स्टूडेंट होते हैं, ऐसे में इन पर लगाम लगाना सरकार के कड़ी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे लोगों पर किसी तरफ के जुर्माने की बात भी सामने नहीं आई है।