जी7 देशों के अध्यक्ष के रूप में जापान के प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा ने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी को मई माह में हिरोशिमा में होने वाले सात प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह के शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया, जिसे पीएम मोदी ने स्वीकार कर लिया। दोनों देश पहली ही हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के दखल को रोकने के लिए क्वाड देशों के सदस्य हैं।
किशिदा ने कहा कि 2016 में जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे ने फ्री एंड ओपन इंडो पैसिफिक (एफओआईपी) विजन दिया था। किशिदा ने कहा कि जापान एफओआईपी के लिए सहयोग में विस्तार को देख रहा है। किशिदा ने कहा कि विभाजन और टकराव के बजाय सहयोग की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का नेतृत्व करने के लक्ष्य की ओर यह विजन पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। किशिदा ने कहा कि नई मुक्त और खुली इंडो-पैसिफिक योजना में चार स्तंभ थे। 1. शांति बनाए रखना। 2. इंडो-पैसिफिक देशों के सहयोग से नए वैश्विक मुद्दों से निपटना। 3. विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से वैश्विक कनेक्टिविटी प्राप्त करना। 4. खुले समुद्र तथा आसमान की सुरक्षा सुनिश्चित करना। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किशिदा ने निजी निवेश, आधिकारिक सरकारी सहायता, अनुदान और जापानी ऋण के माध्यम से 2030 तक इंडो-पैसिफिक में 75 बिलियन डॉलर के निवेश का वचन दिया।
जापान और भारत दोनों चीनी आक्रामकता का सामना कर रहे हैं। भारत जहां लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन क्षेत्रीय अखंडता की चुनौती का सामना कर रहा है वहीं पूर्वी चीन सागर में सेनकाकू द्वीप पर चीन के दावे को लेकर जापान भी क्षेत्रीय अखंडता और आर्थिक सुरक्षा की चुनीती से दो-चार है। पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन का क्षेत्रीय और सैन्य दावा जापान की चिंता का एक बड़ा कारण है। चीन सागर और हिंद प्रशांत महासागर चीन के व्यापार के लिए बेहद अहम हैं। इस तरह रक्षा क्षेत्र में भारत और जापान के सामने चीन सबसे बड़ी आम चुनौती है।
किशिदा के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में पीएम मोदी ने कहा कि 2021 में हमने अगले 5 साल में हमने 5 ट्रिलियन येन यानी तीन लाख बीस हजार करोड़ रुपए के जापानी निवेश का लक्ष्य रखा था। संतोष की बात है कि इस दिशा में अच्छी प्रगति हुई है।