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भारत से तल्खी के बीच चीन की पाक पर आर्थिक दबदबे की नीति

locationजयपुरPublished: Nov 14, 2018 04:58:17 pm

Submitted by:

manish singh

बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव प्रोजेक्ट का लक्ष्य चीन के प्रभुत्व वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। चीन की इस रणनीति पर अमरीकी सीनेटरों ने पत्र लिखकर कहा कि चीन दूसरे देशों में अपना दबदबा बनाकर उन्हें वश में करना चाहता है।

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भारत से तल्खी के बीच चीन की पाक पर आर्थिक दबदबे की नीति

पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ पार्टी के नेता और पूर्व क्रिकेट स्टार इमरान खान ने आम चुनावों में जीत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं, लेकिन इमरान की मुश्किलें अभी से शुरू हो गई हैं। अभी पाकिस्तान का राजकोषीय घाटा अपने उच्चतम स्तर पर जबकि विदेशी धन की भंडारण नीति अपने न्यूनतम स्तर पर है।

चीन के वित्त पोषण बैंक से 6,270 करोड़ रुपए का कर्ज लेने के बाद उसकी मुश्किल और बढ़ गई है क्योंकि ये रकम पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए ली गई थी लेकिन हालात बद से बदतर हो गए हैं। क्या आर्थिक स्थिति काबू में करने के लिए प्रधानमंत्री इमरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से नए बेलआउट पैकेज के लिए गुहार लगाएंगे?

आलोचकों का मानना है कि पाकिस्तान को बेलआउट फंड की आदत लग गई है। पिछले तीस साल में से 22 साल पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से दर्जनों बार बेलआउट फंड लेकर गुजारे हैं। इसके बाद भी हालात नहीं सुधरे। अब आइएमएफ पाकिस्तान से विकास का हिसाब मांग रहा है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान दोबारा कर्ज के लिए चीन की ओर रुख करेगा। इसका सीधा फायदा बीजिंग को होगा जो इस्लामाबाद को अपना कर्जदार बनाए रखना चाहता है।

इस संदर्भ में पाकिस्तान अब चीन के लिए वैश्विक नीति का परीक्षण स्थल बन सकता है। चीन अब वन बेल्ट- वन रोड इनीशिएटिव से अलग होगा, जिसमें उसने करीब 6 लाख 45 हजार 355 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इसके तहत वे कई देशों में ब्रिज, एयरपोर्ट, डैम, रेल, रोड नेटवर्क और दूसरे बड़े प्रतिष्ठानों के बनाने का काम कर रहा है। इसमें चीन की खास रणनीति छिपी है। लेकिन मलेशिया से लेकर कोलंबिया में चीन की इन परियोजनाओं पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगा। कुप्रबंधन और राजनीतिक हमले की वजह से कई परियोजनाएं अधर में लटक चुकी हैं।

चीन की इस रणनीति से कई देश कर्ज के बोझ तले दब गए हैं। उदाहरण के तौर पर श्रीलंका पहला राष्ट्र है जिसने हंबनटोटा में एयरपोर्ट और बंदरगाह बनाने के लिए 600 करोड़ रुपए का कर्ज लिया जो अब अदा नहीं कर पा रहा है। कर्ज अदा न करने की एवज में श्रीलंकाई सरकार को चीन को करीब 15 हजार एकड़ जमीन 99 साल के लिए लीज पर देनी पड़ गई है। इसके बाद चीन पर आरोप लगने लगा है कि चीन 21वीं सदी में कर्ज के बहाने दूसरे देशों में अपना साम्राज्यवाद फैलाना चाहता है। उसका अगला शिकार पाकिस्तान हो सकता है। वाशिंगटन के पूर्व पाकिस्तानी दूतावास अधिकारी हुसैन हक्कानी मानते हैं कि चीन अपनी बेहतरी के लिए पाकिस्तान में उपनिवेश कर रहा है।

भारत और चीन के बीच तल्खी की वजह से भी चीन पाकिस्तान में अपने पैर जमाए रखना चाहता है। पिछले कुछ वर्षों में चीन ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई क्षेत्रों में निवेश किया है। इसमें सबसे प्रमुख है परमाणु ऊर्जा उद्योग। अब अरब सागर के पास ग्वादर शहर में बंदरगाह बनाने की परियोजना को संचालित कर रहा है। पाकिस्तान को अब हर हाल में चीन की मदद लेनी होगी क्योंकि उसकी लचर और धीमी अर्थव्यवस्था उसे इसके लिए मजबूर करेगी। पाकिस्तान में आपूर्ति और विदेशी व्यापार की स्थिति पूरी तरह बेपटरी है। एक बड़ी आबादी अशिक्षित और गरीबी में जीवन जी रही है। पाकिस्तान की दुर्दशा को लेकर चीन में अब ये आवाज भी उठने लगी है कि पड़ोसियों की आवाज को सुने बिना पाकिस्तान में निवेश करना होगा।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधिकारी नदीम अल हक का इस मुद्दे पर कहना है कि लगातार फंड मिलते रहने से सरकारें आराम से उसका इस्तेमाल करेंगी। महंगी परियोजनाओं के लिए महंगे ऋण से कर्जदार बनाने की नीति है जो कमजोरी का नया कारण बनेगी। इसका नतीजा ये होगा कि कुछ वर्षों के बाद एक नया आर्थिक संकट पैदा होगा और पाकिस्तान को मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे फिर हाथ फैलाना पड़ेगा।

पिछले 30 साल में 22 साल पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से दर्जनों बार बेलआउट फंड लेकर गुजार दिए हैं। इसके बाद भी हालात नहीं सुधरे और अब आइएमएफ पाकिस्तान से विकास का हिसाब मांग रहा है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान अब दोबारा कर्ज के लिए चीन की ओर रुख करेगा। इसका सीधा फायदा बीजिंग को होगा जो इस्लामाबाद को हर हाल में अपना कर्जदार बनाए रखना चाहता है।

कर्ज के बहाने अपना वर्चस्व बढ़ा रहा चीन
इमरान आइएमएफ से कर्ज लेने की परंपरा को तोडऩे की कोशिश नहीं करेंगे लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन उन्हें इसके लिए बाध्य करेगा कि वे कोई गलती न करें। अमरीका देख रहा है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष क्या कर रहा है। अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि अमरीका कभी नहीं चाहेगा कि चीन पाकिस्तान को कर्ज दे जिसका इस्तेमाल वे एक रणनीति के हिसाब से करें।

वाशिंगटन के कानूनविद एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका में चीन की अवसरवादी नीति को लेकर आशंकित हैं। बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का लक्ष्य चीन के प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। चीन की इस रणनीति पर अमरीकी सीनेटरों ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोम्पियो को पत्र लिखा और कहा कि चीन दूसरे देशों में अपना दबदबा बनाकर उन्हें अपने वश में रखना चाहता है। बाद में मजबूरी का फायदा उठाकर उनपर आधिपत्य स्थापित कर अपना वर्चस्व बढ़ाएगा जिससे चीन भविष्य में सभी देशों के लिए खतरा बनेगा।

इशान थरूर, संवाददाता और विदेश मामलों के जानकार (वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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