जहां तक आर्मेनिया की बात है तो वह कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर भारत का साथ देता रहा है। पिछले वर्ष न्यूयॉर्क में विओन समिट (डब्ल्यूआइओएन) के दौरान जब कश्मीर मुद्दे पर तुर्की ने हंगामा किया तो आर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान ने कहा, हम कश्मीर मुद्दे पर दृढ़ता से भारत का समर्थन करते हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पशिनयान से मिले और दोनों देशों के बीच व्यापारिक सहयोग बढ़ाने पर विमर्श हुआ। मुलाकात के दौरान पशिनयान ने आर्मेनिया में भारतीय फिल्म, संगीत और योग की लोकप्रियता का भी जिक्र किया। इस वर्ष की शुरुआत में जब आर्मेनियाई प्रधानमंत्री कोरोना पॉजिटिव हुए तो पीएम मोदी ने ट्वीट कर उनके शीघ्र स्वस्थ होने कामना की और कहा, कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत, आर्मेनियाई के साथ खड़ा है।
उधर पाकिस्तान एकमात्र देश है, जो आर्मेनिया को मान्यता नहीं देता। बात साफ है, पाकिस्तान के तुर्की व अजरबैजान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो आर्मेनिया की खिलाफत करते हैं। उम्मीद के मुताबिक मौजूदा संघर्ष में तुर्की की तरह अजरबैजान का समर्थन करने वाला पाकिस्तान पहला दक्षिण एशियाई देश है। पाकिस्तान ने अजरबैजान के तर्तेर, अघदम व जेबरायल में आर्मेनियाई गोलीबारी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। जबकि अजरबैजान की कार्रवाई का बचाव किया है।
अजरबैजान-आर्मेनिया के बीच विवाद की जड़ नागोर्नो-करबाख का पहाड़ी इलाका है। जिसे अजरबैजान अपना बताता है। हालांकि 1994 से इस पर आर्मेनिया का कब्जा है। 1920 के दशक में सोवियत नेता स्टालिन ने दोनों देशों को सोवियत संघ का हिस्सा बनाया था और नागोर्नो-करबाख अजरबैजान को सौंप दिया। आर्मेनियाई लोगों की आबादी अधिक होने के कारण 1980 के दशक में यहां की संसद ने खुद को आर्मेनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया। यहीं से विवाद शुरू हुआ।