script197 देशों की संधि में भारत को क्यों मिली 10 साल की मोहलत, जानिए | Why India got special treatment in Global warming treaty of 197 countries | Patrika News

197 देशों की संधि में भारत को क्यों मिली 10 साल की मोहलत, जानिए

Published: Oct 16, 2016 08:31:00 pm

Submitted by:

Manoj Sharma

दुनिया के 197 देशों की ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित संधि में भारत को जहां 10 साल की मोहलत दी गई है, वहीं चीन को केवल आठ साल में ही हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के विकल्प का इस्तेमाल करने का वक्त दिया गया है।

Global Warming treaty

Global Warming treaty

रवांडा. ग्लोबल वॉर्मिंग से लडऩे के लिए रवांडा कागली में 197 देशों ने संधि की है। इसमें एसी व फ्रीज में इस्तेमाल की जाने वाली गैस हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसीएस) को ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार बताया है। इस संधि के तहत भारत को 10 साल का वक्त दिया गया है कि वो भी इस गैस के स्थान पर ऐसी कोई वैकल्पिक गैस तैयार करे, जो एसी व फ्रीज में इस्तेमाल की जा सके, ताकि ग्लोबल वॉर्मिंग से दुनिया को बचाया जा सके।

2047 तक भारत खपत में 85 फीसदी करेगा कटौती

केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने कहा कि इस समझौते का मकसद वैश्विक स्तर से एचएफसी की खपत कम करना है। उन्होंने कहा कि विकसित व विकासशील देश 2045 तक इसमें 85 फीसदी कटौती कर लेंगे। भारत को दो साल अतिरिक्त लगेंगे और हम भी 2047 तक इसकी खपत में इतनी ही कटौती कर लेंगे। एचएफसीएस ज्यादा गर्मी पैदा करती है। वहीं, चीन का कहना है कि वह 2045 तक 80 फीसदी एचएफसीएस के खपत में कटौती कर लेगा।

इसलिए महत्वपूर्ण है ये संधि

सभी 197 सदस्य देशों ने ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार एचएफसी की खपत को घटाने पर सहमति जताई है। दरअसल इसकी ग्लोबल वार्मिंग में इसकी बहुत कम भूमिका है, लेकिन जिस तेजी से इसका प्रयोग बढ़ रहा है। यह आने वाली सदी में ये खतरनाक साबित होगा।

पेरिस समझौते से भी प्रभावी

वैसे तो पेरिस समझौता सभी प्रकार के हानिकारक गैसों को कम करने की बात करता है, लेकिन, ये बाध्यकारी नहीं है। वहीं किगाली संधि में एचएफसी को घटाने की बाध्यता है।

इसलिए है चिंता कारण

एचएफसी को लेकर ज्यादा चिंता इस लिए भी है, क्योंकि ये हमारे घरों में मौजूद है। एचएफसी का प्रयोग घरों में इस्तेमाल होने वाले एसी, फ्रीज और आइसक्रीम इंडस्ट्री में किया जाता है। इन सभी के लीक होने या असावधानीपूर्वक मरम्मत करने या नष्ट करने के ये गैस पर्यावरण में चला जाता है। एक किलो एसी गैस कार्बन डाइऑक्साइट के मुकाबले 11,700 गुना
ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार होती है।

उद्योगों पर पड़ेगा बुरा असर

ये समझौता ऐसे समय में हुआ है, जब भारत में एसी मांग तेजी से बढ़ रही है। यहां 60 प्रतिशत एसी में एचएफसी गैस का इस्तमाल होगा है। वहीं 100 प्रतिशत कार एसी में एचएफसी का इस्तामल हो रहा है। अब गैस बदलने के इसकी कीमत 10 गुना ज्यादा हो जाएगी, जिससे इसके मांग पर असर पड़ेगा। बढ़ी हुई लागत को कंपनियां ग्राहकों पर डालेगी, जिससे आने वाले समय में लोगों को एसी और फ्रीज के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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