scriptक्यों खत्म हो रहा है तेल संपन्न खाड़ी देशों का वर्चस्व | Why oil-rich Gulf countries are coming to an end | Patrika News

क्यों खत्म हो रहा है तेल संपन्न खाड़ी देशों का वर्चस्व

Published: Jan 04, 2021 12:38:25 am

Submitted by:

pushpesh

-हूती विद्रोहियों ने 2019 में पूर्वी सऊदी अरब के अबकी और खुरास में अरामको के तेल संयंत्र पर हमले के बाद सऊदी के तेल उत्पादन में प्रतिदिन 57 लाख बैरल तेल की कमी आई थी।

क्यों खत्म हो रहा है तेल संपन्न खाड़ी देशों का वर्चस्व

क्यों खत्म हो रहा है तेल संपन्न खाड़ी देशों का वर्चस्व

तेल बाजार में मंदी और अमरीकी विदेश नीति के बदलाव से खाड़ी में अरब देशों का वर्चस्व घटने लगा है। इसकी एक वजह अमरीका की मध्यस्थता में संयुक्त अरब अमीरात और इजराइल के बीच शांति समझौता भी है, जिससे यह क्षेत्र दो धड़ों में बंट गया। फिर विद्रोहियों के हमलों से हालात और बिगड़ गए। पिछले वर्ष गर्मियों में यमन में ईरान समर्थक हूती विद्रोहियों ने सऊदी अरब के तेल संयंत्रों पर हमले फिर शुरू कर दिए, जो अबू धाबी का करीबी सहयोगी है। रियाद के बाद जीजान, जेद्दा, असीर और नजारन में भी ऐसे हमले हुए। इन हमलों का बड़ा उद्देश्य अरब प्रायद्वीप में हूतियों की ताकत दिखाना था।
दरअसल सऊदी, तेल अवीव और अमरीका के बीच बढ़ी कूटनीतिक जुगलबंदी के बाद हूती के इन हमलों में तेजी आई है। उधर ईरान ने तेल संयंत्रों पर हमले की रणनीति को हथियार बना लिया। कुछ वर्ष पहले ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दे रहा था, जिससे खाड़ी देशों से विश्व का 20 फीसदी तेल निर्यात होता है। लेकिन अमरीका ने अपने खाड़ी सहयोगियों की रक्षा के लिए ईरान को रोका। 2018-19 में लीबिया के तेल उत्पादन में गिरावट और ईरान-वेनेजुएला के तेल बाजार से गायब होने का कीमतों पर बड़ा असर नहीं पड़ा था, लेकिन कई खाड़ी देशों के तेल संयंत्रों पर हूती विद्रोहियों के हमलों से अराजकता और बढ़़ गई।
अस्थिरता से डिगा खरीदारों का भरोसा
हाल के वर्षों में हालात बदल गए। अरब क्रांति और फिर सना पर हूती विद्रोहियों के कब्जे के बाद ईरान ने यमन में अपना बड़ा सहयोगी ढ़ूढ़ लिया, जिससे खाड़ी देशों में उसकी स्थिति मजबूत हुई और दूसरे देशों के व्यापार में गिरावट। 2010 में अमरीका के क्रूड ऑयल बूम ने न केवल उसे सबसे बड़ा हाइड्रोकार्बन निर्यातक बना दिया बल्कि उसने वैश्विक तेल बाजार में अपनी छवि और सुदृढ़ कर ली। नतीजतन मध्य-पूर्व में राजनीतिक अस्थिरता के कारण उपभोक्ताओं का ध्यान हटने लगा। उधर अमरीकी प्रतिबंधों के बाद ईरान ने 1100 किलोमीटर गौरे-जस्क पाइपलाइन का निर्माण शुरू किया है, जिससे यह होर्मुज को बायपास कर सकेगा।
तेल की कहानी, आंकड़ों की जुबानी
-192 अरब डॉलर की गिरावट का अनुमान है ओपेक देशों की आय में इस वर्ष यदि कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल ही रहीं तो।
-2010 में क्रूड ऑयल बूम के बाद अमरीका सबसे बड़ा हाइड्रो कार्बन निर्यातक बन गया, खाड़ी देशों को बड़ा नुकसान हुआ।
-26 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से भारत ने मध्य-पूर्व से तेल आयात किया 2019 में, जो 2018 से 10 फीसदी कम था।
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