हाल के वर्षों में हालात बदल गए। अरब क्रांति और फिर सना पर हूती विद्रोहियों के कब्जे के बाद ईरान ने यमन में अपना बड़ा सहयोगी ढ़ूढ़ लिया, जिससे खाड़ी देशों में उसकी स्थिति मजबूत हुई और दूसरे देशों के व्यापार में गिरावट। 2010 में अमरीका के क्रूड ऑयल बूम ने न केवल उसे सबसे बड़ा हाइड्रोकार्बन निर्यातक बना दिया बल्कि उसने वैश्विक तेल बाजार में अपनी छवि और सुदृढ़ कर ली। नतीजतन मध्य-पूर्व में राजनीतिक अस्थिरता के कारण उपभोक्ताओं का ध्यान हटने लगा। उधर अमरीकी प्रतिबंधों के बाद ईरान ने 1100 किलोमीटर गौरे-जस्क पाइपलाइन का निर्माण शुरू किया है, जिससे यह होर्मुज को बायपास कर सकेगा।
-192 अरब डॉलर की गिरावट का अनुमान है ओपेक देशों की आय में इस वर्ष यदि कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल ही रहीं तो।
-2010 में क्रूड ऑयल बूम के बाद अमरीका सबसे बड़ा हाइड्रो कार्बन निर्यातक बन गया, खाड़ी देशों को बड़ा नुकसान हुआ।
-26 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से भारत ने मध्य-पूर्व से तेल आयात किया 2019 में, जो 2018 से 10 फीसदी कम था।