ये 1230 किमी लंबी प्राकृतिक गैस पाइपलाइन है, जो 2011 में रूस से यूरोप तक चालू किए गए पुराने नॉर्ड स्ट्रीम अंडरपास की क्षमता को दोगुना करेगी। रूसी कंपनी गजप्रोम के स्वामित्व वाले प्रॉजेक्ट में 11.2 अरब डॉलर की लागत आएगी, जिसका आधा हिस्सा चार विदेशी साझेदारों ने निवेश किया है। इस पाइपलाइन के 2019 तक चालू होने की उम्मीद थी, लेकिन अमरीकी प्रतिबंधों के कारण स्विस ठेकेदार ने काम अधूरा छोड़ दिया। अब इसका 6 फीसदी हिस्सा बाकी है, जो डेनमार्क से होकर गुजरेगा।
ऊर्जा जरूरतों के लिए परमाणु और कोयले का प्रयोग सीमित होगा। पहली नॉर्ड स्ट्रीम शुरू होने से पहले रूस, यूक्रेन से पाइपलाइनों के जरिए दो-तिहाई गैस यूरोप को भेजता था। सोवियत संघ के विघटन के बाद मुश्किल बढ़ गई। 2009 में यूक्रेन से कीमतों को लेकर विवाद छिड़ गया, जिसके बाद 13 दिन तक गैस आपूर्ति ठप रही। क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद ये संबंध और बिगड़ गए।
रूस में विपक्षी नेता एलेक्सी नवालनी को जहर दिए जाने के बाद सांसदों के दबाव में जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने परियोजना से हटने की घोषणा कर दी, जिससे दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव बढ़ गया। उधर उन देशों (यूक्रेन, पोलैंड और स्लोवाकिया) ने भी विरोध शुरू कर दिया है, जहां से होकर ये पाइपलाइन गुजरती है और वे पारगमन शुल्क वसूलते हैं।
पोलैंड ने बिना मंजूरी नॉर्ड स्ट्रीम-2 के निर्माण पर रूसी कंपनी गजप्रोम पर मोटा जुर्माना लगा राजनीतिक युद्ध छेड़ दिया। पोलैंड के प्रधानमंत्री मॉट्यूज मोराव्स्की, नवालनी प्रकरण के बाद से जर्मनी को इस परियोजना से अलग होने का दबाव बना रहे हैं। मोराव्स्की का कहना है कि पाइपलाइन से रूस पर यूरोप की निर्भरता बढ़ेगी और यूक्रेन की स्थिरता को भी खतरा पैदा होगा।
अमरीका, यूरोप में तेल की बिक्री बढ़ाना चाहता है, लेकिन नॉर्ड स्ट्रीम-2 से यूरोपीय देश रूस पर निर्भर हो जाएंगे और उसका बाजार प्रभावित होगा। क्योंकि पहले उत्तर-पश्चिम यूरोप में अमरीका गैस का बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। पिछले दिनों अमरीकी कांग्रेस ने पाइपलाइन को देश के लिए खतरा बताते हुए रूस पर प्रतिबंध बढ़ाने को मंजूरी दे दी।
एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) को लेकर यूरोप का गैस बाजार ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो गया है। 2019 में गजप्रोम की यूरोपीय बाजार में 35.5 फीसदी हिस्सेदारी थी। गजप्रोम फिनलैंड, लात्विया, बेलारूस और बाल्कन देशों के लिए पारंपरिक आपूर्तिकर्ता है, लेकिन पश्चिमी यूरोप को नॉर्वे, कतर, त्रिनिदाद और अफ्रीकी देशों से कई स्रोतों गैस मिलती है।