यह सच है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने पर्यावरण, श्रमिकों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और अप्रवासियों के अधिकारों को दबाने वाली नीतियों के माध्यम से देश और दुनिया को गंभीर नुकसान पहुंचाया। उन्होंने विज्ञान को लेकर युद्ध छेड़ा, अपने कार्यालय और परिवार को समृद्ध बनाने के लिए भ्रष्ट तरीकों का इस्तेमाल किया। विदेश नीति का बेजा इस्तेमाल किया। सीमा विवाद को लेकर अंतरर्राष्ट्रीय संधि का दुरुपयोग किया, जिसकी दुनिया के कई संगठनों ने निंदा भी की है। हालांकि ये सब उनको तानाशाह नहीं ठहराता। लेकिन नाडलर के आरोपों का एक पहलू चिली में प्रतिध्वनित होता है और जो आगामी खतरों की ओर इशारा करता है। पिनोशे से एक बात जरूर मेल खाती है कि ट्रंप में अधीरता है और वह खुद को कानून से ऊपर समझने लगते हैं।
चिली में जिंदा है पिनोशे की तख्तापलट वाली विरासत
डॉनल्ड ट्रंप की ही तरह पिनोशे भी खुद को मानवता के उद्धारक के रूप में पेश करते थे। और पिनोशे के तरह टं्रप खुद को लोकतंत्र के विशिष्ट मानदंडों के अधीन नहीं मानते। उनका मानना है कि संविधान मुझे यह अधिकार देता है कि ‘मैं जो चाहूं वह करूं’। राष्ट्रपति बनने से पहले भी उन पर यौन दुराचरण, घोटाले के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन अब वे इनसे निपटने के लिए अभ्यस्त हो चुके हैं। तो क्या भविष्य में उनका बेलगाम आचरण देखने को मिलेगा?
लेकिन चिली से कुछ सबक भी हैं, जैसे तानाशाह सत्ता में मदांध होकर अपना पतन भी खुद तय कर लेता है। अमरीकी समर्थित तख्तापलट के बाद 1973 में पिनोशे ने सत्ता संभाली और 1990 तक इस पर काबिज रहे। हालांकि उनकी खतरनाक विरासत आज भी कायम है, जिसने तीन दशक बाद फिर बड़े पैमाने पर विद्रोह को जन्म दिया। देखना होगा कि पिनोशे की तरह ट्रंप सत्ता के मद से बाहर होंगे या नहीं।